नई दिल्ली। पूरे देश में विशाखपत्तनम गैस लीक कांड चर्चा में है। रात का यही 2 से तीन का वक्त था, एलजी पॉलीमर प्लांट के अगल बगल के गांव में लोग गहरी नींद में थे, एकाएक मौत वासी गैस का रिसाव शुरू होना शुरू हुआ, जो लोग गहरी नींद में वो सोये ही रह गए। जंगल में आग की तरह यह खबर फैली प्रशासनिक अमला सक्रिय हुआ। पीड़ित लोगों को अस्पतालों तक ले जाने की कार्रवाई शुरू हुई और इस तरह से एक और हादसे की तस्वीरें ताजा हो गई जो 36 साल पहले जाड़े की रात में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई और उसे हम सब भोपाल गैस कांड के नाम से जानते हैं।
36 साल पुराना मंजर आया याद
हर साल जब दिल्ली समेत उत्तर भारत ठंड की चादर में लिपट जाता है को भोपाल से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक उन लोगों की आवाज गूंजती है जो 36 साल पहले एक आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हैं। 1984 के उस गैस लीक में जो लोग बच गए वो दिव्यांग हो गए यानि की कुछ न कुछ शारीरिक दिक्कतों के साथ जीवन बसर कर रहे हैं। उन बच्चों का कोई कसूर नहीं था जिन्होंने आंख नहीं खोली थी और जब चार दिसबंर की सुबह सूरज की पहली किरणों से सामना हुआ तो परेशानियां उन सबका इस्तकबाल कर रही थीं।
भोपाल गैस केस और विशाखापत्तनम केस में कई अंतर के साथ कई समानताएं हैं। भोपाल में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट का रिसाव हुआ था, उस कंपनी का नाम यूनियन कॉर्बाइड था वो कंपनी भी शहर के बाहर थी तो विशाखापत्तनम में रिसने वाली गैस का नाम स्टाइरीन है, कंपनी का नाम एलजी पॉलीमर है। यह कंपनी भी शहर के बाहर थी। इन अंतरों के साथ समानता यह है कि 36 साल पहले भोपाल जैसी चीत्कार आज विशाखापत्तनम से आ रही थी।
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