क्या चिराग पासवान अपनी पार्टी और घर में चल रहे राजनीति विज्ञान को नहीं समझ पाए। क्या वो भावना में बहकर अपनी राजनीतिक यात्रा को खत्म कर चुके हैं। जिस राजनीतिक जमीन को संघर्षों के वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद उनके पिता रामविलास पासवान ने तैयार किया था उस फसल को काटने में नाकाम रहे। क्या नीतीश कुमार के खिलाफ खुली जंग में मात खा गए। इन सभी सवालों का जवाब उनके चाचा पशुपति पारस और चचेरे भाई प्रिंस राज के साथ साथ पांच सांसदों की बगावत से जुड़ी हुई है।
चाचा ने भतीजे को दी पटखनी
सोमवार को राजनीतिक घटनाक्रम में चिराग पासवान के चाचा बार बार चिराग पासवान के उन फैसलों को जिम्मेदार बता रहे थे जिसकी वजह से एलजेपी के कार्यकर्ता खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। उन्होंने जब कहा कि वो पार्टी नहीं तोड़ रहे वो तो पार्टी को बचाने में जुटे है तो तस्वीर साफ हो गई कि चिराग पासवान को अब अपने लिये विकल्प तलाशना होगा और वो विकल्प क्या होगा ये बड़ा सवाल था।
चिराग पासवान भागे भागे अपने चाचा के घर खुद कार ड्राइव कर पहुंचे। लेकिन 30 मिनट के बाद उनके चाचा के घर का दरवाजा खुला और यह अपने आप में सबकुछ बताने के लिए पर्याप्त था कि चिराग के हाथ से बाजी फिसल चुकी है। पशुपति पारस निर्वाचन आयोग से अपील किया कि पांच सांसदों का भरोसा उनमें बरकरार है। इसके साथ ही स्पीकर से उनके दावे को हरी झंडी दिखाने का आग्रह किया।
क्या नीतीश कुमार ने दे दी पटखनी
अब सवाल ये है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने दिखा दिया कि चिराग पासवान अभी बच्चे हैं और बच्चों को बिना जमीनी तैयारी राजनीति में चुनौती नहीं देनी चाहिए। इन दोनों सवालों को राजनीति के जानकार अलग अलग तरह से देखते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि जिस तरह से विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान मुखर हुए उसका खामियाजा जेडीयू को भुगतना पड़ा।
यह अपने आप में अजीब तरह की बात है कि कम संख्या वाली पार्टी का मुखिया बिहार की कमान संभाले हुए हैं और इस तरह की तस्वीर भला नीतीश कुमार को कहां रास आती है। एलजेपी में जो मौजूदा स्थिति है वो तो आनी ही थी। सिर्फ समय की देर थी। जब वो समय आया तो चिराग पासवान के चाचा ने पांच सांसदों के साथ हुंकार भरी और नतीजा सामने है।
क्या बीजेपी ने चिराग को दिया धोखा
क्या बीजेपी ने चिराग पासवान के साथ खेल कर दिया है। इस विषय में जानकार कहते हैं कि राजनीति में अगर आपको लंबी रेस में बने रहना है तो व्यक्तिगत संबंधों को ढोने की जगह हालात को समझना होता है। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को जेडीयू की पिछलग्गू पार्टी माना जाता था। जब रामविलास पासवान का निधन हुआ तो बीजेपी को कहीं न कहीं चिराग पासवान के रूप में उम्मीद जगी।
चिराग पासवान खुद ब खुद नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगल रहे थे और बीजेपी सधे अंदाज में प्रतिक्रिया दे रही थी और उसका असर चुनावी नतीजों में भी दिखाई दिया। चुनावी नतीजों में उसका असर दिखाई दिया जिसकी पुष्टि जेडीयू नेता इस तौर पर करते हैं कि अगर चिराग उनके खिलाफ बयानबाजी ना करते तो 44 सीटों पर हार ना होती।
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