सीएए पर अब भड़का उर्मिला मातोंडकर का गुस्‍सा, बोलीं- यह अंग्रेजों के समय के काले कानूनों जैसा

सीएए के खिलाफ अब उर्मिला मातोंडकर ने भी अपनी बात रखी है। उन्‍होंने इसकी तुलना अंग्रेजों के समय के दमनकारी कानूनों से की और कहा कि इतिहास इसे काले कानून के रूप में दर्ज करेगा।

Urmila Matondkar compares Rowlatt Act to CAA says it will be recorded as black laws in history
उर्मिला मातोंडकर ने सीएए के खिलाफ अपनी बात रखी है  |  तस्वीर साभार: ANI

पुणे : नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में जारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच अब अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। उन्‍होंने इसकी तुलना अंग्रेजों के समय के दमनकारी कानून से करते हुए कहा कि इतिहास इसे काले कानूनों में दर्ज करेगा। 

उन्‍होंने कहा कि 1919 में जब प्रथम विश्‍वयुद्ध समाप्ति की ओर था, ब्रिटिश शासकों को अच्छी तरह पता था कि भारत में उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है और यह युद्ध के समाप्‍त होने के बाद और जोर पकड़ सकता है। इसलिए वे ऐसा कानून लेकर आए, जिससे लोगों की आवाज दबाई जा सके। यह रॉलेक्‍ट एक्‍ट के नाम से जाना गया। अब सरकार उसी तरह का कानून लेकर आई है। इतिहास रॉलेक्‍ट एक्‍ट के साथ-साथ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी काले कानूनों के रूप में दर्ज करेगा।

उर्मिला गुरुवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रही थीं। गांधी भवन मेमोरियल में आयोजित कार्यक्रम में उन्‍होंने कहा कि महात्‍मा गांधी की विचारधारा आज भी जिंदा है। इसकी पुष्टि इसी बात से होती है कि यहां तक कि सीएए का समर्थन करने वाले लोग भी राजघाट जाकर उन्‍हें श्रद्धांजलि देते हैं।

यहां उल्‍लेखनीय है कि उर्मिला ने वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन थामा था, जिसके बाद पार्टी ने उन्‍हें मुंबई उत्‍तर लोकसभा क्षेत्र से उम्‍मीदवार भी बनाया था। लेकिन चुनाव में वह हार गईं और कुछ ही महीनों बाद उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ भी दी।

यह भी गौरतलब है कि उर्मिला ने सीएए को जिस रॉलेट एक्‍ट जैसा बताया है, उसे अंग्रेज 1919 में लाए थे। इसे ब्रितानी जज सर सिडनी रौलट ने तैयार किया था, जिनके नाम पर इसका नाम रखा गया। यह कानून भारतीय नागरिकों के अधिकारों और प्रेस की आजादी को कुचलने वाला था। इसके तहत प्रशासन को लोगों की गि‍रफ्तारी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में रखने को लेकर असीमित अधिकार दिए गए थे। तब भारत में महात्‍मा गांधी सहित कई नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था।

 

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