नई दिल्ली : साल 1975 में देश में लगे आपातकाल को 'पूरी तरह से असंवैधानिक' घोषित करने की मांग वाली अर्जी की वैधानिकता जांचने के लिए तैयार हो गया है। इस अर्जी पर सोमवार को सुनवाई करने के बाद शीर्ष अदालत ने सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। एक 94 साल की महिला ने उच्चतम न्यायालय में याजिका दायर की है। जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली पीठ ने हालांकि, याचिकाकर्ता को अपनी अर्जी में संशोधन करते हुए उसे दोबारा दायर करने के लिए कहा है।
कोर्ट ने कहा-हम अर्जी की वैधानिकता परखेंगे
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आपातकाल के 45 साल गुजर जाने के बाद 1975 के आपातकाल की संवैधानिक वैधता की जांच करने के बारे में हम यह देखेंगे कि क्या इस पर सुनवाई करना व्यावहारिक अथवा वांछनीय है कि नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा, 'हम इसके सभी पहलुओं को खोलने के अनिच्छुक है क्योंकि उस दौरान कई लोगों के साथ गलत चीजें हुई होंगी। आपातकाल के 45 साल गुजर जाने के बाद उन घावों को कुरेदना अनुचित होगा।'
'इतिहास की कुछ घटनाओं को फिर से देखने की जरूरत'
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने पीठ से कथित रूप से कहा कि सत्ता के दुरूपयोग के बारे में एक संवैधानिक सिद्धांत है और जब नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित किए जाने पर इन्हें लागू किया जा सकता है। साल्वे ने कहा कि इतिहास की कुछ खास घटनाओं को फिर से देखने की जरूरत है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि 'साल 1975 में कुछ घटित हुआ जिसे नहीं होना चाहिए था।'
'90 साल के बुजुर्गों को भी नहीं बख्शा जाता'
वरिष्ठ वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि उनके पति उस समय 19 महीने तक जेल में रहे। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि आपातकाल लागू करने वाले व्यक्ति अब जीवित नहीं हैं। साल्वे ने कहा कि एडोल्फ हिटलर के मर जाने के बाद भी 'आज भी युद्ध अपराधों की सुनवाई होती है और इन अपराधों के लिए 90 साल के बुजुर्गों को भी नहीं बख्शा जाता।' वकील ने दलील देते हुए कहा कि आपातकाल के इन 19 महीनों में मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। इतिहास को यदि सुधारा नहीं गया तो यह खुद को दोहराता है।
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