यूपी में चुनाव से ठीक पहले ताबड़तोड़ छापेमारी से हड़कंप मचा हुआ है। कल कानपुर में इत्र व्यापारी पीयूष जैन के 7 ठिकानों पर छापेमारी की गई। इस छापे के दौरान व्यापारी के ठिकानों से 150 करोड़ से ज्यादा का कैश बरामद हुआ। पैसा इतना था कि उसे ले जाने के लिए ट्रक बुलाने पड़े। आज कन्नौज में छापेमारी हो रही है। कन्नौज में पीयूष जैन के साथ साथ एक और इत्र व्यापारी रानू मिश्रा के घर और कारखाने में छापेमारी की गई। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कन्नौज में आज की छापेमारी में अब तक अहम दस्तावेज और लैपटॉप को जब्त किया गया है।
डायरेक्टर जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलीजेंस और आयकर विभाग की ये छापेमारी चल रही है, लेकिन इस छापेमारी पर सियासत तेज हो गई है। कल कानपुर में छापेमारी शुरू होते ही बीजेपी के कई नेताओं ने ट्वीट कर समाजवादी पार्टी से व्यापारी पीयूष जैन का सीधा संबंध निकाल दिया। बीजेपी ने आरोप लगाया कि इसी व्यापारी ने नवंबर में समाजवादी पार्टी का इत्र लॉन्च किया था, जबकि समाजवादी पार्टी का कहना है कि जिस व्यापारी के ठिकानों पर छापेमारी की गई, उससे उनका कोई लेना देना नहीं है। बीजेपी ऐसा नैरेटिव फैला रही है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव छापेमारी को लेकर सवाल उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि बादशाह का नाम आते ही सब खामोश। पहले देखिए अखिलेश के इस ट्वीट को, जो लिखते हैं, 'सुबह तलक चीखकर सुना रहे थे कुछ खबरनवीस 'जिसके' गुनाह की कहानी, 'उसका' बादशाह से ताल्लुक निकलते ही शाम तलक वो खामोश हो गए।'
कौन हैं पीयूष जैन, आईटी के छापे में मिला है 150 करोड़ रु.का कैश
अखिलेश यादव बादशाह की बात कर रहे हैं, लेकिन खुलकर बोल नहीं रहे हैं। अगर अखिलेश को लगता है कि व्यापारी पीयूष जैन का बीजेपी से संबंध हैं तो वो सामने रखें। सबूत दिखाएं और बताएं कि व्यापारी से कैसे संबंध हैं।
यूपी चुनाव से ठीक पहले ये कोई पहली छापेमारी नहीं थी। अभी चंद दिन पहले 18 नवंबर को अखिलेश यादव के चार करीबियों पर छापेमारी हुई थी। लखनऊ, मऊ, मैनपूरी में छापेमारी हुई थी। इस छापेमारी के बाद अखिलेश ने बीजेपी पर हार का डर दिखने पर हथकंडा अपनाने का आरोप भी लगाया था।
बीजेपी और समाजवादी पार्टी एक-दूसरे को तेरा व्यापारी कहकर छापे पर छापामार युद्ध कर रहे हैं, लेकिन छापा करने वाली एजेंसियों ने भी अभी तक इन व्यापारियों का किसी पार्टी से संबंध की बात नहीं कही है। ऐसे में सवाल है
क्या इत्र की सुगंध में सियासी दुर्गंध है ?
एजेंसियों के छापे पर क्यों 'छापामार' युद्ध ?
150 करोड़ रुपयों का क्या चुनावी कनेक्शन?
छापेमारी की कार्रवाई क्या राजनीतिक है ?
शिकंजे में भ्रष्टाचारी, और कितनों की बारी?
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