यूपी में सवाल अब 2022 का नहीं है, सवाल 2024, 2029 और उसके बाद का है। सत्ता उसके हाथ में होगी जनता जिसके साथ होगी। लेकिन जनता उसी नेता का साथ देगी जिसमें कुछ दम नजर आएगा। किस नेता में कितना दम है या उसके बाजू में कितनी शक्ति होगी उसे समझने से पहले यूपी की सियासत में कुछ खास चेहरों के बारे में समझना जरूरी है। 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने अपना दम दिखाया लखनऊ की गद्दी पर काबिज हो गये। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमरतोड़ कोशिश के बाद 111 सीट पर सिमट गए। बीएसपी का एक उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुआ लेकिव वो उसकी कामयाबी थी। कांग्रेस का भी हाल कुछ ऐसा ही था। लेकिन इन सबके बीच एक शख्स और था जो चर्चा के केंद्र में बने रहे और उनका नाम आजम खान है। आजम खान 10वीं बार रामपुर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे हालांकि वो पिछले दो साल से जेल में बंद हैं।
इस वजह से चर्चा में हैं आजम खान
आजम खान, एक बार फिर चर्चा में हैं तो उसके पीछे कोई नया मुकदमा नहीं है। बल्कि हाल में तीन चार घटनाक्रम ऐसे हुए कि उनके सियासी कदम का लोगों को इंतजार है। यूपी की राजनीति में समाजवादी पार्टी किस रूप में नजर आएगी उसे समझने से पहले उन घटनाक्रमों को जानना जरूरी है।
आजम खान के नजदीकी ने जब कहा कि योगी आदित्यनाथ सही कहा करते थे कि अखिलेश यादव खुद नहीं चाहते कि आजम जेल से बाहर आएं तो गलत ना था
अखिलेश यादव पर असर !
अब इन घटनाक्रमों से आप समझ चुके होंगे कि आजम खान सुर्खियों में क्यों हैं। आजम खान अगर समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ते हैं तो अखिलेश यादव के भविष्य पर कितना असर पड़ेगा। जानकार कहते हैं कि जिस तरह से आजम खान के साथ अखिलेश यादव ने व्यवहार किया उसके बाद उनके समर्थक नाराज हैं। इसे समझने के लिए 2012 को देखना होगा। जब अखिलेश यादव ने यूपी की कमान संभाली थी तो सूबे में ढ़ाई सीएम की चर्चा चलती रहती थी। आम तौर पर माना जाता था कि आजम खान और शिवपाल यादव अखिलेश यादव को पचा नहीं पा रहे हैं। लेकिन 2015 के आते आते अखिलेश यादव के तेवर तीखे हो चले थे और 2017 में जो कुछ हुआ वो सामने था। उस पूरे घटनाक्रम में आजम खान खुलकर किसी पक्ष की तरफ नहीं झुके। और यह बात अखिलेश यादव को नागवार लगी। जब योगी सरकार ने आजम खान पर शिकंजा कसना शुरू किया तो अखिलेश यादव की तरफ से जो बयान आते थे उसे खानापूर्ति के तौर पर देखा गया। अपने परंपरागत वोट बैंक को अखिलेश यादव खिसकने नहीं देना चाहते थे लिहाजा आजम खान से पूरी तरह कन्नी नहीं काटी। लेकिन आजम समर्थकों को लगने लगा कि सपा के अध्यक्ष ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
अब यदि आजम खान किसी और दल में शामिल होते हैं तो निश्चित तौर पर सपा के पास अल्पसंख्यक समाज का कोई बड़ा चेहरा नहीं होगा और उसका असर उनके परंपरागत वोट बैंक पर होगा। जानकार कहते हैं कि अगर आजम खान एआईएमआईएम या कांग्रेस के पाले में जाते हैं तो एक बात साफ है कि इन दोनों दलों को फायदा होगा। लेकिन सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी का होगा। और यदि बीजेपी को जबरदस्त तरीके से फायदा होता है तो उतना ही अधिक नुकसान अखिलेश यादव को होगा।
नाराजगी के बाद भी क्यों शिवपाल,आजम खान को नहीं मना रहे हैं अखिलेश यादव? क्या है प्लान?
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