नई दिल्ली। महाराष्ट्र में शनिवार को राजभवन से जो तस्वीर सामने आई वो चौंकाने वाली थी। देवेंद्र फडणवीस के शपथ लेने के बाद एक चेहरा सामने दिखा जो डिप्टी सीएम पद की शपथ ले रहे वो कोई और नहीं बल्कि शरद पवार के भतीजे अजित पवार थे। ये बात अलग है कि शुक्रवार की रात वो उस बैठक में शामिल थे जो भावी गठबंधन सरकार की रूपरेखा तय कर रही थी।
अजित पवार के इस कदम पर उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले ने कहा कि आज पार्टी और परिवार में बंटवारा हो गया। इसके साथ ही एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा कि विधायकों की दस्तखत का दुरुपयोग हुआ है। हम इसे कहें कि दस्तखत के खेल में एनसीपी फेल हो गई तो गलत न होगा। अगर हम सुप्रिया सुले और नवाब मलिक के बयान को देखें तो यह कहना भी गलत न होगा कि अजित पवार ने एनसीपी को तोड़ दिया है। इन सबके बीच 41 साल पुराना उस राजनीतिक घटनाक्रम की याद ताजी हो जाती है जब शरद पवार ने सरकार बनाने के लिए पार्टी तोड़ दी थी।
1977 में लोकसभा का चुनाव आपातकाल के बाद कराया गया था और उस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। महाराष्ट्र भी अछूता न रहा। उस समय महाराष्ट्र के सीएम शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी जगह वसंत दादा पाटिल को सीएम बनाया गया। लेकिन कांग्रेस यू और आई में बंट गई। यही वो समय था जब शरद पवार अपने गुरु की पार्टी कांग्रेस यू में शामिल हो गए।
1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव हुआ और दोनों धड़े अलग अलग चुनाव में गए। जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए दोनों धड़े एक बार फिर साथ आए। वसंत दादा पाटिल सीएम बने रहे और शरद पवार को उद्योग और श्रम मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। 1978 में ही शरद पवार, कांग्रेस यू से अलग हुए जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली। लेकिन जनता पार्टी की मदद लंबे समय तक कायम नहीं रही।
1980 में केंद्र में इंदिरा गांधी सत्ता में आ चुकी थीं और महाराष्ट्र में शरद पवार की अगुवाई वाली प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार गिर गई। 41 साल महाराष्ट्र का राजभवन कुछ उस तरह की तस्वीर का गवाह बना। देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार की गलबहियां पर शरद पवार ने कहा कि ये बात सच है कि अजित पवार उनसे मिले। लेकिन वो सुबह सुबह होने वाले शपथ ग्रहण से हैरान है। जहां तक अजित पवार के खिलाफ कार्रवाई का सवाल है तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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