Karnataka High Court Verdict on Hijab row : हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपना अहम फैसला दिया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हिजाब पहनने पर राज्य सरकार की ओर से लगाई गई रोक में कुछ भी गलत नहीं है, यह फैसला संवैधानिक है। छात्र यूनिफॉर्म पहनने से न तो इंकार और न ही कोर्ट के फैसले का विरोध कर सकते हैं। हाई कोर्ट ने हिजाब विवाद से जुड़ी सभी अर्जियों को खारिज कर दिया। यही नहीं, कोर्ट ने अपने फैसले में बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की किताब 'पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया' ( 1945) के एक चैप्टर के अंश का भी जिक्र किया।
कोर्ट ने किताब के 'सोशल स्टैगनेशन' चैप्टर का हवाला दिया जिसमें लिखा गया है कि 'एक महिला (मुस्लिम) को केवल उसके बेटे, भाइयों, पिता, चाचा और पति के अलावा रिश्ते में करीबी ऐसे व्यक्ति के सामने आने की इजाजत दी जा सकती है जिस पर विश्वास किया जा सके। यहां तक कि महिला मस्जिद में नमाज अदा करने भी नहीं जा सकती है। महिला जब कभी बाहर निकले तो उसे बुर्का अवश्य पहनना चाहिए। भारत की सड़कों पर बुर्का महिलाओं को ढंकने का सर्वोत्तम तरीका है...मुस्लिमों में हिंदू एवं अन्य समाज की बुराइयां आ गई हैं। इसलिए मुस्लिम महिलाओं को परदे में रखना अनिवार्य बन जाता है।'
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'हीन भावना के साथ मुस्लिम महिलाओं को देखा जाता है'
डॉ. अंबेडकर अपनी इस किताब में लिखते हैं कि 'बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाने की वजह से मुस्लिम महिलाएं पारिवारिक झगड़ों एवं विवादों में शामिल रहती हैं। उनकी मानसिकता संकीर्ण हो जाती है और वे अपने पहनावे को लेकर एक दायरे में बंध जाती हैं। वे किसी बाहरी गतिविधि में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। उन्हें गुलामी एवं हीन भावना के साथ देखा जाता है। परदे में रहने वाली महिलाएं लाचार एवं डरपोक बन जाती हैं। भारत में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं परदे में रहती हैं जिसे देखते हुए पर्दा समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है। पर्दा व्यवस्था का नतीजा यह होता है कि मुस्लिम महिलाओं में एक तरह का अलगाव पैदा होता है।'
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स्कूल यूनिफॉर्म महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम-कोर्ट
संविधान निर्माता की इस किताब के अंशों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि 'आधी सदी से और पहले तक पर्दा प्रथा के बारे में जो बातें कही जाती थीं वही बात हिजाब पहनने पर लागू हो सकती हैं। मौजूदा समय में इस बात पर तर्क करने की पूरी संभावना है कि पर्दा, घूंघट, हिजाब पहनने पर जोर देने से महिलाओं खासकर मुस्लिम औरतों के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है। पर्दा प्रथा 'समान अवसर' एवं 'सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता' की जो हमानी संवैधानिक भावना है, उसके खिलाफ है। हिजाब, भगवा अथवा किसी तरह के धार्मिक पहनावे की जगह स्कूल यूनिफॉर्म पर जोर सशक्तिकरण खासकर शिक्षा तक पहुंच की दिशा में एक कदम है। यह कहना में कोई कठिनाई नहीं है कि यह महिलाओं के पहनावे एवं शिक्षा के अधिकार पर कोई अंकुश नहीं लगाता। वे क्लासरूम के बाहर अपनी पसंद का किसी तरह का पहनावा पहन सकती हैं।'
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