President Election 2022:द्रौपदी कोविंद,प्रणब दा का तोड़ पाएंगी रिकॉर्ड ! यशवंत भी कर सकते हैं ये खास कमाल

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jul 18, 2022 | 12:50 IST

President Election 2022: ऐसी संभावना है कि एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू आसानी से जीत हासिल कर लेगी। अगर ऐसा होता है तो वह आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी। द्रौपदी मुर्मू को एनडीए के घटक दलों के अलावा कई विपक्षी दलों ने भी समर्थन देने का ऐलान किया है।

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द्रौपदी मुर्मू बना सकती है ये खास रिकॉर्ड  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • एनडीए द्वारा आदिवासी समुदाय से उम्मीदवार उतारने से विपक्षी दलों की एकता बिखर गई।
  • यशवंत सिन्हा अगर 4 लाख वोट हासिल करते हैं, तो यह भी एक रिकॉर्ड होगा।
  • पिछले 20 साल में सबसे ज्याद वोटों के अंतर से साल 2002 में डॉ ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने जीत हासिल की थी।

President Election 2022: देश के 16 वें राष्ट्रपति के लिए आज वोट डाले जा रहे हैं। मुकाबला भाजपा की अगुआई वाले एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा से है। जिस तरह वोटिंग के पहले सभी दलों ने प्रत्याशियों को समर्थन देने पर रूख साफ किया है, उसे देखते हुए आज की रेस एक तरफा दिखती है। और ऐसी संभावना है कि एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू आसानी से जीत हासिल कर लेगी। अगर ऐसा होता है तो वह आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी। अभी तक द्रौपदी मुर्मू को एनडीए के घटक दलों के अलावा विपक्षी दल बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, जेडी (एस), झामुमो, शिव सेना (उद्धव गुट), शिरोमणि अकाली दल, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने समर्थन देने का ऐलान किया है। इसे देखते अब इस बात पर नजर है कि द्रौपदी मुर्मू कितने वोटों के अंतर से जीतती है। 

क्या प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद का तोड़ पाएंगी रिकॉर्ड

चुनाव आयोग के अनुसार, संसद में लोक सभा और राज्य सभा को मिलाकर 776 सदस्य वोटिंग में शामिल हो सकते हैं। इसमें से प्रत्येक सदस्य के वोट की वैल्यू 700 है। इसी तरह 4033 विधानसभा सदस्य  हैं। और दोनों को मिलाकर कुल 10,86,431 वोट हैं। इसमें से उम्मीदवार को जीतने के लिए 5.43 लाख से ज्यादा वोट की जरूरत होंगी। अकेले एनडीए को देखा जाय तो उसके पास बहुमत से 13000 वोट कम है। लेकिन अब उसे कई विपक्षी दलों का समर्थन मिलने से संभावना है कि द्रौपदी मुर्मू 61 फीसदी के करीब वोट हासिल कर सकती है। जबकि यशवंत सिन्हा 39 फीसदी वोट हासिल कर सकते हैं। 

ऐसे में इस पर नजर रहेगी कि क्या द्रौपदी मुर्मू पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी या रामनाथ कोविंद का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगी। 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद ने यूपीए उम्मीदवार श्रीमती मीरा कुमार को 3,34,730 वोटों से हराया था। जबकि उसके पहले यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने पी.ए.संगमा को 3,97,776 वोटों से हराया था।

साल उम्मीदवार वोट विजेता जीत का अंतर
2017 रामनााथ कोविंद 7,02,044 रामनाथ कोविंद 3,34,730  
  मीरा कुमार 3,67,314    
2012 प्रणब मुखर्जी 7,13,763 प्रणब मुखर्जी 3,97,776
  पी.ए.संगमा 3,15,987    
2007 प्रतिभा पाटिल 6,38,116 प्रतिभा पाटिल 3,06,810  
  भैरो सिंह शेखावत 3,31,306    
2002 ए.पी.जे.अब्दुल कलाम 9,22,884 डॉ ए.पी.जे.अब्दुल कलाम 8,15,518
  लक्ष्मी सहगल 1,07,366    

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यशवंत सिन्हा  4 लाख वोट कर पाएंगे हासिल ?

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जब भी वोटिंग हुई है। ऐसा कभी नही हुआ है कि विपक्षी उम्मीदवार को 4 लाख वोट मिले हो। इसके पहले विपक्षी उम्मीदवार के रूप में सबसे ज्यादा वोट मीरा कुमार को 2017 के चुनाव में मिले थे। उस दौरान उन्हें 3,67,314 वोट मिले थे। अभी तक  यशवंत सिन्हा को जिन दलों का समर्थन मिला है, उसके आधार पर ऐसी संभावना है कि वह 39 फीसदी वोट हासिल कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वह करीब 4.23 लाख वोट हासिल कर लेंगे। जो कि किसी भी हारे उम्मीदवार को मिले सबसे ज्यादा वोट होंगे। 

हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए सबसे कड़ी टक्कर 1967 में चौथे राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान दिखी। जब डॉ जाकिर हुसैन को 4,71,22 मतों के मुकाबले कोटा सुब्बराव को 3,63,931 वोट मिले थे। उस समय कुल वोटो की संख्या 8,38,048 थी। यानी सुब्बाराव को हारने के बावजूद को 43 फीसदी वोट मिले थे।

यशवंत सिन्हा कहां गए चूक !

जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई तो एनडीए के पास बहुमत नहीं था। और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने जिस तरह विपक्ष के उम्मीदवार के लिए गोलबंदी शुरू की थी, उसे लग रहा था कि राष्ट्रपति पद की लड़ाई रोचक होगी। लेकिन एनडीए द्वारा एक आदिवासी और महिला उम्मीदवार उतारने के बाद यशवंत सिन्हा की राह मुश्किल होती चली गई और कई विपक्ष दलों ने भी उन्हें समर्थन देने से किनारा कर लिया। इसमें झामुमो, शिव सेना, जेडी (एस), अकाली दल जैसे भाजपा विरोधी दल तो शामिल थे। इसके अलावा बीजेडी, बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, तेलगुदेशम पार्टी का भी वह समर्थन नहीं जुटा पाए। यही नहीं उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी द्रौपदी मुर्मू के रूप में आदिवासी और महिला उम्मीदवार को देखते हुए, सिन्हा को पश्चिम बंगाल से दूर रखा। 
 

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