Prithvi Raj Chauhan:चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज के जीवन में वह सब कुछ था जो उन्हें 11वीं-12 वीं शताब्दी का सबसे रोचक किरदार बनाता है। 13 साल की उम्र में राजगद्दी संभालना और फिर शक्तिशाली चंदेलों को हराना, उन्हें शक्तिशाली राजा के रूप में स्थापित करता है। उनके जीवन का एक और पहलू बेहद अहम है। जो उनके विवाह से जुड़ा हुआ है। कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से उनका विवाह भारतीय इतिहासकारों से लेकर कवियों, उपान्यासकारों में भी कौतूहल पैदा करता है। लेकिन पृथ्वीराज चौहान के जीवन के दो युद्ध ऐसे रहे हैं, जो न केवल उनके लिए निर्णायक रहे। बल्कि उन युद्धों से भारत का इतिहास ही बदल गया।
शुरूआती जीवन
पृथ्वीराज का जन्म 1166 में अजमेर राजवंश में हुआ था। उनके पिता राजा सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे। लेकिन पिता राजा सोमेश्वर चौहान की मृत्यु होने के बाद, बेहद कम उम्र में पृथ्वीराज को राजा बना दिया गया। और 13 साल के पृथ्वीराज की मदद के लिए उनकी मां कर्पूरीदेवी ने शासन चलाने में साथ दिया। राजा के रूप में पृथ्वीराज की पहली लड़ाई अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को दबाने के रूप में हुई। इस जीत ने पृथ्वीराज को मजबूत किया। और उसके बाद 1182 ईसवीं में चंदेल राजा परमार देव चंदेल को हराने से पृथ्वीराज चौहान की चर्चा पूरे भारत में फैल गई। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को यश के साथ अपार धन-दौलत भी मिला।
संयोगिता से प्रेम कहानी
पृथ्वीराज के जीवन में एक अहम मोड़ गहड़वाल वंश के राजा जयचंद से हुई लड़ाई के दौरान आया । जिनकी राजधानी कन्नौज थी। पृथ्वीराज रासो के रचियता कवि चंद्रबरदाई के अनुसार जयचंद की पुत्री संयोगिता से प्रेम और फिर उनका हरण कर विवाह करना, पृथ्वीराज और जयचंद की लड़ाई का प्रमुख कारण बना। पृथ्वीराज जब अपने शासन के उत्तकर्ष पर थे तो उनका राज्य मौजूदा समय में राजस्थान (अधिकांश क्षेत्र), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी मध्य प्रदेश और दक्षिणी पंजाब तक फैला हुआ था।
मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण
भारत के इतिहास में मोहम्मद गोरी का आक्रमण बेहद असर डालने वाला रहा। आज के पाकिस्तान के इलाके में जीत हासिल करते हुए गोरी पंजाब तक पहुंच गया। तो पृथ्वीराज और मोहम्मद गोरी की सेनाओं का तराइन के मैदान में सामना हुआ। सन 1191 में लड़े गए इस युद्ध को तराइन के प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को हरा दिया । गोरी इस युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ और वापस भागने लगा लेकिन पृथ्वीराज ने उसका पीछा नहीं किया और उसे वापस लौटने दिया। लेकिन यही चूक बाद में बहुत भारी पड़ी।
भारत में मुस्लिम शासन का दौर
हार से जलील गोरी ने बदला लेने के लिए , बड़ी सेना के साथ 1192 में फिर आक्रमण किया। इस बार पृथ्वीराज चौहान पर गोरी भारी पड़ा और तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई। हार के बाद पृथ्वीराज को लेकर दो मत हैं। इतिहासकारों के एक मत मानता है कि गोरी ने पृथ्वीराज को अपना गवर्नर बनाकर शासन करने की अनुमति दे दी। इसके पीछे वह उन मुद्राओं का तर्क देते हैं, जिसमें एक तरफ पृथ्वीराज चौहान का नाम है तो दूसरी तरफ मोहम्मद गोरी का नाम लिखा हुआ है।
वहीं दूसरे मत का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान को गोरी अपने वतन ले गया, जहां उसे अंधा कर दिया गया था। और बाद में शब्दभेदी बाण के जरिए पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को मार डाला था। और उसे मारने के बाद चंद्रबरदाई और पृथ्वीराज चौहान ने अपने आप को भी मार दिया था।
पृथ्वीराज चौहान की मौत चाहे जैसे हुई हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि तराईन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार ने भारत का इतिहास ही बदल दिया। क्योंकि उसी के बाद भारत में मुस्लिम शासकों का दौर शुरू हुआ। और 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना हुई। और वह सिलसिला अगले 600 साल तक मुगल वंश तक चलता रहा। और उसके बाद भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया। जिनसे फिर 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिली।
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