2008 का वो साल था, महीना सितंबर का था लेकिन तारीख 26 थी। मुंबई आम दिनों की दौड़ रही थी। लेकिन शायद ही किसी को पता रहा होगा कि कोई बड़ी तबाही दस्तक देने वाली है। पाक में प्रशिक्षित आतंकी मायानगरी में दाखिल हो चुके थे और अंधाधूंध लोगों को निशाना बना रहे थे। मशहूर ताज होटल उनमें से एक था। सितंबर का महीना उन परिवारों के लिए ज्यादा गमगीन हो जाता है जिन्होंने अपनों को खो दिया। उनमें से एक हैं करमबीर कांग जो उस समय ताज होटल में मैनेजर थे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन परिवारों को बुलाया था जिन लोगों ने अपनों को खो दिया है और उनसे यह जानने और समझने की कोशिश की गई कि आतंकवाद पर कैसे लगाया जाए।
'मैंने तो अपना पूरा परिवार खो दिया'
करमबीर कांग कहते हैं कि उस दिन को कोई कैसे भूल सकता है। आतंकियों की उस करतूत की गवाह पूरी दुनिया है कि कैसे 10 आतंकियों ने मुंबई शहर और ताज होटल को बंधक बना लिया था। वो कहते हैं कि तीन दिन और ना गुजरने वाली रात को भूल पाना आसान नहीं जिसमें 34 लोगों की जान चली गई थी। उनकी पत्नी और दो मासूम बच्चे गोलीबारी में फंस गए और बच ना सके। उन्होंने तो अपना सबकुछ खो दिया। हम लोगों के पास सिर्फ साहस का ही सहारा था। उतने बड़े कष्ट का सामना करने के लिए सिर्फ और सिर्फ हिम्मत ही हथियार था।
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आतंकियों का कुचला जाना जरूरी
कांग कहते हैं कि जिन आतंकियों ने कायराना हरकत की उन्हें तो उसका फल मिल चुका है। लेकिन ऐसे लोग जो इतनी बड़ी वारदात के लिए जिम्मेदार हैं खुले में घूम रहे हैं। आज अंतरराष्ट्रीय समाज से वो अपील करते हैं कि बिना किसी राजनीति के इस मुद्दे पर एक साथ आएं ताकि आतंकवाद के खिलाफ मुहिम को और धार दिया जा सके। बंटा हुआ अंतरराष्ट्रीय आतंकियों के मंसूबों को बल दे रहा है जिसका कुचला जाना जरूरी है।
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