द्रौपदी मुर्मू अब भारत की 15वीं राष्ट्रपति होंगी। गुरुवार को संपन्न मतगणना में उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को बड़े अंतर से हरा दिया। अपनी हार के बाद एक चिट्ठी के जरिए यशवंत सिन्हा ने मुर्मू को बधाई देने के साथ भगवद्गीता के कुछ उद्धरणों का जिक्र कर अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष एनडीए के मास्टर स्ट्रोक के बाद बिखर गया। दरअसल राष्ट्रपति चुनाव को 2024 के नजरिए से देखा जा रहा था।
नाम के ऐलान में ही बीजेपी मे मार ली बाजी
द्रौपदी मुर्मू के नाम से पहले विपक्ष ने साझा उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया। लेकिन जब एनडीए की तरफ से मुर्मू का नाम सामने आया तो विपक्षी गठबंधन में शामिल झामुमो के सुर बदले। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आदिवासी समाज से मुर्मू का जिक्र करते हुए समर्थन का ऐलान किया जबकि हेमंत सोरेन की सरकार कांग्रेस और आरजेडी के समर्थन से चल रही है। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की सीएम जिनकी पार्टी से खुद यशवंत सिन्हा आते हैं उनका बयान आया कि अगर बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू के नाम के ऐलान से पहले चर्चा की होती तो वो समर्थन देतीं। ममता बनर्जी के इस बयान से साफ हो गया कि द्रौपदी मुर्मू का काट उनके पास नहीं है और इस तरह से चुनाव से पहले ही यशवंत सिन्हा की हार करीब करीब तय थी।
विपक्ष के लिए बड़ा संदेश
चुनावी नतीजे विपक्ष के लिए बड़े संदेश के बारे में जानकार कहते हैं कि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं रही होगी कि बीजेपी किसी ऐसे नाम का ऐलान कर देगी जो उनके वोट बैंक को प्रभावित करेगा। लेकिन बीजेपी को चौंकाने वाले फैसलों के बारे में जाना जाता है। आप अगर 2017 के चुनाव को देखें तो रामनाथ कोविंद का चुनाव अप्रत्याशित फैसले के तौर पर देखा गया क्योंकि 2019 में आम चुनाव था। अगग 2022 के चुनाव को देखें तो विपक्ष ने 2024 की अनदेखी कैसे कर दी। अगर विपक्ष ने 2024 के महत्व को सिर्फ बयान तक ही सीमित करके देखा तो निश्चित तौर पर उसकी अदूरदर्शिता कही जाएगी।
द्रौपदी मुर्मू का पार्षद से राष्ट्रपति भवन तक का सफर, उनके गांव से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
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