Unrecognised Madrassas survey in UP : उत्तर प्रदेश में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे कराने का फैसला योगी सरकार ने लिया है। सरकार के इस फैसले पर राजनीति भी हो रही है। कुछ मौलवी सरकार के इस कदम को सही ठहरा रहे हैं तो कुछ सर्वे के विरोध में हैं। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे 'मिनी एनआरसी' बताया है। जबकि जमीयत उलेमा ए हिंद ने राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत और समर्थन किया है। यूपी सरकार का कहना है कि सर्वे का मकसद मदरसों को मॉडर्न बनाना और उन्हें अन्य सुविधाएं देना है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में इस वक्त कुल 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से 560 को सरकारी अनुदान दिया जाता है। प्रदेश में पिछले छह साल से नए मदरसों को अनुदान सूची में नहीं लिया गया है। हर जिले में तहसील के उप जिलाधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सर्वे टीम के सदस्य होंगे
मदरसों को 10 हजार करोड़ रुपए का दान मिला
यूपी में मदरसों का सर्वे क्यों जरूरी है तो इसके लिए अब आपके सामने डेटा रखते हैं। एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में मदरसा को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। दावा है कि मदरसों को करीब दस हजार करोड़ रुपए डोनेशन के जरिए मिले लेकिन हैरानी की बात ये है कि मदरसा के बच्चों के खाने पर खर्च पचास फीसदी कम हो गया है। ऐसे में सवाल है कि आखिर पैसा जा कहां रहा है।
ऐसे होगा मदरसों का सर्वे
पैसों का कितना सही इस्तेमाल हुआ ये बड़ा सवाल है
मदरसों को सबसे ज्यादा डोनेशन जकात के जरिए मिली। जकात का मतलब होता है इस्लाम में आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी जरूरतमंद को देना अनिवार्य है। इससे करीब 8 हजार 106 करोड़ रुपए मदरसों को मिला। जबकि ईद के नमाज से पहले हैसियत के हिसाब से जो दान दिया जाता है उस फितरा से करीब 932 करोड़ रुपए का डोनेशन आया। वहीं बकरीद में कुर्बानी के बाद जानवरों के चमड़े को बाजार में बेचकर आमदनी से 1200 करोड़ रुपए का डोनेशन मदरसा को गया। दस हजार करोड़ कोई मामूली रकम नहीं है लेकिन इन पैसों का कितना सही इस्तेमाल हुआ ये बड़ा सवाल है।
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