नई दिल्ली : अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड जे ऑस्टिन तीन दिवसीय भारत दौरे पर पहुंचे हैं। यह अमेरिका में जो बाइडन के सत्ता में आने के बाद अमेरिका के नए रक्षा मंत्री का पहला भारत दौरा है। अमेरिकी रक्षा मंत्री का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब चीन के साथ बीते करीब एक साल से भारत के रिश्तों में तनाव है तो व्यापार सहित कई अन्य मसलों पर अमेरिका के रिश्ते भी चीन के साथ तल्ख बने हुए हैं।
इन वैश्विक परिस्थितियों के बीच 12 मार्च को क्वाड देशों (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) का पहला शिखर सम्मेलन हुआ, जब कोविड-19 के बीच इन देशों के नेता वर्चुअल तरीके से एकजुट हुए। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल के बीच इसे 'ड्रैगन' के लिए कड़े संदेश के तौर पर देखा गया और अब अमेरिका के रक्षा मंत्री के भारत दौरे से दोनों देशों के रक्षा संबंधों को एक नई ऊंचाई मिलने उम्मीद की जा रही है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री के इस दौरान भारत के साथ रक्षा संबंधों को मजबूती देने वाले कई महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा की उम्मीद है तो इसके साथ ही एस-400 मिसाइल सिस्टम को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है, जिसके लिए भारत ने रूस के साथ करार किया है। अमेरिका पहले भी इस मसले पर भारत को चेतावनी दे चुका है तो अमेरिकी सीनेटर के एक पत्र से यह मसला एक बार फिर सुर्खियों में है।
अमेरिकी सीनेट की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष बॉब मेनेंदेज ने ऑस्टिन को पत्र लिखकर कहा है कि वह इस मसले को भारतीय अधिकारियों के साथ उठाएं और उनसे इसे लेकर प्रतिबंधों पर खुलकर बात करें। दरअसल, यूक्रेन में रूस के दखल और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप को लेकर अमेरिका ने अगस्त 2017 में CAATSA लागू किया था, जिसके तहत रूस के साथ-साथ ईरान और उत्तर कोरिया से भी रक्षा कारोबार को लेकर विभिन्न देशों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर राष्ट्रपति को कई अधिकार दिए गए।
बीते कुछ समय में अमेरिका इसे लेकर भारत से विरोध जताता रहा है कि वह रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम न खरीदे। उसका जोर अमेरिका से थाड एंटी मिसाइल सिस्टम खरीदने पर भी रहा है, लेकिन भारत एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर रूस के साथ आगे बढ़ने के अपने इरादे जाहिर कर चुका है, जिसके लिए डील 2018 में फाइनल हुई थी। अब सवाल उठता है कि यह मिसाइल सिस्टम भारत के लिए अहम क्यों है?
भारत के लिए इसकी अहमियत की बात करें तो वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (अवकाश प्राप्त) बीएस धनोआ इसे पहले ही भारतीय वायुसेना के लिए 'बूस्टर शॉट' बता चुके हैं। चीन और पाकिस्तान से पेश होने वाले रक्षा खतरों और उनसे निपटने को देखते हुए इसकी जरूरत व अहमियत और अधिक बढ़ जाती है।
चीन के पास पहले ही यह मिसाइल सिस्टम है, जिसे उसने 2014 में ही गवर्नमेंट-टु-गवर्नमेंट डील के तहत रूस से खरीदा था। चीन को रूस से इस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति भी शुरू हो गई है, ऐसे में भारत में भारत में भी इसकी इसकी जरूरत को खासी तवज्जो दी जा रही है। खासकर बीते साल अप्रैल के आखिर में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ बनी तनाव की स्थिति ने इसकी अहमियत और भी बढ़ा दी है।
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