कल राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल तेली का गला काट दिया गया। क्योंकि उसने फेसबुक पर गलती से ऐसी पोस्ट कर दी थी। जो मुस्लिम कट्टरपंथियों को बुरी लगी। और इन कट्टरपंथियों ने कन्हैयालाल की जान ले ली। कन्हैयालाल के हत्यारे तो पकड़े गए लेकिन सर तन से जुदा वाली सोच अब भी जिंदा है। और इस सोच पर सवाल उठाने की जगह ऐसी सोच पर परदा डालने की कोशिश होती है।
हत्या के लिए इस सोच को जिम्मेदार ठहराने की जगह, कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है, कभी मीडिया को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है, कभी ये कहा जाता है कि राजनीति जिम्मेदार है। अक्सर ये कह दिया जाता कि 2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद देश का माहौल बिगड़ गया। आज हम इसी का असली सच बताएंगे
और पाठशाला में उस कट्टरपंथी सोच की सर्जरी भी करेंगे। जो सोच आज की नहीं है, जो सोच वर्षों से चली आ रही है, जो सोच 2014 के बाद नहीं आई, जो सोच 2014 के पहले भी रही है, जब नरेंद्र मोदी पीएम नहीं थे, और तब भी थी, जब देश आजाद नहीं हुआ था। आज हम आपको 1929 का वो डरावना चैप्टर बताएंगे। जिसमें आपको हूबहू उदयपुर की घटना दिखेगी।
1929 का ये चैप्टर राजपाल मल्होत्रा के मर्डर का है। जैसे उदयपुर में कन्हैयालाल तेली का मर्डर हुआ, वैसे ही लाहौर में राजपाल मल्होत्रा का मर्डर 93 साल पहले हुआ था। राजपाल के मर्डर की कहानी आपको जाननी चाहिए।
-राजपाल मल्होत्रा एक पत्रकार और पब्लिशर थे, 1912 में उन्होंने राजपाल एंड सन्स पब्लिकेशन की शुरुआत की थी
-6 अप्रैल 1929 को लाहौर में राजपाल मल्होत्रा की हत्या कर दी गई और हत्यारा 20 साल का इल्मुद्दीन था जो बढ़ई का काम करता था।
-राजपाल के सीने पर इल्मुद्दीन ने चाकू से 8 वार किए थे। सेशन कोर्ट से इल्मुद्दीन को फांसी की सजा हुई थी।
-लेकिन तीन महीने बाद लाहौर हाईकोर्ट में इल्मुद्दीन की तरफ से अपील की गई और कोर्ट में इल्मुद्दीन की पैरवी खुद मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी।
-जिन्ना की पैरवी के बावजूद लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस ब्रॉडवे ने इल्मुद्दीन की फांसी की सजा बरकरार रखी
-इल्मुद्दीन को 31 अक्टूबर 1929 को रावलपिंडी की मियांवाली जेल में फांसी दी गई और वहीं पर इसे दफन कर दिया गया।
-विवादित Pamphlet छापने पर राजपाल के खिलाफ गुस्सा भड़क गया था, उन पर केस हो गया था।
-1924 में छपे इस Pamphlet को लेकर राजपाल मल्होत्रा की लोकल मजिस्ट्रेट के सामने पेशी हुई थी।
-राजपाल मल्होत्रा ने सफाई दी थी कि वो उन्होंने विवादित Pamphlet किसी को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं छापी थी बल्कि मुस्लिम समाज की मदद के लिए छापी थी
-राजपाल का दावा था कि अगर किताब को ध्यान से पढ़ा जाए तो ये मुस्लिम समाज की कुरीतियों को दूर करने में मदद करेगी।
-राजपाल का ये भी दावा था कि उन पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले मामले में IPC 153A लागू नहीं होता, क्योंकि किताब में जो लिखा है वो ऐतिहासिक तथ्य हैं
-लोकल मजिस्ट्रेट एचएल फैलबस की कोर्ट में सुनवाई, गवाही और दलीलों के बाद राजपाल मल्होत्रा को 18 महीने की सजा हुई और 1000 रुपये का जुर्माना हुआ था
-लेकिन राजपाल ने अपने खिलाफ सजा के फैसले को ऊपरी अदालतों में चुनौती दी। सेशन कोर्ट के जज कर्नल एफ निकोलस ने राजपाल की 18 महीने की सजा घटाकर 6 महीने कर दी थी
-इसके बाद ये केस लाहौर हाईकोर्ट में जस्टिस दिलीप सिंह की बेंच के पास पहुंचा और उन्होंने 4 मई 1927 को ये कहते हुए केस खारिज कर दिया कि इस केस में कोई मेरिट नहीं है।
इसके बाद भी मुस्लिम कट्टरपंथी नहीं माने
-जिन जस्टिस दिलीप सिंह ने राजपाल मल्होत्रा की सजा के फैसले को पलट दिया था, उन्हें हटाने की मांग होने लगी
-जस्टिस दिलीप सिंह के खिलाफ मुस्लिम प्रकाशकों ने लेख छापने शुरू कर दिए, और जस्टिस दिलीप सिंह को धमकी दी जाने लगी
-अप्रैल 1927 से मार्च 1928 के बीच इस विवाद को लेकर हुए दंगों में 9 से ज्यादा राज्यों में 100 से ज्यादा लोग मारे गए
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