Survival Test For Congress: क्या कांग्रेस को पांच राज्यों के चुनावी परिणाम से सबक नहीं सीखना चाहिए?

देश
बीरेंद्र चौधरी
बीरेंद्र चौधरी | सीनियर न्यूज़ एडिटर
Updated May 05, 2021 | 14:12 IST

हाल ही में असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुड्डुचेरी विधानसभा के नतीजे घोषित हुए। लेकिन कांग्रेस किसी भी राज्य में जीत हासिल नहीं कर सकी। बंगाल में तो पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया।

Survival Test For Congress: क्या कांग्रेस को पाँच राज्यों के चुनावी परिणाम से सबक नहीं सीखना चाहिए?
कांग्रेस की सभी पांचों राज्यों में पराजय, राहुल गांधी की कोशिश रही नाकाम 
मुख्य बातें
  • कांग्रेस का बंगाल में खाता नहीं खुला, पुड्डुचेरी में खराब प्रदर्शन
  • केरल में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा
  • असम में सीटों की संख्या में मामूली बढ़ोतरी, तमिलनाडु में स्टालिन के दम पर कामयाबी फीकी

नई दिल्ली। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम ने कांग्रेस पार्टी के लिए एक संकट का स्पष्ट संकेत दिया है कि यदि अस्तित्व बचाना है तो कुछ कठिन निर्णय लेने होंगे अन्यथा पार्टी भारी संकट आ सकती है । इस अस्तित्व संकट को समझने के लिए कांग्रेस के पांच राज्यों के चुनाव में हुए परफॉरमेंस को समझना होगा ।

पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में काँग्रेस का परफॉर्मेंस

राज्य कुल सीट चुनाव लड़े चुनाव जीते
असम 126 95 29
केरल 140 94 21
पुड्डुचेरी 30 14 2
तमिलनाडु 234 25 18
पश्चिम बंगाल 294 91 0
कुल 824 318 70

क्या है इसका अर्थ

पांच राज्यों में कुल 824 विधान सभा सीटें हैं जिसमें काँग्रेस को 70 सीटों पर जीत हासिल हुई यानि 8 फीसदी सीटों पर जीत और यदि 318 सीटों के हिसाब से देखें तो जीत का फीसदी बनता है 22 प्रतिशत । काँग्रेस के लिए खतरे की घंटी ।

कांग्रेस का राज्यों में चुनावी परफॉर्मेंस

असम विधानसभा चुनाव 2016 विधामसभा चुनाव 2021 स्विंग
सीट 26 29 3
वोट प्रतिशत 31.3 29.67 -1.63%

क्या है इसका अर्थ
2016 चुनाव की तुलना में काँग्रेस ने अबकी बार 3 सीटों की बढ़ोत्तरी की लेकिन ये सत्ता के लिए काफी नहीं था । साथ ही काँग्रेस को वोटों की संख्या में 1.63 फीसदी का नुकसान का सामना करना पड़ा है । काँग्रेस ने आठ पार्टियों का गठबंधन बनाया लेकिन सत्ता में वापसी नहीं हुई । एनडीए असम में लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस आ गयी है ।
केरल

केरल विधानसभा चुनाव 2016 विधामसभा चुनाव 2021 स्विंग
सीट 22 21 -1
वोट प्रतिशत 23.8 25.12 1.32%

क्या है इसका अर्थ
केरल के पांच दशक के चुनावी इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जिसमें एलडीएफ लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस आ गयी है । लेफ्ट गठबंधन की इसी वापसी ने काँग्रेस और उसके गठबंधन यूडीएफ पर हजार सवाल खड़े कर दिये हैं । खासकर के राहुल गांधी पर सीधे सीधे क्योंकि खुद राहुल गांधी केरल के वायनाद से लोक सभा एमपी हैं उसके बाद भी अपने गठबंधन को जीता नहीं पाते हैं ।

पुड्डुचेरी

पुड्डुचेरी विधानसभा चुनाव 2016 विधामसभा चुनाव 2021 स्विंग
सीट 15 2 -13
वोट प्रतिशत 31.1 15.71 -15.39%

क्या है इसका अर्थ
पिछले पाँच वर्षों से पुडुचेरी में काँग्रेस की सरकार रही है लेकिन चुनाव से कुछ महिने पूर्व तास के पत्ते की तरह पार्टी बिखर गयी और उसके बाद हुए चुनाव में काँग्रेस 30 सीटों की विधान सभा में सिर्फ 2 सीटें जीत पाई। पहली बार एनडीए पुडुचेरी में सत्ता में आई है जिसका नेतृत्व एनआर काँग्रेस के नेता रंगस्वामी कर रहे हैं और रंगस्वामी दूसरी बार पुडुचेरी के मुख्यमंत्री बनेंगे । काँग्रेस का जिस तरह का परफॉर्मेंस हुआ है वह अपने आप में काँग्रेस और राहुल गांधी पर अनगिनत सवाल खड़ा कर रहा है ।
तमिलनाडु

