नई दिल्ली: तालिबान के कब्जे में आ चुके अफगानिस्तान को लेकर भारत में चिताएं बढ़ती जा रही है। सबसे पहला सवाल है कि अफगानिस्तान से भारतीयों की सुरक्षित वापसी हो जाए। उसके बाद जो दूसरा सबसे बड़ा सवाल है कि तालिबान 2.0 के साथ भारत के क्या रिश्ते रहने वाले हैं। हालांकि भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों की निशानियां ईसा-पूर्व मौर्यकाल से मिलती है। लेकिन वह रिश्ता तालिबान 1.0 के दौर में उस समय तार-तार हो गया था बामियान स्थित गौतम बुद्ध की मूर्ति को तालिबान ने तोड़ दिया था। फिर भी 2000 साल से पुराने रिश्ते के तार ऐसे रहे हैं कि भले ही सरकारें बदलती रही लेकिन लोगों का रिश्ता बना रहा है। रिश्तों को मजबूती का आलम यह था कि 50 के दशक में आई बलराम साहनी की फिल्म काबुली वाला को कौन भूल सकता है। वह सिलसिला आज भी जारी है और देश के कई हिस्सों में अफगानी लोग रहते हैं। ऑल इंडिया पख्तून जिरगा-ए-हिंद के अनुसार लाख से ज्यादा पख्तून भारत में रहते हैं। इसमें दिल्ली और कोलकाता प्रमुख स्थान हैं।
सीमांत गांधी से है नाता
ऑल इंडिया पख्तून जिरगा-ए-हिंद की अध्यक्ष और सीमांत गांधी यानी खान अब्दुल गफ्फार खान की पड़ पोती यासमीन निगार खान भी भारत में ही रहती है। वह इस समय कोलकाता में रहती है। उन्होंने एजेंसी से बताया कि भारत में हम कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। हमारे अफगानिस्तान में रह रहे अपने रिश्तेदारों से संपर्क बना गुआ है। पिछले एक-दो दिनों से वहां से बहुत सारे फोन कॉल रहे हैं। लोग परेशान हमें भी उनकी चिंता हो रही है। क्योंकि तालिबान पर आप कभी भी भरोसा नहीं कर सकते। इसलिए हमारी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से अपील है कि वह हमारी मदद करें। इसके अलावा हम संयुक्त राष्ट्र संघ में भी अपील करने की तैयारी में है। पश्चिम बंगाल में 1000 से ज्यादा पख्तून रहते हैं। इसी तरह देश के दूसरे इलाकों में भी उनकी बड़ी संख्या है। दिल्ली के लाजपत नगर इलाके में भी कई अफगान शरणार्थी रहते हैं। जो मुख्य रूप से परचून की दुकान, ड्राई फ्रूट आदि का बिजनेस करते हैं। भारत में ऑल इंडिया पख्तूल जिरगा-ए-हिंद का गठन 1949 में उनके गोद लिए हुए पोते लाल जान खान ने किया था और यासमीन निगार संगठन की 1996 से अध्यक्ष हैं
देशवासियों का मजबूत है रिश्ता
अफगानिस्तान के एक बैंक से जुड़े भारतीय बैंकर कहते हैं कि भारत और अफगानिस्तान के संबंध आम लोगों में काफी मजबूत हैं। मेरा वहां साल में 3-4 बार जाना होता था। वहां के लोग भारतीयों का हमेशा से गर्म जोशी से स्वागत करते हैं। अफगानिस्तान में बैंकिंग सेक्टर की ग्रोथ में कई भारतीयों का योगदान है। इसके अलावा वहां पर भारत द्वारा स्वास्थ्य,शिक्षा और इंफ्रास्ट्रकचर के क्षेत्र में किए गए काम की लोग बहुत तारीफ करते हैं। लेकिन अब सब अंधेरे में है। मेरे एक मित्र जो वहां की एक कंपनी में सीईओ हैं, अब वह शायद ही वहां जाने की सोचें।
तालिबान का रुप डरावना
यासमीन कहती हैं कि तालिबान का पहला शासन बहुत भयावह था। वह लड़कियों का अपहरण कर लेते थे। उन्हें सताते थे, बेगुनाह लोगों की हत्या कर देते थे। शरीयत के नाम पर लड़कियों को पढ़ने नहीं देते, नौकरियां नही करने देते थे। ऐसे में इस बार उनके क्या उम्मीद की जा सकती है। तालिबान मध्य कालीन दुनिया की सोच रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनके दादा सीमांत गांधी ने 1921 में पाकिस्तान के खैबर पख्तून खां प्रांत में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला था। आज वह बंद हो चुका है। मुझे नहीं पता बाद में वहां क्या हुआ। लेकिन अभी हमारी चिंता, अफगानिस्तान में बसे हमारे रिश्ते दारों की है।
भारत में मिल सकती है शरण
जिस तरह से अफगानिस्तान से वहां के लोग निकलने के लिए बेताब हैं। ऐसे में भारत वहां के लोगों को शरण दे सकता है। खास तौर से पुराने संबंधों और रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसा करने की उम्मीद है। मसलन अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई की भारत में ही पढ़ाई हुई है। इसी तरह प्रमुख नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला का परिवार भारत में रहता है। भारत शरण दे सकता है कि नहीं इस सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था "भारत पूरे मामले पर नजर जमाए हुए है।" हालांकि जिस तरह अमेरिका, कनाडा सहित दूसरे देश शरण देने की बात कर रहे हैं, ऐसे में भारत भी वहां के नागरिकों के लिए इसी तरह के कदम उठा सकता है।
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