नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। कोर्ट ने इसके लिए समिति बनाने के निर्देश दिए हैं, जिसमें तीन विशेषज्ञों को शामिल करने की बात कही है। इनमें से एक एक्सपर्ट जहां केरल से होंगे, वहीं दूसरे तमिलनाडु से और तीसरे केंद्र से होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 के तहत राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) द्वारा आवश्यक कदम उठाने के लिए निगरानी समिति को मजबूत बनाने की बात भी कही है। अदालत ने दो टूक कहा कि अगर उसके निर्देशों का पालन नहीं होता है तो यह अदालत की अवहेलना होगी।
शीर्ष अदालत ने इस मसले पर विवाद को लेकर केरल और तमिलनाडु को इतिहास में नहीं जाने की नसीहत देते हुए बांध के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने को कहा। साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि निगरानी समिति जिन दिशा-निर्देशों को भी जारी करे, उसका अनुपालन दोनों राज्य करें।
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इस मामले में अंतरिम निर्देश जारी करते हुए कहा कि मुल्लापेरियार बांध की पुनर्गठित पर्यवेक्षी समिति (supervisory committee) एक नियमित प्राधिकरण की स्थापना तक सभी वैधानिक कार्यों को अंजाम देगी। कोर्ट ने कहा कि जब तक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) पूरी तरह से काम संभालने की स्थिति में नहीं होगा, तब तक बांध की सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों में उसके अंतरिम आदेश से पुनर्गठित पर्यवेक्षी समिति ही जवाबदेह होगी।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने की, जहां मुल्लापेरियार बांध को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। 1895 में केरल के इडुक्की जिले में पेरियार नदी पर बने इस बांध को लेकर केरल और तमिलनाडु के बीच विवाद की स्थिति है।
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