नई दिल्ली। मानव जाति इस समय सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है। क्या धनवान, क्या पिछड़े, क्या विकसित और क्या विकासशील हर कोई या हर कोई मुल्क इससे दहशत में है। तमाम सारी कोशिशों के बाद भी कोरोना वायरस 14 लाख लोगो को चपेट में ले चुका है और मरने वालों की संख्या भी धीरे धीरे 1 लाख के करीब पहुंच रही है।
हम सब जानते हैं कि जब कोई कोरोना संक्रमित शख्स छींकता या खांसता है तो ड्रापलेट इसके संचार में सबसे बड़े वाहक हैं। अगर आप कहीं किसी तरह से चूक गए तो इतना तय है कि वो कोरोना के प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। यहां हम बताएंगे कि जब कोरोना का वायरस छींक या खांसी के जरिए गले तक पहुंचता है तो वो किस तरह से आपकी शरीर में डेरा जमा लेता है।
पहला चरण
कोरोना वायरस गले की कोशिकाएं और फेफड़ों को पहले निशाना बनाता है, और धीरे धीरे गला और फेफड़ा वायरस की फैक्ट्री में बदल जाती है। वायरस से संक्रमित कोशिकाएं दूसरे कोशिकाओं को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं। यही से इनक्यूबेशन पीरियड की शुरुआत होती है। लेकिन यह पता नहीं चलता है कि शख्स बीमार हो चुका है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिसमें किसी तरह का लक्षण दिखाई ही नहीं देता है और उन्हें एसिम्पटोमैटिक कैरियर कहा जाता है। इसका लक्षण सामान्य तौर पर पांच दिन में दिखाई देता है। लेकिन कुछ लोगों में लक्षण देरी से दिखाई देता है।
दूसरा चरण
बीमारी गंभीर होने पर सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़ों को होता है। इस वायरस के खिलाफ शरीर का इम्यून सिस्टम तेजी से काम करने लगता है। अगर आप की प्रतिरक्षण शक्ति ज्यादा है तो आप वायरस का सामना करने में कामयाब हो जाते हैं। लेकिन इम्यून कमजोर होने पर हालात कंट्रोल के बाहर हो जाता है। शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है यानी तेज बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। अगर फेफड़े में जलन हुई तो यह न्यूमोनिया का रूप ले लेता है। ऐसी स्थिति में फेफड़े के एयर साक्स यानी हवा की थैलियों में पानी भरना शुरू हो जाता है।
अंतिम चरण
कोरोना वायरस के 6 फीसद मामले गंभीर कैटेगरी में पहुंच जाते हैं। अंतिम चरण में शरीर की प्रतिरक्षण शक्ति बेहद कमजोर हो जाता है। इस तरह की सूरत में ब्लड प्रेशर बहुत कम हो जाता है। और ऑर्गंस के फेल होने की संभावना ज्यादा होती है। मरीज एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिन्ड्रोम से पीड़ित होता है और तब फेफड़ों में जलन ज्यादा होता है। इस तरह से शरीर को जितनी मात्रा में आक्सीजन की जरूरत होती है वो मिल नहीं पाता है, और मरीज की मौत हो जाती है।
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