नई दिल्ली। महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी और शिवसेना का एक दूसरे से अलग हो जाना एक सामान्य घटना नहीं थी। ढ़ाई ढा़ई साल के सीएम पद पर जब सहमति नहीं बनी तो शिवसेना ने अपनी विचारधारा को तिलांजलि देते हुए आगे बढ़ने का फैसला किया और बीजेपी से किनारा कर लिया। उद्धव ठाकरे ने दो अलग अलग सोच वाली पार्टियों कांग्रेस और एनसीपी से समझौता किया और महा विकास अघाड़ी की अगुवाई में सरकार बनी।
विचारों के उबड़ खाबड़ धरातल पर गठबंधन
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी इन तीनों दलों के बीच विचारों का धरातल इतना उबड़ खाबड़ है कि सवाल उठता है कि आखिर महाविकास अघाड़ी की सरकार कब तक। इस बीच बीजेपी की तरफ से इस तरह के संकेत मिले कि वो शिवसेना के किसी भी प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार है बशर्ते शिवसेना अपने आपको कांग्रेस और एनसीपी से खुद को अलग करे।
जा सकते हैं बीजेपी के साथ
सामना को दिए गए साक्षात्कार में उद्धव ठाकरे ने सीएए, एनपीआर और एनआरसी के साथ साथ बीजेपी के साथ अपने रिश्तों पर बात रखी। उद्धव ठाकरे कहते हैं कि अगर बीजेपी ने अपने वादों को पूरा करने के साथ झूठ नहीं बोला होता तो वो अलग रास्ता नहीं अख्तियार करते। वो कभी राज्य के सीएम भी नहीं बनते। उन्होंने तो जो तय हुआ था उसकी ही मांग की उससे ज्यादा कुछ भी नहीं मांगा था।
बीजेपी से दूर जाने की बताई वजह
लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह जी खुद उनसे मिलने के लिए आए थे। लेकिन अब हालात बदले हुए हैं। लेकिन भविष्य में अगर हालात में बदलाव होते हैं तो यह लोगों के लिए भी अच्छा होगा। वो यह नहीं कह रहे हैं कि बीजेपी के साथ अब कभू शिवसेना का गठबंधन नहीं होगा। बीजेपी के साथ 25 साल तक हमारा गठबंधन हिंदुत्व की वजह से रहा। पीएम मोदी उन्हें अपना छोटा भाई कहते थे, फडणवीस भी उन्हें छोटा भाई कहा करते थे। एक तरह से वो उन दोनों के बीच सैंडविच की तरफ फंस गए।
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