करीब चार वर्ष बाद मिला मौका, सहमति वाली बैठक में टी एस रावत सब पर पड़े भारी

देश
ललित राय
Updated Mar 10, 2021 | 13:18 IST

गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत के नाम पर बीजेपी आलाकमान और विधायकों ने मुहर लगा दी है। इन सबके बीच 3 वर्ष 9 महीने पहले के एक प्रसंग को जिक्र करना जरूरी हो जाता है।

T S Rawat: 3 वर्ष 9 महीने बाद मिला मौका, सहमति वाली बैठक में टी एस रावत सब पर पड़े भारी
तीरथ सिंह रावत होंगे उत्तराखंड के अगले सीएम 
मुख्य बातें
  • तीरथ सिंह रावत होंगे उत्तराखंड के अगले सीएम
  • गढ़वाल से फिलहास सांसद हैं रावत
  • मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दे दिया था इस्तीफा

नई दिल्ली। करीब चार साल पहले यही महीना था। उत्तराखंड में कांग्रेस को परास्त कर बीजेपी सत्ता में आ चुकी थी। बीजेपी किसे कमाव सौंपेंगी इसे लेकर सस्पेंस था तो उसके पीछे वजह थी कि आलाकमान अलग अलग राज्यों में चौंकाने वाला फैसला ले चुका था। उत्तराखंड भी उससे अलग नहीं रहा। आरएसएस प्रचारक और लो प्रोफाइल माने जाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथ राज्य की कमान आई। लेकिन सीएम की रेस में एक और शख्स तीरथ सिंह रावत थे जो पीछे रह गए। लेकिन समय का पहिया घूमता रहा और 10 मार्च का वो दिन आ गया जब बीजेपी ने राज्य की कमान उनके हाथ में सौंप दी। यानी कि 3 साल 9 महीने के बाद वो राज्य के सीएम बनने वाले हैं। 

तीरथ सिंह रावत के नाम पर क्यों बनी सहमति
अब सवाल यह है कि सीएम की रेस में जब कई बड़े बड़े नाम थे तो तीरथ सिंह रावत के नाम पर सहमति क्यों बन गई। इस सवाल के इंतजार में जानकार अलग अलग राय रखते हैं। जानकारों का कहना है कि कोई भी पार्टी जब सीएम पद के लिए किसी चेहरे की तरफ देखती है तो उसे ना सिर्फ पार्टी की आंतरिक तस्वीर पर ध्यान देना होता है बल्कि विपक्ष को भी साधना होता है। जहां तक तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाने की बात है तो वो गढ़वाल और कुमाऊं दोनों इलाकों में लोकप्रिय हैं, हालांकि जब रावत के नाम पर बीजेपी आलाकमान ने सहमति दी थी तो उस वक्त कुमाऊं में असहमति के सुर उठे थे। 

 Who is Tirath Singh Rawat New Uttarakhand CM of Uttarakhand
रावत, आम और खास दोनों में प्रिय
जानकार बताते हैं कि तीरथ सिंह रावत के नाम पर सहमति बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह रही कि वो जमीनी स्तर पर सक्रिय रहे हैं। उन्होंने आम या खास कार्यकर्ता में किसी तरह का भेद नहीं किया। एक तरह से उनकी स्वीकार्यता बनी रही। दूसरी बात यह कि त्रिवेंद्र सिंह रावत भी गढ़वाल इलाके से आते हैं लिहाजा जमीनी स्तर पर मतदाताओं में गलत संदेश ना जाए इसके लिए उसी इलाके से आने वाले तीरथ सिंह रावत को कमान दी गई। 

इस वजह से ये नाम रेस से हो गए दूर
जहां तक अनिल बलूनी और रमेश पोखरियाल निशंक रेस में पीछे रहे गए तो उस सिलसिले में जानकार कहते हैं कि अनिल बलूनी राज्यसभा से सांसद है लिहाजा उन्हें बीजेपी नहीं भेजना चाहती थी। इसके साथ ही एक वर्ष  बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लिहाजा वो राज्य की कमान संभालने में अनिच्छा जाहिर करते रहे। 

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