नई दिल्ली: कभी अपने को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन कहने वाले तेज प्रताप में अब बगावती तेवर दिख रहे हैं। सोमवार को जैसी उम्मीद जताई जा रही थी, मां राबड़ी देवी के हस्तक्षेप के बाद तेज प्रताप और तेजस्वी का मन मुटाव खत्म हो जाएगा। लेकिन तेज प्रताप यादव के रवैये से लगता है कि अभी दोनों भाइयों में सत्ता का संघर्ष लंबा चलने वाला है। असल में तेज प्रताप यादव, ने पटना पहुंचने के बावजूद जिस तरह सुबह रबड़ी देवी से मुलाकात नहीं की है। उसे साफ है कि वह सुलह को मूड में नहीं हैं। और वह अब अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। सोमवार को तेज प्रताप यादव ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर अपने नवगठित छात्र जनशक्ति परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मार्च निकाला।
बगावती तेवर दिखा रहे हैं तेज प्रताप
30 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने जहां अपना प्रत्याशी उतारकर महागठबंधन में पहले से ही दरार डाल दी है। वहीं रही-सही कसर तेज प्रताप यादव ने पूरी कर दी । तेज प्रताप यादव ने तारापुर के निर्दलीय प्रत्याशी संजय कुमार के लिए चुनाव प्रचार करने का ऐलान कर दिया। साफ है कि तेज प्रताप यादव ने पहले से मुश्किल में फंसे अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
तेजस्वी ने दिया तेज प्रताप को झटका
हालांकि तेज प्रताप की चुनौती को स्वीकार करते हुए, तेजस्वी यादव ने तारापुर के निर्दलीय प्रत्याशी संजय कुमार को आरजेडी में शामिल कर तेज प्रताप की मंशा पर पानी फेर दिया है। संजय अब नामांकन वापस लेकर तारापुर से आरजेडी प्रत्याशी अरुण कुमार साह के समर्थन में आ गए हैं। इसके पहले इसके पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने तेज प्रताप को यह कहकर कि वह तो पार्टी से पहले ही अलग हो चुके हैं। उनके लिए आग में घी डालने का काम किया था। इसके बाद उप चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट से तेज प्रताप यादव, मां राबड़ी देवी और बहन मीसा भारती का नाम हटा दिया गया है। साफ है कि तेज प्रताप को तेजस्वी यादव अब साइडलाइन कर रहे हैं। इस पर तेज प्रताप ने भी मौका नहीं छोड़ा और ट्वीट करते हुए लिखा
"ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया…
मेरा नाम रहता ना रहता मां और दीदी का नाम रहना चाहिए था…
इस गलती के लिए बिहार की महिलाएं कभी माफ नहीं करेगीं,दशहरा में हम मां की ही अराधना करतें हैं ना जी"
लालू प्रसाद को बंधक बनाने का लगाया था आरोप
इसके पहले 2 अक्टूबर को तेज प्रताप यादव ने तेजस्वी पर इशारों में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि कुछ लोग लालू प्रसाद यादव को बंधक बनाकर रखे हुए हैं। इसके बाद तेजस्वी यादव ने अपने बड़े भाई तेजप्रताप के आरोप का जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि उनके पिता लालू प्रसाद का व्यक्तित्व इस प्रकार है कि इस तरह के आरोप मेल नहीं खाते हैं।
तेज प्रताप इस लड़ाई में अकेले ?
भले ही तेज प्रताप और तेजस्वी यादव के बीच पार्टी पर प्रभाव जमाने की लड़ाई दिख रही है। लेकिन यह बात साफ है कि इस लड़ाई में तेज प्रताप यादव, अकेले ही दिख रहे हैं। क्योंकि पार्टी को कोई भी बड़ा नेता तेज प्रताप के खेमे में नहीं दिखाई पड़ता है। यहां तक की जेल से छूटने के बाद लालू प्रसाद यादव ने सितंबर के महीने में जब पार्टी कार्यकर्ताओं से वर्चुअल माध्यम से बात की थी, तो उन्होंने तेजस्वी यादव की खूब बड़ाई की थी। उन्होंने कहा कि देश भर के नेता उनसे मिलने आते हैं, सभी तेजस्वी की तारीफ करते हैं। तेजस्वी के नेतृत्व को बिहार की जनता ने भी स्वीकार लिया है। बिहार के अन्य दलों के नेता भी कहते हैं कि तेजस्वी काफी अच्छा कर रहा है।
तेजस्वी के स्वीकार्यता बढ़ी
नवंबर 2020 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व का सबसे बड़ा इम्तिहान था। क्योंकि उस समय लालू प्रसाद यादव जेल में थे और उनका सीधा मुकाबला नीतीश कुमार से था। चुनाव में भले ही राजद की सरकार नहीं बन पाई। लेकिन वह 75 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रुप में उभरी। इसके लिए महागठबंधन ने 110 सीटें, उनके नेतृत्व में जीते। जबकि राजद को 125 सीटें मिली। इस दौरान तेजस्वी के नेतृत्व को लेकर यह सवाल भी उठा कि वह गठबंधन करने और सीटों के बंटवारे में सूझ-बूझ नहीं दिखा पाए। इसके बावजूद, यह साफ था कि तेजस्वी राजद के चेहरा जरूर बन गए हैं। ऐसे में इस बात की संभावना जताई जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव पार्टी अध्यक्ष की कमान तेजस्वी को जल्द सौंप देंगे और इसी बात का तेज प्रताप को डर सता रहा है।
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