क्या आपने सैम बहादुर के किस्से सुने हैं? गोरखा बटालियन के वो वीर योद्धा जो भारतीय सेना के इतिहास में सबसे चमकता हुआ सितारा है। हम बात कर रहे हैं सैम मानेकशॉ यानी फील्ड मार्शल सैम होरमुसजी फ्रमजी जमशेदजी मानेकशॉ की। 1971 का युद्ध भारत ने जीता तो इसमें सैम मानेकशॉ की बड़ी भूमिका थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तो फरवरी 1971 में ही ये युद्ध ठान लेना चाह रही थीं लेकिन सैम मानेकशॉ ने उनसे 6 महीने का वक्त मांगा और कहा की जीत आपकी ही होगी। सैम मानेकशॉ को अपने ऊपर इतना भरोसा था। लेकिन आज हम आपको कहानी बताएंगे कि कैसे 1000 रुपये न चुकाने वाले पाकिस्तानी जनरल से पैसों के बदले एक पूरा देश ही सैम मानेकशॉ ने ले लिया।
एक किस्सा जो काफी मजेदार
बात है 1947 की। तब इंडियन या पाकिस्तानी आर्मी नहीं थी। तब थी ब्रिटिश इंडियन आर्मी। 1971 की जंग में पाकिस्तानी आर्मी के अध्यक्ष थे याह्या खान और भारतीय सेना का निर्देशन कर रहे थे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। सैम मानेकशॉ और याह्या खान 1947 से पहले दिल्ली में थे और दोनों काफी करीबी दोस्त थे। सन 47 के दौरान याह्या खान और सैम बहादुर फील्ड मार्शल सर क्लाउड ओचिनलेक के स्टाफ में शामिल थे। इन दोनों दोस्तों की सीधी जंग हुई थी 71 की जंग में लेकिन एक किस्सा है दोनों से जुड़ा हुआ जो काफी मजेदार है।
बाइक का सौदा तो हुआ लेकिन...
सैम मानेकशॉ के पास 47 के जमाने में एक लाल रंग की जेम्स मोटरसाइकिल हुआ करती थी और पाकिस्तानी जनरल याह्या खान को ये मोटरसाइकिल बहुत पसंद थी। सैम में अकसर याह्या खान इस बाइक की तारीफ किया करते थे। यहां तक कि एक दिन याह्या खान ने सैम को ये कह दिया कि वो ये बाइक खरीदना चाहते हैं जिसके लिए वो 1000 रुपये देने के लिए तैयार हो गए। सैम राजी भी हो गए। बाइक का सौदा तो हुआ लेकिन कुछ ही दिनों के बाद देश का बंटवारा हो गया। याह्या खान पाकिस्तान चले गए और अपने साथ वो जेम्स मोटरसाइकिल भी ले गए। मोटरसाइकिल तो ले गए लेकिन उन्होंने सैम बहादुर को इसके पैसे नहीं चुकाए।
आधे देश के साथ इसकी कीमत चुकाई
16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष याह्या खान इतने शर्मसार हुए कि पाकिस्तान की कमान जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी। पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया और सरेंडर के बाद सैम ने कहा था ‘याह्या ने मेरी मोटरसाइकिल के लिए कभी 1000 रुपए नहीं दिए लेकिन अब उन्होंने अपना आधे देश के साथ इसकी कीमत चुकाई है।’ पाकिस्तान आर्मी के सरेंडर के बाद 20 दिसंबर 1971 को जनरल याह्या को हटा दिया गया और उनके सारे सम्मान भी वापस ले लिए गए थे। पाकिस्तान में याह्या खान की नजरबंदी का आदेश दिया गया। 1977 में उन्हें कई पाबंदियों के साथ रिहा गया।
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