नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उमर खालिद की जमानत याचिका पर सोमवार से रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया ताकि गर्मी की छुट्टियां शुरू होने से पहले सुनवाई पूरी की जा सके। उमर खालिद ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा मामले की बड़ी साजिश में जमानत देने से इनकार करने वाले 24 मार्च के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि 23 मई, 2022 से दैनिक आधार पर जमानत याचिका पर स्पेशल बैंच के रूप में दलीलें सुनी जाएंगी।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस मिनी पुष्कर्ण की खंडपीठ ने गुरुवार को मामले को जस्टिस मृदुल की अध्यक्षता वाली बैंच के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था क्योंकि उसने मामले की आंशिक सुनवाई की थी। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान बैंच ने अमरावती में प्रधानमंत्री मोदी का जिक्र करने वाले भाषण के कुछ हिस्से पर आपत्ति जताई। जस्टिस भटनागर ने पूछा कि क्या ऐसे शब्दों का इस्तेमाल प्रधानमंत्री के लिए किया जा सकता है? सीनियर वकील ने यह कहते हुए जवाब दिया कि उन शब्दों का इस्तेमाल एक रूपक के रूप में यह दिखाने के लिए किया गया था कि देश की वास्तविकता और व्यावहारिक मुद्दों को वास्तविकता में छिपाया जा रहा है। हालांकि जस्टिस भटनागर ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए कुछ और शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था।
जस्टिस भटनागर ने सीनियर वकील त्रिदीप पेस से यह भी पूछा कि क्या महात्मा गांधी ने कभी किसी रानी के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा कि आपके मुवक्किल (उमर खालिद) ने बार-बार कहा था कि हम महात्मा गांधी का अनुसरण करेंगे। बैंच ने यह भी पूछा कि उमर खालिद का क्या मतलब है जब उन्होंने अमरावती भाषण में 'इंकलाब' और 'क्रांतिकारी' शब्दों का इस्तेमाल किया। पेस ने अदालत को इन शब्दों के शब्दकोश अर्थ से अवगत कराया। जस्टिस मृदुल ने कहा कि आपने इंकलाब और क्रांतिकारी अभिव्यक्ति का इस्तेमाल किया। हम सभी जानते हैं कि इसका क्या अर्थ है। आपने इंकलाब जिंदाबाद अभिव्यक्ति का इस्तेमाल किया। यही हमने आपसे पूछा। सीनियर वकील पेस ने एक इतिहासकार का हवाला देते हुए अदालत को जवाब दिया कि इंकलाब शब्द का अर्थ क्रांति है जबकि इंकलाब जिंदाबाद शब्द का अर्थ है क्रांति को लंबे समय तक जीना।
सुनवाई की शुरुआत में पेस ने अमरावती में दिए गए भाषण का एक ट्रांसक्रिप्शन और कुछ अन्य दस्तावेजों को शब्दों के अर्थ को समझाने के लिए प्रस्तुत किया। उन्होंने आरोपपत्र के उस हिस्से का भी जिक्र किया जिसमें अभियोजन पक्ष के आरोपों की ओर इशारा किया गया था कि खालिद आतंकी गतिविधियों में शामिल था। पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस मृदुल ने कहा था कि उमर खालिद ने अमरावती में जो भाषण दिया वह 'अप्रिय' था और सरकार की आलोचना की अनुमति है, लेकिन 'लक्ष्मण रेखा' को पार नहीं किया जाना चाहिए। विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद ने अदालत को सूचित किया कि उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने के लिए चार से पांच घंटे की आवश्यकता होगी।
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