नई दिल्ली : देश में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की मांगों के बीच शीर्ष अदालत में इसके लिए एक याचिका दी गई थी कि सभी धर्मों व समुदायों में तलाक का आधार समान हो। सुप्रीम कोर्ट में अगस्त में यह याचिका दायर की गई थी, जिसे स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने अब इस मामले में केंद्र को नोटिस भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकार से संबंधित नियमों में विसंगतियों को समाप्त करने को लेकर दायर PIL पर भी केंद्र को नोटिस जारी किया।
सभी धर्मों व समुदायों में तलाक और महिला-पुरुष के लिए गुजारा भत्ता के संबंध में समान कानून को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका बीजेपी नेता व अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी, जिसमें विभिन्न धर्मों में तलाक के अलग-अलग नियमों एवं कानूनों को समाप्त कर इसका आधार एक तरह का बनाए जाने को लेकर एक समान कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया गया था।
तलाक के लिए समान कानून की अहमियत पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया कि हिन्दू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोग जहां हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिए अर्जी देते हैं, वहीं मुस्लिम, क्रिस्चन और पारसी समुदाय के अपने अलग पर्सनल लॉ हैं, जबकि विभिन्न समुदायों से ताल्लुक रखने वाले दंपतियों के बीच तलाक के मामले का निपटारा स्पेशल मैरिज एक्ट, 1956 के तहत होता है।
दंपति में से कोई एक विदेशी नागरिक होता है तो उनके बीच तलाक का निपटारा फॉरेन मैरिज एक्ट, 1969 के तहत होता है। जनहित याचिका में यह भी कहा कि तलाक को लेकर मौजूद अलग-अलग कानून न तो धार्मिक रूप से न ही लैंगिक रूप से निष्पक्ष हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वकील मिनाक्षी अरोड़ा ने सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत में कहा कि पर्सनल लॉ में कुछ कानून महिला विरोधी है, जिन्हें कोर्ट ठीक उसी तरह दुरुस्त कर सकता है, जैसा कि उसने तीन तलाक के मामले में किया।
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