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2016 विधामसभा चुनाव 2021 स्विंग
सीट 8 18 10
वोट प्रतिशत 6.5 4.27 -2.23%

क्या है इसका अर्थ
काँग्रेस के लिए तमिलनाडु ही अकेला राज्य है जहां उसे खुश होने के लिए कुछ तो मिला है क्योंकि 10 वर्षों के बाद एमके स्टेलिन के नेतृत्व में डीएमके सत्ता में वापस आ रही है । वाजिब है कि काँग्रेस डीएमके गठबंधन का अंग है इस नाते उसे भी मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिलेगा । वैसे आंकड़ों के हिसाब से पिछली बार कि तुलना में काँग्रेस का सीट तो बढ़ा है लेकिन वोटों कि संख्या काफी घाट गयी है ।

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2016 विधामसभा चुनाव 2021 स्विंग
सीट 44 0 -44
वोट प्रतिशत 12.4 2.93 -9.47%

क्या है इसका अर्थ
पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब काँग्रेस पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। अंदाज लगा सकते हैं कि जिस पार्टी ने 2016 के विधान सभा चुनाव में 44 सीटें जीती थी और अबकी बार शून्य । वोटों के प्रतिशत में जो गिराबट आई है वो तो बात ही अलग है । 2016 में 12.4 फीसदी और 2021 में 2.93 फीसदी ।

क्या कांग्रेस को पांच राज्यों के चुनावी परिणाम से सबक नहीं सीखना चाहिए ?
लोक सभा चुनाव 2019 के बाद देश में 14 राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए हैं जिसमें से काँग्रेस गठबंधन को सिर्फ दो चुनावों में सफलता मिली है और वो दो राज्य हैं महाराष्ट्र और झारखंड । और तमिलनाडु को जोड़ दें तो 3 राज्यों की लिस्ट बनती है । इन तीनों राज्यों में कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका निभा रही है । और वैसे देखा जाए तो पूरे देश में काँग्रेस सिर्फ तीन राज्यों में सत्तासीन है राजस्थान , छत्तीसगढ़ और पंजाब । अभी हुए पांच राज्यों के चुनाव ने काँग्रेस को सोचने को मजबूर कर दिया है कि पार्टी के लिए कुछ सोचो अन्यथा पार्टी डूब जाएगी।

क्या राहुल गांधी कांग्रेस को बचा पाएंगे ?
राहुल गांधी ने 2004 में राजनीति में प्रवेश करते हुए लोक सभा चुनाव जीता था और उसके बाद 2009 , 2014 और 2019 लोक सभा चुनाव जीते हैं । कहने का मतलब है कि राहुल गांधी पिछले 17 साल से राजनीति और चुनाव को काफी नजदीक से देखा है लेकिन अभी भी राहुल गांधी नव सीखुए कि तरह ही व्यवहार कराते दिखते हैं और सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि काँग्रेस के बड़े नेता 50 वर्षीय राहुल गांधी को अभी भी युवा नेता ही घोषित करने में लगे रहते हैं ।

राहुल गांधी की सफलता और असफलता एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं । 2019 लोक सभा चुनाव के बाद अबतक 14 राज्य विधान सभा के चुनाव हुए हैं जिसमें जूनियर पार्टनर के रूप में काँग्रेस गठबंधन को सिर्फ 3 राज्यों में सफलता मिली है और वो राज्य हैं महाराष्ट्र , झारखंड और तमिलनाडु। खास बात ये है कि इन तीनों राज्य सरकारों में काँग्रेस कि स्थिति नगण्य है । इसके अलाबे देश में सिर्फ 3 राज्य हैं जहां काँग्रेस की सरकार है : राजस्थान , पंजाब और छत्तीसगढ़ लेकिन इन तीनों राज्यों के चुनाव जीतने में राज्य के नेताओं का योगदान रहा है ना कि राहुल गांधी का । लगता नहीं कि राहुल गांधी काँग्रेस को बचा पाएंगे क्योंकि भारत के वर्तमान राजनीति में 24 घंटे राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ चाहिए जिसमें राहुल गांधी फिट नहीं बैठते ।

क्या कांग्रेस एक कठिन निर्णय लेने को तैयार है ?
समय आ गया है कि कांग्रेस को एक कठोर निर्णय लेना होगा जिससे कांग्रेस आत्म निर्भर बन सके। आखिर गांधी परिवार को कब तक ढोएंगे वो भी तक जब उनके सिक्के चलने बंद हो गए हों । इसलिए जरूरी है कि काँग्रेस के दिग्गज तय करें कि उनमें से कौन ऐसा नेता है जो पार्टी को लीड कर सके और काँग्रेस के भविष्य को बचा सके ।

आखिर में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद से भारत की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है जिसका आधार है 24 घंटे राजनीति यानि आपको यदि राजनीति में रहना है तो 24 घंटे राजनीति में ही रहना होगा । लॉलीपॉप राजनीति से अब राजनीति नहीं होगा । इसीलिए कांग्रेस को एक नए नेता चुनना होगा जो पार्टी नयी दिशा और नयी ऊर्जा का संचार कर सके ।

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