पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आज जयंती है। 11 दिसंबर 1935 को उनका जन्म हुआ था। इसी साल 31 अगस्त को उनका निधन हो गया। 84 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। मुखर्जी 2012 से 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे। उन्हें 2019 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यहां हम नजर डालेंगे उनके जीवन पर और राजनीतिक सफर पर:
मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिराटी में हुआ था। उन्होंने इतिहास में एमए, राजनीतिक विज्ञान में एमए किया और एलएलबी, डी लिट की उपाधि हासिल की। उन्होंने अपनी शिक्षा विद्यासागर कॉलेज सूरी, कलकत्ता यूनिवर्सिटी पश्चिम बंगाल से पूरी की। उनके पिता किंकर मुखोपाध्याय सरानी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और इंडियन नेशनल कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे।
इस तरह राजनीति में हुआ प्रवेश
1969 के मिदनापुर उपचुनाव के दौरान वे निर्दलीय कैंडिडेट के लिए कैंपेनिंग कर रहे थे। उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजनीति के प्रति उनके जोश और जज्बे को देखा तो उन्हें कांग्रेस पार्टी का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया। बस यहीं से उनका राजनीति में पदार्पण हो गया। 1969 में वे राज्यसभा के सदस्य बनाए गए। साल 1982 में वे भारत के सबसे युवा वित्त मंत्री बने। तब वह 47 साल के थे। आगे चलकर उन्होंने विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त व वाणिज्य मंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।
करीब 6 दशक तक उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी खेली। उन्होंने इंदिरा गांधी, पी वी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। मुखर्जी भारत के एकमात्र ऐसे नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री पद पर न रहते हुए भी आठ वर्षों तक लोकसभा के नेता रहे। वे 1980 से 1985 के बीच राज्यसभा में भी कांग्रेस पार्टी के नेता रहे।
बनाते थे विश्वास का रिश्ता
मुखर्जी जब 2012 में देश के राष्ट्रपति बने तो उस समय वे केंद्र सरकार के मंत्री के तौर पर कुल 39 मंत्री समूहों में से 24 का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। साल 2004 से 2012 के दौरान उन्होंने 95 मंत्री समूहों की अध्यक्षता की।राजनीतिक हलकों में मुखर्जी की पहचान आम सहमति बनाने की क्षमता रखने वाले एक ऐसे नेता के रूप में थी जिन्होंने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ विश्वास का रिश्ता कायम किया जो राष्ट्रपति पद पर उनके चयन के समय काम भी आया।
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