नई दिल्ली: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है। शुरूआती तौर पर उनकी मौत की वजह आत्महत्या बताई जा रही है। हालांकि शक की सुई उनके शिष्य आनंद गिरी की तरफ भी घूम रही है। क्योंकि उन्होंने अपने सुसाइड नोट में आनंद गिरी का जिक्र करते हुए लिखा है कि उसकी वजह से वह काफी परेशान थे। और इसी आधार पर आनंद गिरी को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। इन परिस्थितियों में टाइम्स नाउ नवभारत ने प्रयागराज के एक ऐसे शख्स से बात की, जिनका परिवार महंत नरेंद्र गिरी को उस वक्त से जानता है, जब वह पहली बार प्रयागराज आए थे। परिवार के सदस्य विकास त्रिपाठी के अनुसार नरेंद्र गिरी , साल 2000 में पहली बार कुंभ मेले के समय साधु के रुप में संगम नगरी पहुंचे थे।
उसके पहले वह माउंट आबू में निरंजनी अखाड़े के मंदिर के प्रमुख हुआ करते थे। विकास के अनुसार नरेंद्र गिरी अपने बचपन की कहानी बताते हुए कहते थे कि वह प्रयागराज में ही पैदा हुए थे। लेकिन 7-8 साल की उम्र में उन्होंने घर-बार छोड़ दिया था और साधु बन गए थे। नरेंद्र गिरी की जो थोड़ी बहुत पढ़ाई हुई थी, वह साधु बनने के बाद ही हुई थी।
वर्ष 2000 में बनाए गए "पंच"
विकास के अनुसार नरेंद्र गिरी ने अखाड़े में थानापति से अपना सफर शुरू किया था। यह पद नए लोगों को दिया जाता है। वहां से वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने। लेकिन यह सफर बहुत आसान नहीं रहा है। उनसे मेरी पहचान हमारे दारागंज स्थित पीसीओ पर हुई, जहां वह काफी समय बिताया करते थे। वहीं पर उनके शख्सियत के बारे में पता चला। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह सामाजिक रुप से बहुत सक्रिय रहते थे। इसके अलावा उनके अंदर आत्मविश्वास भी बहुत था। जिसकी वजह से उनकी पहचान काफी तेजी से बढ़ी। फिल्में भी देखा करते थे। एक बार उन्होंने मुझे गदर फिल्म दिखाई थी। मुझसे बोले कि देशभक्ति वाली फिल्म है, चलो देखकर आते हैं। विकास कहते हैं उस समय महंत को एम्बेस्डर कार मिला करती थी, उसी कार से हम गदर फिल्म देखने गए थे।
श्री लेटे हनुमान मंदिर से बनी पहचान
विकास कहते हैं, प्रयागराज के सबसे प्रतिष्ठित मंदिर श्री लेटे हनुमान मंदिर की देख-रेख की जिम्मेदारी निरंजनी अखाड़े के तहत आती है। ऐसे में जब नरेंद्र गिरी अखाड़े के पंच और बाघम्बरी गद्दी मठ के महंत बने तो हनुमान मंदिर के प्रमुख पुजारी भी बन गए। यहां से उनके संपर्कों का काफी विस्तार हुआ और राजनीतिक नेताओं और बाबुओं से उनके गहरे संबंध बने। वह स्वभाव से ही बेहद सामाजिक थे, इसलिए संपर्कों का दायरा बहुत तेजी से बढ़ा और सभी राजनीतिक दलों में उनकी पहचान बन गई। प्रयागराज में निरंजनी अखाड़े की सबसे ज्यादा आय, इसी मंदिर से होती है।
राजनीतिक पहुंच के बाद भी नहीं की राजनीति
विकास के अनुसार उनके मुलायम सिंह यादव के परिवार से बेहद घनिष्ठ संबंध थे। उसमें भी शिवपाल सिंह यादव तो अक्सर उनसे मिला करते थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं। मौर्य फूलपूर से जब सांसद हुआ करते थे, उस समय भी उनके अच्छे संबंध रहे। दूसरे नेताओं से भी उनके संबंध रहे। हालांकि इसके बावजूद उन्होंने राजनीति से दूरी रखी। कभी किसी चुनाव में किसी दल या नेता का सार्वजनिक तौर पर समर्थन करने का ऐलान नहीं किया। शायद इसी वजह से सभी दलों में उनके बेहतर संबंध थे।
वीपी सिंह के परिवार ने दी थी अखाड़े को जमीन
निरंजनी अखाड़े के पास जिले में कई सौ बीघे जमीन है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्व नाथ प्रताप सिंह जो मांडा के राजा भी थे, उनके परिवार के लोगों ने किसी जमाने में बहुत सारी जमीन अखाड़े को दी थी। जहां खेती होती है। नरेंद्र गिरी ने अखाड़े की जिम्मेदारी संभालने के बाद, उसका कायाकल्प कर दिया। पहले वह टूटा-फूटा अखाड़ा हुआ करता था। उसकी इमारतें जर्जर थी, लेकिन उनके आने बाद उसका रूप ही बदल दिया।
आनंद गिरी को बचपन से पाला
विकास कहते हैं कि नरेंद्र गिरी के शिष्य आनंद गिरी, उनके बेहद करीब रहे हैं । उनका पालन-पोषण बचपन से नरेंद्र गिरी ने किया। विकास कहते हैं कि जब आनंद गिरी 7-8 साल के रहे होंगे, उस वक्त से मैं उन्हें देख रहा हूं। नरेंद्र गिरी ने माउंट आबू में उनकी पढ़ाई-लिखाई कराई और बाद में प्रयागराज बुला लिया। लेकिन पिछले कुछ समय से जमीनों की बिक्री को लेकर दोनों में दूरियां बढ़ी। इसके अलावा आनंद गिरी पर कई तरह के आरोप लगे, जिसके बाद दोनों के बीच खींचतान शुरू हुई और महंत नरेंद्र गिरी ने आनंद गिरी को मार्च 2021 में अखाड़े से निष्कासित कर दिया। हालांकि बाद में माफी मांगने पर वापस भी ले लिया। ऐसा कहा जाता है कि इस बात की उन्हें टीस थी कि आनंद गिरी की वजह से उनकी छवि खराब हो रही है।
बहुत सारी इमारती खाली कराई
अखाड़े की शहर में बहुत सारी जमीनें ऐसे थी, जिसमें पीढ़ियों से लोग रह रहे थे। यहां पर 150-200 साल से लोग बेहद मामूली किराए पर रहते थे। ऐसी ही एक इमारत दारागंज इलाके में थी। उन्होंने पिछले कुंभ से पहले उस इमारत को खाली कराया। उसमें करीब 150-200 परिवार रहते थे। हालांकि पिछले 20 साल से जितना मैं उन्हें जानता हूं, वह ऐसे शख्स नहीं लगते थे, जो आत्महत्या कर ले।
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