राजनीति सीखने में वर्षों लग जाते हैं और महीन राजनीति करने में दशकों। राजनीति में सात साल का समय बहुत कम होता है लेकिन इतने कम वर्षों में यदि कोई एक बार नहीं बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंच जाए तो उसे सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाएगा। अरविंद केजरीवाल राजनीति के ऐसे ही खिलाड़ी बन गए हैं जिन्होंने अपनी शुरुआती गलतियों से सबक लेते हुए खुद को एक परिपक्व राजनेता के रूप में पेश किया। एक आरटीआई एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वह लंबे समय तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे लेकिन इनको असली पहचान अन्ना आंदोलन से मिली। भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यवस्था से टकराने वाले केजरीवाल को जल्द ही अहसास हो गया कि 'कीचड़ साफ करने के लिए कीचड़ में उतरने की जरूरत है।' दिल्ली की जनता से मिले अपार समर्थन के बाद दो अक्टूबर 2012 को उन्होंने अपनी आम आदमी पार्टी बनाई।
केजरीवाल का प्रारंभिक जीवन
केजरीवाल का जन्म हरियाणा के भिवानी जिले में 16 अगस्त 1968 को हुआ। इनके पिता का नाम गोविंद राम केजरीवाल और माता का नाम गीता देवी है। इनके पिता बिड़ला इंस्टीट्यूट में इंजीनियर थे। काम के सिलसिले में केजरीवाल के पिता का तबादला गाजियाबद, हिसार और सोनीपत कई शहरों में हुआ। केजरीवाल का बचपन भी इन शहरों में बीता। हालांकि, उनकी बचपन की पढ़ाई हिसार के कैंपस स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने आईआईटी खड़गपुर मेकनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। केजरीवाल ने बिड़ला इंस्टीट्यूट में थोड़े समय काम किया लेकिन उनका मन यहां नहीं लगा। फिर वह कोलकाता में रामकृष्ण मिशन एवं नेहरू युवा केंद्र से जुड़ गए।
केजरीवाल की शादी सुनीता से हुई। सुनीता से उनकी मुलाकात राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में हुई। दोनों ने प्रेम विवाह किया। केजरीवाल और सुनीत के दो बच्चे हर्षिता और पुलकित हैं। केजरीवाल के संघर्ष में सुनीता हमेशा उनके साथ रहीं और साल 2015 में केजरीवाल के दोबारा सीएम बनने के बाद उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। केजरीवाल पूरी तरह से शाकाहारी हैं और नियमित रूप से विपासना करते हैं। खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद केजरीवाल टाटा स्टील ग्रुप में नौकरी कर ली। कुछ समय बाद इन्होंने सिविल की पढ़ाई के लिए छुट्टी ले ली। साल 1992 में उन्होंने टाटा स्टील की नौकरी छोड़ दी और सिविल परीक्षा की तैयारी में जुट गए। केजरीवाल सिविल परीक्षा पास की भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी बन गए। साल 2006 में इन्होंने आय कर विभाग में ज्वाइंट कमिश्नर के पद से इस्तीफा दे दिया और अपने एनजीओ परिवर्तन के साथ पूरी तरह से जुड़ गए।
अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी
अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। साल 2012 में इंडिया अंगेस्ट करप्शन संस्था को व्यापक जन समर्थन मिला। अन्ना हजारे चाहते थे कि उनका आंदोलन गैर-राजनीतिक रहे, लेकिन केजरीवाल को यह बात समझ में आ गई कि व्यवस्था में यदि सुधार लाना है तो राजनीति में उतरना होगा। इसके बाद उन्होंने 2 अक्टूबर 2012 को जंतर मंतर से अपनी आम आदमी पार्टी का ऐलान किया और देखते ही देखते इससे लाखों लोग जुड़ गए। साल 2013 में आप ने दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ा। अपने पहले ही चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को शानदार सफलता मिली। खुद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से कांग्रेस की दिग्गज नेता एवं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी। शीला दीक्षित लगातार तीन बार से दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं। केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री कांग्रेस के सहयोग से बने लेकिन उनकी यह सरकार मात्र 49 दिन चली। केजरीवाल ने फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
लोकसभा चुनाव 2014 में मिली असफलता
एक साल के बाद ही आप ने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। खुद केजरीवाल नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए वाराणसी पहुंच गए, लेकिन वहां उनकी बड़ी हार हुई। यही नहीं, पंजाब को छोड़कर अन्य राज्यों में आप को कोई सफलता नहीं मिली। पंजाब में उनकी पार्टी लोकसभा की चार सीटें जीतने में कामयाब रही। लोगों का मानना है कि एक साल पहले अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले केजरीवाल को लोकसभा चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए था।
2015 के विधानसभा चुनाव में आप को मिला प्रचंड बहुमत
साल 2015 में दिल्ली की जनता ने आप को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाई। इस चुनाव में आप विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटें जीतने में कामयाब हुई। इस चुनाव में भाजपा को मात्र तीन सीटें मिलीं तो कांग्रेस शून्य पर सिमट गई। दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद केजरीवाल ने शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और सुरक्षा के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। 200 यूनिट तक बिजली और प्रति महीने 20 लीटर पानी नि:शुल्क की इनकी योजना लोगों में काफी पसंद की गई। हालांकि, सत्ता संभालने के करीब तीन वर्षों तक केजरीवाल का केंद्र सरकार से टकराव चलता रहा, लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आप के खराब प्रदर्शन और लोगों में मोदी की लोकप्रियता ने उन्हें अपनी रणनीति बदलने के लिए बाध्य किया।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।