नई दिल्ली: कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के बाद से दिल्ली की सेक्स वर्कर पर खाने का संकट मंडरा रहा है। लोगों के बाहर निकले पर पाबंदी है जिसकी वजह से ये सेक्स वर्कर बेहद कठिक दौर से गुजर रही हैं। इन्हें पैसों की कमी के कारण जीवित रहने के लिए संघर्ष कर करना पड़ रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जीबी रोड पर रहने वाली एक सेक्स वर्कर का कहना है कि 'क्या हम इंसान नहीं हैं जो हमें इस तरह मरने के लिए छोड़ दिया गया है?' यहां चार हजार से अधिक सेक्स वर्कर आमतौर पर तंग बहुमंजिला वेश्यालयों से रहती हैं। इनमें से कम से कम दो हजार अभी भी अपने क्वार्टर में रह रही हैं जबकि अन्य को उनके हेंडलर्स ने स्थानांतरित कर दिया है।
'लॉकडाउन के कारण कोई भी नहीं आ रहा'
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में सेक्स वर्कर ने कहा कि वो पिछले तीन दिनों से फोन कर रही हैं क्योंकि उनके पास खाना खत्म हो चुका है। एनजीओ मिशन मुक्ति फाउंडेशन के निदेशक वीरेंद्र कुमार ने कहा कि फोन कॉल आने के बाद वे दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अधिकारियों के साथ मिलकर सेक्स वर्कर से मिलने पहुंचे। वीरेंद्र ने कहा, 'हमने वहां रहने वाली महिलाओं को बहुत उदास अवस्था में देखा। उनके पास सिर्फ वक्त के भोजन का राशन था। चूंकि लॉकडाउन के कारण कोई भी वेश्यालय नहीं आ रहा है, इसलिए उनके पास पैसा कमाने का कोई रास्ता नहीं है। वे दूध जैसे जरूरी सामान खरीदने में भी सक्षम नहीं हैं।'
'मुश्किल समय में इन महिलाओं की मदद करें'
कुमार ने कहा कि वह वेश्यालय की एक सूची बना रहे हैं जहां मदद की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, 'हम इन महिलाओं के लिए दान के जरिए भोजन खरीदेंगे ताकि वे इसे कम से कम एक सप्ताह तक स्टॉक कर सकें। मैं एजेंसियों से आग्रह करता हूं कि इस मुश्किल समय के दौरान इन महिलाओं की मदद करें।' वहीं, एक सेक्स वर्कर ने अफसोस जताते हुए कहा, 'दिल्ली सरकार कई स्कूलों में भोजन उपलब्ध करा रही है, लेकिन हमें बाहर जाने में शर्म महसूस होती है। इसलिए, हमने खुद को वेश्यालय में बंद कर लिया है। हमारे पास पिछले दो दिनों से दवा नहीं है और न ही खाया है। हम इस तरह मर जाएंगी।'
'कम-से-कम हमारे बच्चों को तो बचा लो'
इनमें से कई सेक्स वर्कर के बच्चे भी हैं, जो उनके लिए चिंता का एक और कारण है। एक अन्य सेक्स वर्कर ने कहा, 'हममें से कुछ के पास बचत बाकी है। लेकिन चीजें इसी तरह जारी रहेंगी तो कुछ ही समय में यह भी खत्म हो जाएगी। मेरे पास अपने बच्चे को पिलाने के लिए दूध नहीं है। हम जानते हैं कि हम समाज में बहिष्कृत हैं, लेकिन हैं तो हम भी इंसान ही। अगर सरकार हमें नहीं बचागी तो आखिरकार हम भूखे मर जाएंगीं। हमें नहीं बचाओ मगर कम-से-कम हमारे बच्चों को तो बचा लो।' एक 50 वर्षीय सेक्स वर्कर ने बताया, 'लोग हमें असम्मान के साथ देखते हैं और हमारे साथ अछूतों की तरह व्यवहार करते हैं। इसीलिए हम भूख राहत केंद्रों में नहीं जा रही हैं। छोटी लड़कियों को निकाल लिया गया है, लेकिन हमें कहीं नहीं जाना है। पिछले 35 साल से मैं इस वेश्यालय में हूं लेकिन कभी इस तरह भूखी नहीं रही।'
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