युवा नेता जितिन प्रसाद भी कांग्रेस छोड़ गए हैं। जितिन ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और युवा हैं। वह बुधवार को दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। इसे कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। युवा नेता के पार्टी छोड़कर जाने से कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और युवा नेताओं में असंतोष और नाराजगी दिख रही है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस के नेताओं के बीच जो उथल-पुथल मची हुई है पार्टी नेतृत्व उसे शांत नहीं कर पा रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद भाजपा में शामिल होने वाले जितिन प्रसाद कांग्रेस के नए नेता है। उनके बाद पार्टी छोड़ने का सिलसिला यहीं थम जाएगा, इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
गुटबाजी का शिकार है पंजाब कांग्रेस
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर और नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई जगजाहिर है। चुनाव से पहले यहां भी कांग्रेस के नेता दल बदल सकते हैं। कांग्रेस में नेतृ्त्व एवं उसके कामकाज को लेकर पार्टी नेताओं की आपत्तियां नई नहीं हैं। नेतृत्व में बदलाव और नया अध्यक्ष चुनने के लिए पार्टी के 23 नेता पत्र लिखे चुके हैं। इन 23 नेताओं में पुराने आर नए दोनों नेता शामिल हैं। नेताओं को लगता है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में आलाकमान पार्टी को सही दिशा नहीं दे पा रहा है। वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल समय-समय पर पार्टी के इस संकट की तरफ इशारा कर चुके हैं।
राजस्थान में सचिन पायलट का असंतोष सामने आ जाता है
किसी भी पार्टी के लिए युवा नेता उसकी ताकत होते हैं जो आगे चलकर पार्टी की कमान संभालते हैं लेकिन कांग्रेस में युवा नेता अपने लिए कोई भविष्य नहीं देख पा रहे हैं। राजस्थान में पिछले साल सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच सत्ता की लड़ाई जिस तरह से चली उसे सभी ने देखा। राजस्थान में गहलोत सरकार गिरते-गिरते बची। हालांकि, काफी मान-मनौव्वल के बाद पायलट पार्टी में बने रहने के लिए तैयार हुए लेकिन समय-समय पर उनका असंतोष सामने आ जाता है। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा और हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा भी पार्टी से खफा बताए जाते हैं। आने वाले दिनों में ये नेता भी यदि अपना राजनीतिक भविष्य तलाशते हुए कहीं और नजर आएं तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए।
युवा नेताओं में भरोसा नहीं जगा पा रही कांग्रेस
कांग्रेस नेतृत्व अपने नेताओं में भरोसा नहीं जगा पा रहा है। कोरोना संकट के समय लोग व्यवस्था से परेशान दिखे। विपक्षी दलों के लिए जनता के साथ खड़े होने और सरकार को घेरने का यह अच्छा मौका होता है लेकिन कांग्रेस नेतृत्व जिस तरह की टोकन और वर्चुअल वाली राजनीति कर रहा है इससे उसका भला नहीं होने वाला है। केवल ट्वीट करने से राजनीति नहीं चलती। महंगाई जैसा मुद्दा जो जनता से सीधा जुड़ा है, इस पर भी देश की सबसे पुरानी पार्टी सरकार को बैकफुट पर नहीं ला पाई है। कांग्रेस में भरोसे का जो संकट खड़ा हुआ है उसे यदि दूर नहीं किया गया तो आने वाले समय में पार्टी को और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस नेतृत्व को अपने अहं से ऊपर उठकर गंभीरता से पार्टी के संकट को समझने और उसे दूर करने की जरूरत है।
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