नई दिल्ली : देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद किसी परिचय का मोहताज का मोहताज नहीं हैं। देश का बच्चा-बच्चा प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम से वाकिफ है। पर राजेंद्र प्रसाद का परिचय इतना भर नहीं है। उनकी योग्यता के कायल महात्मा गांधी भी थे, जिन्हें राजेंद्र प्रसाद के व्यवहार बेहद प्रभावित करते थे। ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संग्राम लड़ने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष भी रहे, जिसने देश को अपना अलग संविधान दिया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नाम के गांव में हुआ था, जो अब सिवान जिले के अंतर्गत आता है। पढ़ाई-लिखाई में बचपन से ही अव्वल राजेंद्र प्रसाद की कॉपी देखकर कभी एक परीक्षक ने लिखा था, 'परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है।' डॉ. प्रसाद वैचारिक रूप से जितने उच्च थे, जीवन उन्होंने उतनी ही सादगी के साथ जिया। जल्दी सोना और जल्दी जागना उनकी आदतों में शुमार रहा। 1915 में उन्होंने स्वर्णपदक के साथ लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और बाद में फिर शोध भी किया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन पर महात्मा गांधी और उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों का गहरा प्रभाव रहा। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा भी है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद ही उन्होंने आजादी के आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया। हालांकि उन पर परिवार की जिम्मेदारी थी, इसके बावजूद उन्होंने घर वालों की अनुमति लेकर वह स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वह महात्मा गांधी के विचारों से जितने प्रभावित थे, महात्मा गांधी भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद की योग्यता और सौम्य व्यवहार के उतने ही कायल थे।
आम तौर पर सादगी पसंद, सौम्य और संतुलित व्यवहार रखने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ किसी का तकरार हो, यह बात हैरान करती है, पर बताया जाता है कि आजादी के ठीक बाद सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण और उसके उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने के मसले पर उनका नेहरू से वैचारिक मतभेद था। सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का फैसला 1947 में लिया गया था, जिसका पुनर्निर्माण कार्य 1951 में पूरा हुआ था। तब उद्घाटन समारोह के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भी आमंत्रित किया गया था।
नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति इस कार्यक्रम में शामिल हों। पंडित नेहरू ने बंटवारे के बाद पैदा हुए हालात का हवाला देते हुए कहा था कि राष्ट्रपति को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसके कई गलत अर्थ निकाले जाएंगे। लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सलाह नहीं मानी और वे सोमनाथ मंदिर के उदघाटन समारोह में शामिल हुए।
उन्होंने वहां जो कुछ भी कहा, वह गौर करने वाला है। इसका जिक्र करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखा है, राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ में कहा था, 'मैं एक हिंदू हूं, लेकिन मैं सभी धर्मों का आदर करता हूं। कई मौकों पर चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारे भी जाता रहता हूं।' उनकी इस बात में बहुत बड़ा संदेश छिपा था, जो देश में समरसता व भाईचारे के संदर्भ में बहुत बड़ा पैगाम थी और मौजूदा दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है।
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