President Election 2022: देश के अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए 18 जुलाई को वोटिंग होगी। इन चुनावों के लिए जहां विपक्ष एक मजबूत उम्मीदवार की तलाश कर रहा है, वहीं सत्ताधारी दल भाजपा की कोशिश है कि 16 वें राष्ट्रपति का चुनाव आम सहमति से हो जाय। यानी सत्ता पक्ष और विपक्ष मिलकर एक ही उम्मीदवार का सर्मथन कर दें। इसके लिए भाजपा के अध्यक्ष जे.पी.नड्डा से लेकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कवायद शुरू कर दी है। और वह विभिन्न विपक्षी दलों से बातचीत कर रहे हैं। लेकिन केंद्र में भाजपा के अब तक के शासन को देखा जाय तो उसने हमेशा सरप्राइज किया है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि इस बार भी पार्टी सरप्राइज दे सकती है।
अटल बिहारी बाजपेयी और नरेंद्र मोदी के समय मिला मौका
वैसे तो भाजपा की केंद्र में पहली सरकार साल 1996 में बन गई थी। लेकिन राष्ट्रपति चुनने का पहला मौका साल 2002 में मिला। उस वक्त भाजपा ने एक ऐसे गैर राजनीतिक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में चुना, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। अटल बिहारी बाजपेयी की नेतृत्व वाली सरकार ने एपीजे अब्दुल कलाम को उम्मीदवार बनाया और फिर वह भारत के राष्ट्रपति चुने गए।
इसके बाद भाजपा को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने का मौका साल 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान मिला। और 2002 की तरह इस बार भी भाजपा के तरफ से चौंकाने वाला नाम सामने आया। और पार्टी ने बिहार के पूर्व राज्य रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना। कोविंद का मुकाबला कांग्रेस नेता मीरा कुमार से हुआ। जिसमें उन्होंने 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की।
इस बार किन नामों की चर्चा
वैसे तो अभी तक भाजपा ने अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है। लेकिन पुराने रिकॉर्ड और मौजूदा राजनीतिक समीकरण को देखते हुए कई नामों की जोरों पर चर्चा है। इसमें सबसे ज्यादा संभावना आदिवासी उम्मीदवार की है। क्योंकि अभी तक देश को आदिवासी राष्ट्रपति नहीं मिला है। जिस तरह आने वाले समय में राजस्थान, गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं और वहां पर आदिवासियों की तादाद है, उसे देखते हुए आदिवासी राष्ट्रपति का चेहरा सामने आ सकता है। इस रेस में झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के नाम की चर्चा है।
इसी तरह केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबीं आजाद की करीबी को देखते हुए आजाद के नाम की भी चर्चा है। अगर भाजपा इन तीनों में किसी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुनती है तो वह एक बार फिर कलाम की तरह मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ी कर सकेगी।
विपक्ष इन पर लगा रहा है दांव
इस बीच 15 जून को ममता बनर्जी ने दर्जन से ज्यादा दलों के साथ बैठकर विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करने की कवायद शुरू की है। शुरू में उन्होंने शरद पवार के नाम का प्रस्ताव रखा, लेकिन पवार ने उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है। इसके बाद ममता बनर्जी ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा है। और उनकी कोशिश है इन दोनों में से किसी एक उम्मीदवार के नाम पर विपक्षी दलों में सहमति बन जाय।
जहां तक वोटों की बात है तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए NDA बहुमत के बेहद करीब है। उसे बहुमत पाने के लिए केवल 12-13 हजार वोटों की दरकार है। इस बार के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज में 4809 सदस्य शामिल है। इनमें लोकसभा के 543, राज्य सभा के 233 और विधानसभाओं के 4033 सदस्य वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेंगे। इसके आधार पर चुनाव के लिए 10.86 लाख से ज्यादा वोट वैल्यू होगी। इसमें से बहुमत के लिए करीब 5.43 लाख से ज्यादा वोटों की जरूरत पड़ेगी। और एनडीए के पास करीब 48 फीसदी वोट हैं। वहीं यूपीए और अन्य दलों के पास 52 फीसदी वोट हैं। लेकिन अगर अन्य दलों के वोट को देखा जाय तो वह यूपीए से भी ज्यादा है। उसके पास शेष 52 फीसदी वोट में से 50 फीसदी से ज्यादा वोट है।
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