गांधी जब एक साल के थे तब बना राजद्रोह कानून, अब 2022 में लगी रोक, जानें किस राज्य में सबसे ज्यादा मामले

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated May 11, 2022 | 21:13 IST

Sedition Law Hold: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक IPC की धारा 124-ए की पुर्नसमीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाय। इसके अलावा कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में भी राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर रोक लगा दी है।

Supreme Court on Sedition Law
राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला 
मुख्य बातें
  • राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के आधार पर लागू होता रहा है।  
  • इसे साल 1870 में अंग्रेजों द्वारा लाया गया था।
  •  2014 से 2021 के बीच देश में कुल 399 राजद्रोह के केस दर्ज किए गए हैं। लेकिन अपराध साबित होने की दर जो 2016 में 33.3 फीसदी थी वह गिरकर 2019 में 3.3 फीसदी हो गई।

Sedition Law Hold: 21 वीं सदी में 152  साल पुराने कानून के आधार पर फैसला किया जाय, यह सुनने में अजीब लगता है । लेकिन भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून के आधार पर ही अभी तक राजद्रोह के केस दर्ज होते आए हैं। अहम बात यह है कि इस कानून के दायरे मे  बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर भी आ चुके हैं। और उन पर भी राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने 1870 में बने राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी है।

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक IPC की धारा 124-ए की पुर्नसमीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। इसके अलावा कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है। वहीं, इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं। यह कानून कितना पुराना है इसे इसी से समझा जा सकता है। कि जब 1870 में यह कानून लागू किया गया था तब महात्मा गांधी की उम्र एक साल की थी।

क्या है राजद्रोह कानून

राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के आधार पर लागू होता है।  इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है। तो उसके खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज होता है। इसी तरह राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करने पर भी राजद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है।

अपराध साबित होने की दर बेहद कम

असल में राजद्रोह कानून पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि पिछले 7 साल के आंकड़े देखे जाए तो राजद्रोह के केस तो बढ़े हैं। लेकिन अपराध साबित होने की दर लगातार घट गई है।  2014 से 2021 के बीच देश में कुल 399 राजद्रोह के केस दर्ज किए गए हैं। लेकिन अपराध साबित होने की दर जो 2016 में 33.3 फीसदी थी , वह गिरकर 2019 में  3.3 फीसदी हो गई। इसी वजह से इस कानून के दुरूपयोग का आरोप विपक्ष लगाता रहता है।

साल राजद्रोह केस सबसे ज्यादा राजद्रोह केस दर्ज होने वाले 3 राज्य अपराध साबित होने की दर (फीसदी में)
2020 73 मणिपुर, असम, उत्तर प्रदेश -
2019 93 कर्नाटक, असम, जम्मू और कश्मीर 3.3
2018 70 झारखंड, असम, जम्मू और कश्मीर 15.5
2017 51 असम,हरियाणा,हिमाचल प्रदेश 16.7
2016 35 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक 33.3
2015 30 बिहार, राजस्थान, पंजाब 0
2014 47 बिहार, झारखंड, केरल 25
कुल 399    

स्रोत-एनसीआरबी और गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिया गया जवाब


क्यों सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के आधार पर लागू होता है।  इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है। तो उसके खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज होता है। इसी तरह राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करने पर भी राजद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है।

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इस कानून का लंबे वक्त से देश में विरोध किया जा रहा है। विरोधियों का तर्क हैं कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना है, तब इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेज अपने खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर करते थे। आजाद भारत में ऐसे कानून की जरूरत नहीं है। देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर राजद्रोह लगाया गया था। यही नहीं बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, विनायक दामोदर सावरकर तक पर राजद्रोह का केस दर्ज हो चुका है। शुरू में कानून का समर्थन कर रही केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि  वो इस कानून की समीक्षा करने को तैयार है, लिहाजा इसकी वैधता पर कोर्ट विचार न करे। अब देखना है कि केंद्र सरकार अपनी समीक्षा में इस कानून को लेकर क्या नया खाका पेश करती है।

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