Rakesh Tikait and BKU: चुनावों में भाजपा को वोट की चोट देने की बात करने वाले राकेश टिकैत को चुनाव बाद बड़ी चोट लग गई है। और यह चोट उनको अपने साथियों से ही मिली है। राकेश टिकैत और उनके भाई की अगुआई वाले भारतीय किसान यूनियन में दो फाड़ हो गए हैं। संगठन के प्रमुख नेता और टिकैत के साथी राजेश सिंह चौहान ने भारतीय किसान यूनियन (गैर राजनीतिक) बनाने का ऐलान कर दिया है। और उन्होंने मौका भी उस दिन को चुना, जो राकेश टिकैत और उनके भाई नरेश टिकैत के लिए व्यक्तिगत स्तर पर बेहद अहम है। 15 मई को भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक और टिकैत भाइयों के पिता महेंद्र सिंह टिकैत का पुण्यतिथि थी। भारतीय किसान यूनियन में ऐसा नहीं है कि पहली बार फूट पड़ी है। लेकिन जिस तरह तीन कृषि कानूनों के आने के बाद राकेश टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा बने और फिर मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर हुई। उसके बाद राकेश टिकैत का भारतीय किसान यूनियन को एकजुट न रख पाना बड़ा झटका है।
क्या राकेश टिकैत भटक गए ?
राकेश टिकैत को संगठन में विरोध का अहसास हो गया था। इसीलिए वह पिछले दो दिनों से लखनऊ में डेरा डाले हुए थे। लेकिन वह राजेश चौहान और उनके साथियों को मना नहीं पाए। संगठन से अलग होने का ऐलान करने के बाद राजेश चौहान ने कहा कि हमने फैसला किया है कि हम अलग संगठन बनाएंगे। जिसका नाम भारतीय किसान यूनियन (अराजैनतिक) होगा। चौहान ने इस फैसले पर कहा कि नरेश टिकैत और राकेश टिकैत संगठन का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे थे। ऐसे में हम किसान संगठन के सिद्धातों के खिलाफ नहीं जा सकते थे। उन्होंने कहा कि पिछले 8-9 महीने से हमारे विचार अलग थे। और विचारधारा के स्तर पर हमारी सोच अलग हो गई थी। हम किसानों के हित में बिना किसी राजनीतिक प्लेटफॉर्म के रूप में काम करना चाहते है। ऐसे में अलग होने का ही रास्ता बचा था।
चौहान टिकैत भाइयों पर जो आरोप लगा रहे है, उसका सीधा कनेक्शन 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर है। जिसमें उत्तर प्रदेश सहित सभी विधानसभा चुनावों में राकेश टिकैत , मतदाताओं से भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील कर रहे थे। लेकिन उस अपील का कोई फायदा नहीं दिखा। और भाजपा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में सत्ता में वापसी की। इसी के बाद से साफ हो गया था कि राकेश टिकैत का चुनावी दांव फेल हो गया है। और आगे की रणनीति पर काले बादल छा गए थे। यहां तक कि मुजफ्फर नगर सीट, जहां पर टिकैत भाइयों का गांव सिसौली है। वहां भी भाजपा ने चुनावों में जीत हासिल कर ली। जिले की 6 विधानसभा सीटों में 2 पर भाजपा और 4 पर सपा और रालोद गठबंधन को जीत हासिल हुई।
कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी विरोध भारी पड़ा
असल में जब 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों की कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। उसके बाद भी जिस तरह से विधानसभा चुनावों तक राकेश टिकैत ने भाजपा विरोधी रवैया अपनाया। वह उनके संगठन के एक गुट को रास नहीं आया। सूत्रों के अनुसार सीधा सा मतलब है कि टिकैत राजनीति कर रहे थे। क्योंकि कृषि कानून वापस लेने के बाद खुल कर भाजपा को वोट की चोट देने की मांग करना, राजनीतिक संदेश दे रहा था। और अब जब दोबारा भाजपा की सत्ता यूपी में आ गई है। ऐसे में भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के लिए सरकार के खिलाफ केवल विरोधी छवि बनाए रखना संभव नहीं था। इस वजह से एक गुट ने टिकैत भाइयों से किनारा कर लिया। नए गुट में धर्मेंद मलिक और राजेंद्र सिंह मलिक जैसे नेताओं की भाजपा से करीबी जगजाहिर है।
पंजाब में भी फूट
जिस तरह किसान आंदोलन के समय किसान नेताओं ने एक-जुटता दिखाई थी। वह कृषि कानूनों की वापसी के बाद टूटती चली जा रही है। पंजाब विधान सभा चुनाव में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी राजनीतिक पार्टी 'संयुक्त संघर्ष पार्टी'बनाकर चुनाव लड़ा था। उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई। लेकिन उनके इस फैसले से पंजाब में किसान संगठनों की एकजुटता टूट गई । और संयुक्त किसान मोर्चा के 10 से ज्यादा संगठनों ने दूरी बना ली। यही नहीं हरियाणा में किसान नेताओं ने नया गुट भारतीय किसान यूनियन (भगत सिंह)बना लिया है।
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