नई दिल्ली: क्या उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद राज्यसभा के इस पहले चुनाव ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है ? ये सवाल इसलिए है क्योंकि पार्टी ने अपने ही विधायकों को रिसॉर्ट में छिपा दिया है । रिसॉर्ट में रखे गए हरियाणा और राजस्थान के विधायकों को 10 जून से पहले किसी से मिलने की इजाजत नहीं है, वो कहीं आ जा नहीं सकते हैं, वो किन किन लोगों से बात कर रहे हैं इस पर भी नजर रखी जा रही है। जब तक राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग नहीं हो जाती, ये विधायक रिसॉर्ट भी नहीं छोड़ सकते हैं । इस कड़े पहरे की वजह है दोनों राज्यो में बगावत और क्रॉस वोटिंग का डर। दरअसल 15 राज्यों से 57 राज्यसभा सदस्यों का चुनाव होना था। जिसमें 11 राज्यों से 41 सदस्य निर्विरोध चुने जा चुके हैं । लेकिन मामला राजस्थान और हरियाणा में फंस गया है। कांग्रेस विधायकों की नाराजगी और क्रॉस वोटिंग की खबर से इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की हालत खराब है। राज्यसभा की 57 सीटों में कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत की उम्मीद थी इसलिए पार्टी ने इतने ही उम्मीदवार उतारे थे। अब इन 10 उम्मीदवारों में भी राजस्थान और हरियाणा के 2 उम्मीदवारों के चुने जाने पर ग्रहण लग गया है ।
पहले राजस्थान की बात कर लेते हैं। राजस्थान में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और इससे ठीक पहले राज्यसभा के ये चुनाव बता देंगे कि कांग्रेस ज्यादा ताकतवर है या बीजेपी ? राजस्थान में राज्यसभा की जिन 4 सीटों पर चुनाव है कांग्रेस ने उसके लिए तीन और बीजेपी ने एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा है । निर्दलीय सुभाष चंद्रा बीजेपी के समर्थन से पांचवें उम्मीदवार हैं। यहां राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 41 विधायक चाहिए । BJP के पास 71 विधायक हैं, यानी 41 विधायकों के वोट से बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी की जीत तय है । इसके बाद भी बीजेपी के पास 30 अतिरिक्त वोट हैं । जो निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को ट्रांसफर होंगे।
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इधर कांग्रेस ने रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक के अलावा तीसरे उम्मीदवार के रूप में प्रमोद तिवारी को मैदान में उतारा है । कांग्रेस के पास कुल 108 विधायक हैं यानी पहले और दूसरे कैंडिडेट को 41-41 विधायकों के वोट मिलेंगे, जिससे उनका जीतना तय है । 108 में 82 वोट कम होने के बाद कांग्रेस के पास 26 अतिरिक्त वोट बचेंगे जो उनके तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तवारी को मिलेंगे । तीसरे उम्मीदवार के लिए कांग्रेस को 13 निर्दलीय, सीपीएम के 2, बीपीटी के 2 और आरएलडी के एक विधायक से समर्थन की उम्मीद है। ऐसा हुआ तो प्रमोद तिवारी को जरूरी 41 विधायकों का समर्थन मिल जाएगा और वो बड़े आराम से राज्यसभा पहुंच जाएंगे। लेकिन पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से निर्दलीय उम्मीदवारों के भ्रष्टाचार के पुराने फाइल खोले जा रहे हैं उससे ये बात तो कही जा सकती है कि अशोक गहलोत निर्दलीय उम्मीदवारों पर बहुत भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा 2016 में सुभाष चंद्रा ने जिस नाटकीय तरीके से हरियाणा में राज्यसभा का चुनाव जीता था । उससे कांग्रेस के प्रमोद तिवारी की चिंता बढ़ी हुआ है और इसी चिंता की वजह से पार्टी ने अपने विधायकों को उदयपुर शिफ्ट कर दिया है ।
हरियाणा की लड़ाई राजस्थान से थोड़ी अलग है लेकिन बीजेपी को यहां भी एक सीट जीतने में कोई समस्या नहीं। हरियाणा में राज्यसभा की पहली वरीयता की सीट जीतने के लिए 31 विधायक और दूसरी सीट जीतने के लिए 30 विधायकों की ज़रूरत है । बीजेपी के पास 40 विधायक हैं यानी बीजेपी उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार की जीत तय है । कांग्रेस के पास 31 विधयक हैं, इस हिसाब से कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन को राज्यसभा पहुंचने में परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा की एंट्री ने अजय माकन की परेशानी बढ़ा दी है । कार्तिकेय शर्मा को दुष्यंत चौटाला की JJP के 10 विधायकों का समर्थन हासिल है, बीजेपी के अतिरिक्त 9 विधायक का समर्थन मिलना भी तय है । दोनों बड़ी पार्टियों के अलावा कार्तिकेय शर्मा के पास 7 निर्दलीय, एचएलपी के 1 विधायक और आईएनएलडी के 1 विधायक का भी समर्थन हासिल है । ऐसे में कार्तिकेय शर्मा के पास 28 विधायक का समर्थन हो जाता है और उन्हें सर्फ 2 विधायकों का समर्थन चाहिए।
हरियाणा कांग्रेस के विधायकों में नाराजगी है इसलिए किसी तरह की बगावत को रोकने के लिए विधायकों को छत्तीसगढ़ शिफ्ट कर दिया गया है । लेकिन पार्टी ने नाराज चल रहे कुलदीप बिश्नोई इन विधायकों के साथ छत्तीसगढ़ नहीं गए हैं। ऐसे में कार्तिकेय शर्मा जिनके पिता पुराने कांग्रेसी रहे हैं अगर वो 2 विधायकों का समर्थन हासिल कर लेते है तो कार्तिकेय शर्मा के पास 30 विधायक हो जाएंगे । जबकि अजय माकन नंबर गेम में 29 पर आ जाएंगे । जिससे कांग्रेस को झटका लगना तय है ।
हरियाणा में राज्यसभा की सीट दिलाने की जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दी गई है । अगर वो अजय माकन को हरियाणा से चुनाव जीतने में कामयाब रहे तो 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस की अगुवाई का मौका मिल सकता है। अगर अजय माकन हारे तो हुड्डा विरोधी हावी हो जाएंगे। इसी तरह से राजस्थान की भी राजनीति है । अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांगेस के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी को जीत दिलाने में कामयाब हो गए तो 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सचिन पायलट पर बढ़त मिल जाएगी। अगर प्रमोद तिवारी हारे तो अशोक गहलोत की मुश्किल बढ़ सकती है।
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