नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर आज (25 अक्टूबर) पूर्वांचल पहुंचे। इस बार वह सिद्धार्थ नगर और वाराणसी के दौरे पर थे। उनका पिछले 5 दिन में पूर्वांचल का यह दूसरा दौरा था। इसके पहले 20 अक्टूबर को वह कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन करने पहुंचे थे। जाहिर है यूपी विधान सभा चुनावों को देखते हुए प्रधानमंत्री का बार-बार पूर्वांचल आना भाजपा की चुनावी रणनीति के लिए बेहद अहम है। खास तौर से जब वहां पर यूपी की एक तिहाई विधान सभा सीटें आती हैं। और वहां पर छोटी-छोटी जातियों के वजह से 5000-7000 वोट बैंक काफी मायने हो जाते हैं। इसलिए भाजपा से लेकर समाजवादी पार्टी भी पूर्वांचल पर दांव लगा रही हैं।
क्या है पूर्वांचल का गणित
पूर्वांचल में करीब 150 विधान सभा सीटें हैं। यानी पूरे प्रदेश की एक तिहाई सीटें इस क्षेत्र से आती हैं। और पिछले चुनावी नतीजों को देखा जाय तो साफ है कि भाजपा की 312 सीटें जीतने में पूर्वांचल का बड़ा योगदान रहा है। भाजपा को पूर्वांचल में 2017 के विधान सभा चुनावों में 100 से ज्यादा सीटें मिली थी। और इस क्षेत्र में ऐसा प्रदर्शन भाजपा ने 1991 के बाद पहली बार दिखाया था। उस साल भाजपा को 80 से ज्यादा सीटें पूर्वांचल से मिली थी। जाहिर है भाजपा को अगर फिर से सत्ता चाहिए तो पू्र्वांचल से ही रास्ता निकलेगा। भाजपा के लिए पूर्वांचल इसलिए भी अहम है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस से सांसद हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मस्थली गोरखपुर पूर्वांचल में है।
इसके अलावा पूर्वांचल को छोटे दलों की प्रयोगशाला भी कहा जाता है। यहां पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी , अपला दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी से लेकर कई छोटे-छोटे दल अपनी-अपनी जातियों में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 18 मान्यता प्राप्त दल, 3 अमान्यता प्राप्त और 91 तात्कालिक पंजीकरण के साथ चुनाव लड़ने वाले दल हैं। इनमें से बड़ी पार्टियों के अलावा 10-12 छोटे दल ऐसे हैं। जो चुनावों में सीधे असर डालते हैं।
सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति में है। इसमें से भी करीब 45 सीटें ऐसी है, जिसमें राजभर समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। इसी तरह निषाद समुदाय में निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड सहित करीब 22 उप जातियां हैं। जिनका पूर्वांचल के करीब 60- 70 विधान सभा क्षेत्रों पर प्रभाव है। वहीं ओबीसी वर्ग में यादवों के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा कुर्मी की आबादी है। एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है। अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का वाराणसी, मिर्जापुर,प्रतापगढ़, रॉबर्ट्सगंज क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। 2017 के विधान सभा चुनावों में अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4, और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी।
जिसका पूर्वांचल उसकी लखनऊ में सरकार
यूपी की राजनीति में माना जाता है कि लखनऊ की कुर्सी का रास्ता, पूर्वांचल से होकर जाता है। आंकड़े गवाह है, जिस पार्टी को पूर्वांचल के मतदाताओं का साथ मिला, उसे लखनऊ की गद्दी मिल गई। 2017 में भाजपा को जहां इसका फायदा मिला। वहीं 2012 में समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल से 100 से ज्यादा सीटें मिलीं थी। जबकि 2007 में बहुजन समाज पार्टी को 80 से ज्यादा सीटें मिली थी। और सभी दलों ने बहुमत के साथ सरकार बनाई थी।
इस बार अखिलेश के साथ राजभर
भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के विधान सभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (एस) के साथ गठबंधन का प्रयोग किया था। और उन्हें इसका फायदा भी मिला। चुनाव में उसे 312 सीटें मिली थी। यही प्रयोग समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव कर रहे हैं। उन्होंने ओम प्रकाश राजभर को इस बार अपने पाले में कर लिया है। और वह उनके भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगे। जाहिर है अखिलेश को पता है कि पूर्वांचल में अगर फेल हुए तो सत्ता मे वापसी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए वह पूर्वांचल में बसपा के बागी नेताओं को भी सपा में लगातार शामिल करने में लगे हुए हैं। जाहिर है कि पूर्वांचल की लड़ाई अब रोचक होती जा रही है। एक तरफ भाजपा के ऊपर 2017 जैसा प्रदर्शन दोहराने का दबाव है तो सपा और दूसरे दलों को सत्ता में वापसी के लिए पूर्वांचल, सत्ता की चाबी के रूप में दिख रहा है।
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