सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- सरकारें हमेशा सही नहीं होतीं, विरोधी को ना माना जाए एंटी-नेशनल

देश
लव रघुवंशी
Updated Feb 24, 2020 | 20:57 IST

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि असहमति को दबाया नहीं जाना चाहिए बल्कि उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता है।

Supreme Court judge Justice Deepak Gupta
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि अगर असहमति को शांत करने की कोशिश की जाती है, तो लोकतंत्र पर इसका प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि सरकारें हमेशा सही नहीं होती हैं और सरकार का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी नहीं कहा जा सकता है। लोकतंत्र और असहमति पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित लेक्चर में बोलते हुए जस्टिस गुप्ता ने लोकतंत्र के सार पर जोर दिया और कहा बहुसंख्यकवाद लोकतंत्र का विरोधी है।

उन्होंने कहा, 'हाल ही में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जहां लोगों को राष्ट्र विरोधी कहा गया है क्योंकि वे सरकार से असहमत थे। अगर किसी पार्टी को 51% वोट मिलते हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि अन्य 49% को 5 साल तक नहीं बोलना चाहिए। लोकतंत्र में हर नागरिक की भूमिका होती है। सरकारें हमेशा सही नहीं होती हैं।'

जस्टिस ने आगे कहा, 'सिर्फ इसलिए कि आप एक विरोधाभासी दृष्टिकोण रखते हैं, इसका मतलब देश का अनादर नहीं है। जब भी विचारों का टकराव होगा, असंतोष होगा। प्रश्न का अधिकार लोकतंत्र का एक अंतर्निहित हिस्सा है।' जस्टिस ने आगे कहा, 'आज देश में असहमति को राष्ट्र-विरोधी के रूप में देखा जाता है। सरकार और देश दो अलग-अलग चीजें हैं। मैं देखता हूं कि बार एसोसिएशन प्रस्ताव पारित करते हुए कहता है कि वे पेश नहीं होंगे क्योंकि कुछ मामले राष्ट्र विरोधी हैं। ऐसा नहीं है। आप कानूनी सहायता से इनकार नहीं कर सकते।' 

उन्होंने कहा कि नागरिकों को एकजुट होने और विरोध करने का अधिकार है। सरकार को तब तक विरोध-प्रदर्शनों को दबाने का अधिकार नहीं है, जब तक वे वे शांतिपूर्ण हैं और कानून नहीं तोड़ते हैं। लोकतंत्र के महत्वपूर्ण घटकों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि लोकतंत्र को तब सफल माना जाता है, जब यह नागरिकों के नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि विरोधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह देश चलाने के लिए बेहतर तरीके खोजने की ओर ले जाता है।

जस्टिस गुप्ता की ये टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब पिछले कई दिनों से देश के कई हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाएं धरने पर बैठी हुई हैं, उन्हें 70 से ज्यादा दिन हो गए हैं। इससे रास्ता बंद है, और ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

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