देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले की ऋषिगंगा घाटी में एक ग्लेशियर के टूटने से हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में भारी तबाही हुई है। अब तक सात लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि 125 से लेकर 150 लोग लापता बताए जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश लोग तपोवन रैणी स्थित बिजली परियोजना से जुड़े कामगार बताए जा रहे हैं। ग्लेशियर टूटने की घटना में यह संयंत्र पूरी तरह बह गया। उत्तराखंड के चमोली जिले में जो ग्लेशियर टूटा है, वह नंदा देवी पर्वत चोटी के करीब है और इसलिए इसे नंदा देवी ग्लेशियर भी कहा जाता है।
नंदा देवी ग्लेशियर, नंदा देवी पर्वत चोटी पर है। नंदा देवी पर्वत चोटी को कंचनजंगा के बाद देश की सबसे ऊंची पर्वत-चोटी कहा जाता है। कंचनजंगा पर्वत चोटी जहां भारत और नेपाल सीमा पर स्थित है, वहीं नंदा देवी पर्वत चोटी पूरी तरह देश के आंतरिक हिस्से में आती है और इस लिहाज से इसे भारत में हिमालय की सबसे ऊंची पर्वत चोटी भी कहा जाता है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और गढ़वाल हिमालय का हिस्सा है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 7,108 मीटर है और इसे दुनिया की कुछ चुनिंदा ऊंची पर्वत चोटियों में शुमार किया जाता है।
(तस्वीर साभार: PTI)
नंदा देवी ग्लेशियर के भी दो हिस्से हैं। नंदा देवी पर्वत चोटी के उत्तरी हिस्से में स्थित ग्लेशियर को उत्तरी नंदा देवी ग्लेशियर और दक्षिणी हिस्से में स्थित ग्लेशियर को दक्किनी नंदा देवी ग्लेशियर कहा जाता है। इनकी लंबाई लगभग 19 किलोमीटर है। ये दोनों ग्लेशियर पूरे साल बर्फ से ढके होते हैं। अब रविवार को इसके एक हिस्से के टूटने से ही जोशीमठ के करीब के इलाकों में विकराल बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
ग्लेशियर का निर्माण हवा में मौजूद नमी से होता है। दरअसल, जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है तापमान में कमी आने लगती है। करीब 165 मीटर ऊंचा जाने पर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। ऐसे में हवा में नमी बढ़ने लगती है और यही नमी पहाड़ों से टकराकर बर्फ का स्रोत बन जाती है, जिसे ग्लेशियर कहा जाता है। ये नदियों का उद्गम स्थल होती हैं। ग्लेशियर की बर्फ नीचे से पिघलकर नदियों का निर्माण करती हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल में नंदा देवी ग्लेशियर सहित कई अन्य बड़े ग्लेशियर भी हैं।
(तस्वीर साभार: PTI)
ग्लेशियर वास्तव में ठोस रूप में बर्फीला पानी ही होता है, जो पहाड़ों की तरह जमा होता है। इसके टूटने से पानी का प्रवाह बढ़ जाता है और बाढ़ की स्थिति बन जाती है, जैसा कि रविवार को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ। ग्लेशियर को हिमनद भी कहते हैं।
ग्लेशियर टूटने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक क्षरण, पानी का दबाव, बर्फीला तूफान, चट्टान का खिसकना, बर्फीली सतह के नीचे भूकंप आना, बर्फीले इलाकों में पानी का विस्थापन सहित कई अन्य कारण गिनाए जाते हैं। लेकिन उत्तराखंड में इस वक्त नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने की वजह कम बर्फबारी को बताया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार सर्दियों में इस इलाके में बर्फबारी कम हुई है, जो ग्लेशियर टूटने की वजह हो सकती है। उनका कहना है कि सर्दियों में बारिश और बर्फबारी ग्लेशियर को रोके रखते हैं, लेकिन इस साल ऊचांई वाले इलाकों में कम बर्फबारी हुई, जो इस घटना का कारण हो सकती है। हालांकि इस बारे में फिलहाल साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
(तस्वीर साभार: ANI)
भारत में उत्तराखंड के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के ऊंचाई वाले इलाकों में भी कई ग्लेशियर हैं, जिनकी संख्या करीब 200 बताई जाती है। सर्दियों में इन ग्लेशियरों पर निगरानी रखना बेहद मुश्किल हो जाता है और यह काम मार्च से सितंबर के बीच ही किया जाता है।
वहीं हिमालय क्षेत्र में विभिन्न देशों के अंतर्गत आने वाले ऊंचाई वाले इलाकों में ग्लेशियर झील की संख्या लगभग 8800 बताई जाती है, जिनमें से 200 से ज्यादा को खतरनाक श्रेणी में रखा जाता है। ये ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। इसके अतिरिक्त किसी तरह का भूंकप भी इन ग्लेशियरों को ज्यादा सक्रिय कर सकता है।
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