नई दिल्ली: वैसे तो लोक सभा चुनावों में अभी करीब तीन साल बाकी हैं। लेकिन विपक्ष अभी से भाजपा को हराने के लिए एक जुट होने की कोशिशें करने लगा है। इसी कड़ी में आज कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी 15-18 दलों के नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक करने वाली है। इस बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी, शिव सेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे, डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम.के.स्टालिन, झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख और झारखंड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन जैसे दिग्गज नेताओं के भाग लेने की उम्मीद है। इसके अलावा समाज वादी पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल सहित 18 दलों के नेताा इस बैठक में शामिल हो सकते हैं। मीटिंग का एक ही एजेंडा है कि विपक्षी दल एक-जुट होकर 2024 और आने वाले विधान सभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला कर सके।
आम आदमी पार्टी को निमंत्रण नहीं
आज होने वाली बैठक में आम आदमी पार्टी को न्यौता नहीं दिया गया है। जबकि बसपा ने दूरी बनाई हुई है। इसकी दो प्रमुख वजहे हैं, असल में जब राहुल गांधी ने 3 अगस्त को जब 18 विपक्षी दलों की मीटिंग बुलाई थी, तो उसमें बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी के नेताओं ने शिरकत नहीं की थी। ऐसा माना जा रहा था कि पंजाब में होने वाले विधान सभा चुनावों को देखते हुए इन दोनों दलों ने राहुल की मीटिंग से दूरी बनाई थी। उन दोनों दलों की दूरी को देखते हुए, इस बार मीटिंग में नहीं बुलाया गया है। सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार ने राहुल की बैठक पर बोलते हुए कहा था टाइम्स नाउ नव भारत डिजिटल से कहा था देखिए मीटिंग और नाश्ते से ज्यादा कुछ नहीं होने वाला है, इस तरह की कवायद होती रहती हैं। यह बात समझना होगा कि कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व देने के लिए तैयार होना होगा। क्योंकि अभी कांग्रेस के अंदर भी कई चुनौतियां, उसे भी ठीक करना जरूरी है। दूसरी बात यह है कि देश में अभी भी 225 सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। जहां तक क्षत्रपों की बात है तो वह अपने राज्य तक ही सीमित है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में ही मजबूत गठबंधन बन सकता है।
कितने मजबूत हैं विपक्षी दल
अगर आज की बैठक में भाग लेने वाले 15 विपक्षी दलों की मौजूदा ताकत देखी जाय तो उनकी लोक सभा में करीब 140 सीटें हैं। जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास 334 सीटें हैं। इसे देखते हुए सवाल यही है कि क्या सोनिया गांधी इन नेताओ को एकजुट कर पाएंगी। और उसके बाद यह दल मिलकर 272 का जादुई आंकड़ा छू पाएंगे। क्योंकि ऐसा होने पर ही वह भाजपा को सत्ता से बेदखल कर पाएंगे। जो कि इतना आसान नहीं दिखता है।
विपक्ष में अभी किस दल के पास कितनी सीटें
कांग्रेस - 52
डीएमके-24
टीएमसी-22
शिवसेना-18
एनसीपी-5
सपा- 5
नेशनल कांफ्रेंस-3
इन दलों को लेकर कन्फ्यूजन
इसके अलावा अभी तक बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, तेलगूदेशम पार्टी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। हाल ही में ऐसी खबरें थी कि आंध्र प्रदेश में भाजपा वाईएसआर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के करीब पहुंच गई है। इसके लिए मुख्य मंत्री जगन मोहन रेड्डी तैयार हो गए थे। इस फॉर्मूले में वाईएसआर कांग्रेस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलनी थी। लेकिन वह बात बिगड़ गई। साफ है कि भाजपा इन दलों को अपने साथ लेने की कवायद में लगी हुई है। नवीन पटनायक के नेतृत्व वाला बीजू जनता दल भी कई बार भाजपा का राज्य सभा में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से साथ मिलता रहा है। इसके अलावा तेलगुदेशम प्रमुख चंद्र बाबू नायडू भी 2014 में एनडीए के साथी रह चुके हैं।
वाईएसआर कांग्रेस-22
बीजू दनता दल -12
बसपा -10
टीआरएस -9
तेलगू देशम पार्टी-3
आज की बैठक में क्या निकल सकता है फॉर्मूला
सूत्रों के अनुसार आज की बैठक में खास तौर से उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनावों के लिए रणनीति बन सकती है। मौटे तौर पर कांग्रेस के अलावा दूसरे दल इस बात की मांग कर रहे हैं कि जिस प्रदेश में जिस विपक्षी दल की भाजपा को हराने की ज्यादा संभावना है, उसे बाकी दल समर्थन करें। मसलन समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के लिए यह चाहेगी कि कांग्रेस उसके साथ आए। इस बात का इशारा सपा प्रमुख अखिलेश यादव पिछले महीने कर चुके हैं। जब उन्होंने कहा था कि कांग्रेस तय करे कि उत्तर प्रदेश में उसकी सबसे बड़ी दुश्मन भाजपा है या कोई और पार्टी। इस प्रस्ताव को कांग्रेस के लिए मानना है इतना आसान नही है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पिछले तीन साल से पार्टी को मजबूत करने में लगी हुई हैं। इसके अलावा आज की बैठक में महंगाई, संसद के मानसून सत्र, कोविड-19 और किसान आंदोलन को लेकर संयुक्त पत्र भी जारी किया जा सकता है।
दिल्ली में बैठक और अपने गढ़ में दुश्मनी
जिस तरह से कांग्रेस और समाज वादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में एक साथ लड़ना आसान नहीं है, उसी तरह की चुनौती दूसरे राज्यों में भी दिख रही है। हाल ही में असम कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सुष्मिता देव तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गई हैं। और त्रिपुरा में 7 कांग्रेस नेता जुलाई के महीने में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। ऐसे में साफ है कि तृणमूल कांग्रेस भले ही केंद्र में एक जुट होने की बात कर रही है लेकिन वह अपना विस्तार कर रही हैं। इस विरोधाभास पर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय ने कहा "देखिए हम पहले ही कह चुके है कि पार्टी अब दूसरे राज्यों में विस्तार करेगी। वैसा ही किया जा रहा है, जहां तक गठबंधन की बात है तो हमारा प्रयास है एक मजबूत गठबंधन बने। देखिए अभी यह शुरूआत है, इसको मूर्त रूप लेने में समय लगेगा।"
कांग्रेस को अंदर से भी चुनौती
इस समय कांग्रेस के लिए पार्टी के अंदर भी कई चुनौतियां खड़ी हो गई है। एक तरफ जहां युवा नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, वहीं वरिष्ठ नेताओं में भी असंतोष है। ग्रुप-23 के नेता कपिल सिब्बल द्वारा इसी महीने दी गई डिनर पार्टी ने अंदरूनी खींचतान को सामने ला दिया है। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया से पार्टी छोड़कर जाने वाले युवा नेताओं का सिलसिला अभी थमा नहीं है।
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