Uddhav Thackeray and Eknath Shinde:बाला साहेब ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए हर रोज चुनौती बढ़ती जा रही है। अभी तक सरकार गंवाने का ही गम था लेकिन जिस तरह उनके हाथ से पार्षद, विधायक और सांसद निकल रहे हैं उससे उनके सामने पार्टी बचाने का संकट खड़ा हो गया है। ताजा मामला लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा 12 बागी सांसदों के गुट को मान्यता देने का है। लोक सभा अध्यक्ष ने शिंदे समर्थक सांसद राहुल शेवाले को लोकसभा में शिवसेना के नेता के तौर पर मान्यता दे दी। इसके अलावा सांसद भावना गवली को चीफ व्हिप की नियुक्ति को भी स्वीकार कर लिया है। महाराष्ट्र विधानसभा में अलग-थलग पड़ने के बाद उद्धव ठाकरे लिए यह बड़ा झटका है। शिंदे का दावा है कि शिव सेना के 19 में से 18 सांसद उनके साथ हैं।
लगातार कमजोर हो रहे हैं उद्धव
4 जुलाई को हुए फ्लोर टेस्ट में शिव सेना के 55 विधायकों में से 40 ने शिंदे गुट के समर्थन में वोट किया था। उसके बाद ठाणे जिले के 67 में से 66 पार्षद शिंदे गुट में शामिल हो गए । यह सिलसिला यही नहीं रूका, उसके बाद नवी मुंबई के 32 और डोंबिवली महानगर पालिका के 55 पार्षद उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर शिंदे गुट में शामिल हो गए। हाल ही में उद्धव ठाकरे के करीबी माने जाने वाले शिवसेना नेता रामदास कदम ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कदम महाराष्ट्र विधानसभा में 4 बार विधायक रह चुके हैं और शिवसेना- बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
इसी कड़ी में पार्टी के 12 सांसदों की लोक सभा अध्यक्ष के सामने परेड भी लगवा चुके हैं। उनका दावा है कि 19 में से 18 सांसद मेरे पास हैं। इससे भी अहम बात यह है कि भले ही उद्धव ठाकरे शिव सेना में उथल-पुथल के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन अपने सांसदों के दबाव में उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनावों में शिवसेना के सभी 22 सांसदों के जरिए BJP उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया। जाहिर है उद्धव जानते थे कि अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो पार्टी में और बड़ी बगावत हो सकती है।
असली शिव सेना किसके पास
जिस तरह शिंदे बार-बार असली शिव सेना होने का दावा कर रहे हैं। और उनके गुट ने 18 जुलाई को पार्टी की पुरानी राष्ट्रीय कार्यकारिणी भंग कर नई कार्यकारिणी के गठन का ऐलान कर दिया। फिर एकनाथ शिंदे को शिवसेना का नया नेता चुना गया। उससे यह तो साफ है कि वह शिव सेना पर अपना हक चाहते हैं। अहम बात यह थी कि शिंदे गुट ने भले ही कार्यकारिणी भंग कर दी लेकिन पार्टी प्रमुख के पद उद्धव ठाकरे को बनाए रखा है। साफ है कि शिंदे गुट से यह संदेश देना चाहता है कि वह पार्टी नहीं तोड़ रहे हैं, पार्टी के ज्यादातर सदस्यों ने केवल अपना विधायक दल और लोक सभा का नेता बदल दिया है। और वह लोग शिंदे के साथ हैं
वहीं उद्धव ठाकरे का ने हाल ही में एक बैठक में यह बयान दिया है कि तीर चाहे जितने ले लो लेकिन धनुष उनके पास ही रहेगा। यानी उनका इशारा शिव सेना के पार्टी चिन्ह की ओर है। जो कि तीर धनुष है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में शिव सेना के 16 विधायकों की योगय्ता पर सुनवाई जारी है। और अब अगली सुनवाई एक अगस्त को होगी। असली शिव सेना किसके पास जाएगी यह फैसला चुनाव आयोग करेगा। इसमें आयोग पार्टी के विधायकों, सांसदों के पक्ष को देखने के अलावा संगठन स्तर पर क्या स्थिति है, उसकी पड़ताल करता है। हालांकि अभी आयोग के पास पार्टी चिन्ह के लिए न ही उद्धव ठाकरे पहुंचे और न ही शिंदे पहुंचे हैं। इसकी एक बड़ी वजह सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई है। दोनों पक्ष उसके फैसला का इंतार कर रहे हैं।
चिराग पासवान को लगा था झटका
आज जिन परिस्थितियों का सामना उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। कुछ वैसा ही लोकजनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान के साथ हुआ था। जब उनके चाचा पशुपति नाथ पारस ने बगावत कर दी थी। और पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने अलग गुट बना लिया था। बाद में लोकसभा स्पीकर ने पशुपति नाथ पारस को लोकसभा बागी गुट का नेता स्वीकर कर लिया था। बाद में यह लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंची। वहां पर उसने लोकजनशक्ति पार्टी के चिन्ह को जब्त कर दोनों गुट को नया चुनाव चिन्ह दे दिया था।
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