Foreign Products: विदेशी उत्पादों के बहिष्कार पर RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कही ये बड़ी बात

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Updated Aug 13, 2020 | 07:05 IST

मोहन भागवत ने कहा कि केवल ऐसी प्रौद्योगिकी या उत्पादों का आयात किया जाए जिसकी देश में पारंपरिक रूप से कमी है या स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है।

RSS Sarsanghchalak Mohan Bhagwat said Swadeshi does not necessarily mean that all foreign products should be boycotted
सरसंघचालक ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी, वैसी नहीं बनी 
मुख्य बातें
  • भागवत ने कहा कि स्वदेशी  का अर्थ जरूरी नहीं कि सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार किया जाए
  • उन्होंने कहा-दुनिया एवं कोविड-19 के अनुभवों से स्पष्ट है कि विकास का एक नया मूल्य आधारित मॉडल आना चाहिए
  • कहा कि विदेशों में जो कुछ है, जरूरी नहीं कि उन सभी का बहिष्कार करना है लेकिन अपनी शर्तो पर लेना है

नयी दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि स्वदेशी (Swadeshi) का अर्थ जरूरी नहीं कि सभी विदेशी उत्पादों (foreign products) का बहिष्कार किया जाए। कोविड-19 के मद्देनजर आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विकरण के वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं और एक आर्थिक मॉडल सभी जगहों पर लागू नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश की जरूरतों के अनुरूप आर्थिक नीति नहीं बनी और दुनिया एवं कोविड-19 के अनुभवों से स्पष्ट है कि विकास का एक नया मूल्य आधारित मॉडल आना चाहिए। भागवत ने साथ ही कहा कि स्वदेशी का अर्थ जरूरी नहीं कि सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार किया जाए।भागवत ने डिजिटल माध्यम से प्रो. राजेन्द्र गुप्ता की दो पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए दुनिया को एक बाजार की बजाए एक परिवार समझने और आत्मनिर्भरता के साथ सद्भावनापूर्ण सहयोग की जरूरत को रेखांकित किया।

'स्वदेशी का अर्थ देशी उत्पादों और प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देना है'

भाजपा नीत राजग सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान का समर्थन करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि स्वदेशी का अर्थ देशी उत्पादों और प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देना है लेकिन इसका मतलब सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार नहीं है।उन्होंने कहा कि केवल ऐसी प्रौद्योगिकी या सामग्रियों का आयात किया जाए जिसकी देश में पारंपरिक रूप से कमी है या स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है।

उन्होंने कहा , 'हमें इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि हमारे पास विदेश से क्या आता है, और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें अपनी शर्तों पर करना चाहिए।'उन्होंने कहा कि विदेशों में जो कुछ है, जरूरी नहीं कि उन सभी का बहिष्कार करना है लेकिन अपनी शर्तो पर लेना है। भागवत ने कहा कि ज्ञान के बारे में दुनिया से अच्छे विचार आने चाहिए।

'अपने लोगों, अपने ज्ञान, अपनी क्षमता पर विश्वास रखने वाला समाज, व्यवस्था और शासन चाहिए'

सरसंघचालक ने कहा कि भौतिकतावाद, जड़वाद और उसकी तार्किक परिणति के कारण व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद जैसी बातें आई । ऐसा विचार आया कि दुनिया को एक वैश्विक बाजार बनना चाहिए और इसके आधार पर विकास की व्यख्या की गई।उन्होंने कहा कि इसके फलस्वरूप विकास के दो तरह के मॉडल आए । इसमें एक कहता है कि मनुष्य की सत्ता है और दूसरा कहता है कि समाज की सत्ता है।

भागवत ने कहा, 'इन दोनों से दुनिया को सुख प्राप्त नहीं हुआ, यह अनुभव दुनिया को धीरे धीरे हुआ और कोविड-19 के समय यह बात प्रमुखता से आई। अब विकास का तीसरा विचार (मॉडल) आना चाहिए जो मूल्यों पर आधारित हो ।' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात इसी दृष्टि से कही है। सरसंघचालक ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी, वैसी नहीं बनी । आजादी के बाद ऐसा माना ही नहीं गया कि हम लोग कुछ कर सकते हैं, अच्छा हुआ कि अब शुरू हो गया है।'

सरसंघचालक ने कहा कि आजादी के बाद रूस से पंचवर्षीय योजना ली गई , पश्चिमी देशों का अनुकरण किया गया । लेकिन अपने लोगों के ज्ञान और क्षमता की ओर नहीं देखा गया ।उन्होंने कहा कि अपने देश में उपलब्ध अनुभव आधारित ज्ञान को बढ़ावा देने की जरूरत है।

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