Vaccination in India: कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ वैक्सीन सबसे अहम हथियार है। हमारे देश में भी कोविड 19 के खिलाफ टीका लगाया जा रहा है। सरकार इसे सबसे बड़ा अभियान बता रही है, अभी तक 25 करोड़ के करीब डोज दी भी जा चुकी हैं। हालांकि देश की टीकाकरण नीति पर शुरू से सवाल उठे हैं। ये सवाल उस समय और तेज हो गए जब कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया। एक तरफ कई देश वैक्सीनेशन से कोविड की गति को रोकने में लगे हुए थे, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश में वैक्सीन की कमी होने लगी। सवाल होने लगे कि जब हमको तेज गति से वैक्सीन लगानी चाहिए थी, हमारी रफ्तार धीमी पड़ गई। पहले देश की जनता को प्राथमिकता देनी चाहिए थी, उस समय हम दूसरे देशों में वैक्सीन भेज रहे थे।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया तो टीकाकरण नीति में बड़े बदलाव का ऐलान किया। उन्होंने कहा, '21 जून से भारत सरकार 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों मुफ्त वैक्सीन मुहैया कराएगी। वैक्सीन निर्माताओं से कुल वैक्सीन उत्पादन का 75 प्रतिशत हिस्सा भारत सरकार खुद ही खरीदकर राज्य सरकारों को मुफ्त देगी। देश में बन रही वैक्सीन में से 25 प्रतिशत, प्राइवेट सेक्टर के अस्पताल सीधे ले पाएं ये व्यवस्था जारी रहेगी। देश की किसी भी राज्य सरकार को वैक्सीन पर कुछ भी खर्च नहीं करना होगा। सभी देशवासियों के लिए भारत सरकार ही मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाएगी।'
पीएम मोदी की इस घोषणा का राज्यों सरकारों ने स्वागत किया। हालांकि सवाल उठने लगे कि इस फैसले को लेने में देरी क्यों हुई। क्या हर तरफ से हुई आलोचना और सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों के बाद मोदी सरकार इस फैसले को करने के लिए मजबूर हुई। ऐसे में यहां समझने की जरूरत है कि अभी तक हमारे देश की टीकाकरण नीति क्या रही है और क्यों इस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं? क्या अब जो नीति बनी है, उसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे?
वैक्सीन की हुई कमी
जब इस साल की शुरुआत में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तो भारत ने सबसे पहले 30 करोड़ जनता को टीका लगाने की योजना बनाई, जिसमें हेल्थ वर्कर्स, फ्रंट लाइन वर्कर्स और वो लोग शामिल थे, जो किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हों। लेकिन बाद में मोदी सरकार ने 1 मई से सभी वयस्कों के लिए कार्यक्रम का विस्तार कर दिया। हालांकि इस दौरान वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर सवाल उठने लगे। कई राज्य सरकारों ने कई टीकाकरण केंद्र बंद कर दिए, क्योंकि उनके पास वैक्सीन नहीं थी।
नीति में किया गया बदलाव
मोदी सरकार ने 1 मई से 45 वर्ष से कम आयु के लोगों को टीका लगाने के लिए राज्यों को घरेलू निर्माताओं से टीके खरीदने या आयात करने के लिए कहा। कई राज्यों ने टीकों के आयात के लिए वैश्विक निविदाएं जारी कीं, लेकिन कोई भी इस तरह वैक्सीन हासिल नहीं कर सका। बाहरी कंपनियों ने कह दिया कि वो राज्य सरकारों से नहीं बल्कि केंद्र सरकार से डील करेंगी। अब प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि मई से पहले की व्यवस्था लागू होगी और वैक्सीनेशन की पूरी जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार की होगी। राज्यों सरकार से टीकाकरण की पूरी जिम्मेदारी वापस ली जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए वैक्सीन नीति पर सवाल
इससे पहले इसी महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी पर सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पुतनिक वी के लिए केंद्र सरकार ने किन तारीखों को ऑर्डर जारी किया था। हर तारीख पर वैक्सीन की कितनी संख्या के लिए ऑर्डर दिया गया। सप्लाई की अनुमानित तारीख क्या है। कोर्ट ने केंद्र से नई वैक्सीन पॉलिसी पर दोबारा विचार करने को कहा था। वैक्सीन नीति को लेकर कोर्ट ने सरकार से कई सवाल किए, जिनके संतोषजनक जवाब नहीं दिए गए। 2021-22 बजट में टीकों की खरीद के लिए रखे गए 35,000 करोड़ रुपए कैसे खर्च किए गए?
कीमतों में आया उछाल
शुरुआत में प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन 250 रुपए प्रति डोज थी। लेकिन बाद में जब अस्पताल सीधे कंपनियों से वैक्सीन लेने लगे तो कीमत बढ़ गईं। यही वैक्सीन प्राइवेट अस्पतालों में 700 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक मिलने लगी। अब जब पीएम मोदी ने नई घोषणा की है तो प्राइवेट अस्पताल में कोविशील्ड वैक्सीन की एक डोज के लिए 780 रुपए और कोवैक्सीन की एक डोज के लिए 1410 रुपए लिए जाएंगे।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।