President Election 2022: विपक्ष के एक और दल शिव सेना ने ममता बनर्जी की अगुआई में खड़े किए गए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का साथ छोड़ दिया है। उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का फैसला किया है। शिव सेना के समर्थन के साथ अब यह तय हो गया है कि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद की रेस में बहुत पीछे हो गए हैं। और द्रौपदी मुर्मू की जीत लगभग तय है। और यह भी साफ है कि तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी की अगुआई में विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश धराशायी हो गई है। विपक्ष का एकजुट नहीं हो पाना ममता बनर्जी के लिए बड़ा झटका है, जो कि आने वाले समय में उनके नेशनल प्लान के लिए सेटबैक साबित हो सकता है।
विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाईं ममता
राष्ट्रपति पद के लिए जब ममता बनर्जी ने विपक्ष को एकजुट कर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश की थी, तो शुरू से ही उनकी रणनीति फेल होती नजर आ रही थी। पहले उन्होंने एनसीपी प्रमुख शरद पवार को मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। उसके बाद नेशनल कांफ्रेस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने भी उम्मीदवार बनने से इंकार कर दिया। उसके बाद ममता बनर्जी ने पूर्व भाजपा नेता और इस समय तृणमूल कांग्रेस के सदस्य यशवंत सिन्हा के नाम पर विपक्ष का समर्थन जुटाया। लेकिन यशंवत सिन्हा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता, भाजपा द्वारा एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के ऐलान के बाद से ही बिखरने लगे।
और अब तक विपक्ष में बैठी शिव सेना, टीडीपी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, जेडी (एस), बहुजन समाज पार्टी ने समर्थन दे दिया है। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के भी मुर्मू के पक्ष में वोट डालने के संकेत हैं। हालांकि अभी तक उसने औपचारिक ऐलान नहीं किया है।
पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिलना तय !
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों में बिखराव के बाद एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत लगभग तय हो गई है। क्योंकि एनडीए के पास पहले से ही 48 फीसदी से ज्यादा वोट है। और उसे बहुमत के लिए केवल 12-13 हजार वोटों की जरूरत थी। ऐसे में शिंदे गुट के अलावा शिव सेना, बीजू जनता दल वाईआरएस कांग्रेस, बसपा,तेलगुदेशम पार्टी ,शिरोमणि अकाली दल, जेडी (एस), बसपा और अन्य गैर एनडीए दलों का समर्थन मुर्मू को मिल गया है तो एनडीए उम्मीदवार के लिए जीत के लिए जरूरी 5.43 लाख से ज्यादा वोट जुटाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। इस बार के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज में 4809 सदस्य शामिल है। इनमें लोकसभा के 543, राज्य सभा के 233 और विधानसभाओं के 4033 सदस्य वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेंगे। इसके आधार पर चुनाव के लिए 10.86 लाख से ज्यादा वोट वैल्यू होगी।
आदिवासी दांव से ममता कंफ्यूज
असल में जब भाजपा ने एनडीए उम्मीदवार के रूप में आदिवासी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उतारा तो यह ऐसा दांव था,जो कि विपक्ष के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला था। क्योंकि करीब 60 लोकसभा सीटों पर आदिवासी समुदाया का सीधा असर है। इस समय 543 सदस्यों वाली लोक सभा में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा करीब 13 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी समुदाय का असर है। वहीं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडीसा, त्रिपुरा, झारखंड, मणिपुर, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं, जहां पर आदिवासी समुदाय का अच्छा खासा असर है। इसी चुनावी फायदे को देखते हुए अब ममता बनर्जी भी कह रही है कि अगर भाजपा ने उन्हें पहले बताया होता कि आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू उम्मीदावर होंगी तो आम राय बन सकती थी।
यशवंत सिन्हा को झटका
इस राजनीतिक दांवपेंच में सबसे ज्यादा नुकसान यशवंत सिन्हा और ममता बनर्जी को होता दिख रहा है। हालात ऐसे हैं कि तृणमूल कांग्रेस में होते हुए भी यशवंत सिन्हा अभी तक पश्चिम बंगाल में प्रचार करने नहीं गए हैं। जबकि वह तृणमूल कांग्रेस का गढ़ है। और अगर उन्हें चुनावों बेहद कम वोट मिलते हैं तो उनके राजनीतिक करियर के साथ-साथ ममता बनर्जी के लिए झटका होगा। क्योंकि वह पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सत्ता में आने के बाद से यही जताने की कोशिश कर रही है कि वह विपक्ष की अकेली नेता हैं जो 2024 में मोदी को चुनौती दे सकती हैं और विपक्ष को एकजुट कर सकती हैं।
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