आज भी क्यों डराता है कश्मीरी पंडितों को 14 सितंबर और 19 जनवरी का दिन, जानें 90 दशक की 'कश्मीर फाइल्स'

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प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Mar 14, 2022 | 16:43 IST

Kashmiri Pandits 1990 Story in Hindi: दिसंबर 1989 में लगभग 77 हजार कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। जिनकी करीब 3.35 लाख आबादी थी। लेकिन अब केवल 808 परिवार यानी 3000 लोग ही कश्मीर में बचे हुए हैं।

Kashmiri Pandit Exodus in 1990 and Kashmir Files
तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितों का हुआ पलायन  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • संग्रामपुर हत्याकांड, गूल हत्याकांड, वंधामा हत्याकांड, नादीमार्ग हत्याकांड में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित शिकार हुए।
  • 14 मार्च 1989 से 30 मई 1990 तक 187 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई थी।
  • वहीं एक जून से 31 अक्टूबर 1990 तक 387 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई।

Kashmir Files,Kashmiri Pandits 1990 Story in Hindi: द कश्मीर फाइल्स  फिल्म ने एक बार फिर कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन की घटना को ताजा कर दिया है। 80 और 90 के दशक में कश्मीर से करीब 3.30 लाख कश्मीरी पंडितों का आंतक की वजह से पलायन हुआ था। और करीब 31 साल बाद भी वह अपने घरों को लौट नहीं पाए हैं। ऐसे में टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने पलायन की त्रासदी झेल चुके लोगों से बात की है। और समझने की कोशिश की है कि 14 सितंबर और 19 जनवरी का दिन उन्हें आज भी क्यों नहीं भूलता है..

कश्मीरी पंडित कैसे बने निशाने 

पलायन कर जम्मू में रहने वाले और रिसर्चर,  डॉ रमेश तामिरी उस दौर को याद करते हुए टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से  कहते हैं '1981-82 में जब राज्य में आतंकवाद शुरू हुआ , उसके बाद से कश्मीरी पंडितों के खिलाफ एक अभियान शुरू हो गया। आतंक फैलाने के लिए 1986 में अनंतनाग में टारगेटेड हमला किया गया। लोगों के घर जलाए गए, हत्याएं की गई। उस वक्त जो सरकारें थी और उनके तहत काम करने वाले एक तबके में भी भारत विरोधी माहौल बन गया था। कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति को देखते हुए केंद्र में मौजूद इंदिरा गांधी सरकार ने फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को 1984 में बर्खास्त कर दिया । लेकिन साल 1989 आते-आते कश्मीरी पंडित सीधे तौर पर निशाने पर आ गए। इस बीच 14 सितंबर 1989 को प्रमुख हिंदू नेता टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद से पलायन तेजी शुरू हो गया। कश्मीरी पंडित इसीलिए टपलू की हत्या के दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं।

 यह कदम हुए घातक !

तामिरी के अनुसार 1989 में जब वी.पी.सिंह की सरकार आई और मुफ्ती मुह्म्मद सईद गृहमंत्री बने तो उन्होंने तीन-चार ऐसे फैसले लिए, जिससे आतंकवादियों को हौसले बढ़ गए।

-पहला हौसला बढ़ाने वाला कदम मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का आतंकवादियों द्वारा किया गया अपहरण का मामला था। रूबिया सईद को छुड़वाने के लिए आतंकवादियों की रिहाई की गई। उस वक्त आतंकवादियों को लगा कि सरकार तो आसानी से झुक सकती है। 

-दूसरा कदम यह उठाया गया है कि श्रीनगर शहर में मौजूद बीएसएफ के मौजूद मोर्चों को हटा दिया गया। इसको हटाने के पीछे यह दलील दी गई कि इनसे लोगों को दिक्कतें हो रही हैं। जिससे सुरक्षा व्यवस्था कमजोर हुई।

-तीसरा कदम यह था कि चरार-ए-शरीफ के लिए करीब एक लाख से ज्यादा लोगों के जुलूस को अनुमति दी गई। इससे भी पाकिस्तान के पक्ष में माहौल बन गया।

-चौथा कदम यह था कि जो लोग आजाद कश्मीर की मांग कर रहे थे। उन लोगों को श्रीनगर स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के ऑफिस जाने की अनुमति दी गई । इसका असर यह हुआ कि कश्मीर के एक बड़े वर्ग में यह संदेश गया कि भारत कश्मीर को छोड़ रहा है।

इन बदलावों के बाद आतंकवादियों द्वारा खुलेआम धमकियां दी जाने लगी। और मस्जिदों से नारे लगने लगे, 'कश्‍मीर में अगर रहना है, अल्‍लाहू अकबर कहना है' और 'असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान' मतलब हमें पाकिस्‍तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर कश्मीरी पंडितों के मर्दों के बिना चाहिए। 19 जनवरी 1990 को ऐलान कर दिया गया कि 48 घंटे के अंदर कश्मीरी पंडित घर छोड़ दें। अल शफा (पेपर) के जरिए इस तरह की धमकियां दी गई।  और उसके बाद लाखों कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हो गए।'

तामिरी की कश्मीर में पाक द्वारा 1947 में किए गए अतिक्रमण पर एक पुस्तक भी आने वाली है।

शिवरात्रि के दिन दंगे से बिगड़ा माहौल

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं 'कश्मीरी पंडितों के खिलाफ माहौल की शुरूआत 1986 में अनंतनाग में शिवरात्रि के दिन दंगे से हुई थे। जिसमें मंदिर जलाए गए, पत्थर फेके गए। उसके बाद कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और आईएसएल ने 1987 में एक रेकी की, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या आदि का आंकलन किया गया। जिसके बाद से घटनाएं बढ़ने लगी। जैसे 14 मार्च 1989 को एक ब्लॉस्ट हुआ, जिसमें सात लोग घायल हुए थे। उसमें एक महिला कलावती भी घायल हुईं थी,  उन्हें इलाज के लिए पुलिस अस्पताल ले गई। लेकिन जैसे ही उनकी पहचान हुई तो उनका इलाज नहीं किया गया और ज्यादा खून  निकलने से उनकी मौत हो ई। इसके बाद 14 सिंतबर को हिंदू नेता टीका लाल टपलू की हत्या हो गई। 

19 जनवरी 1990 को क्या हुआ

उस समय सेटेलाइट चैनल नहीं हुआ करते थे। 19 जनवरी 1990 को दूरदर्शन पर हमराज फिल्म आ रही थी। इस बीच रात में मस्जिदों से ऐलान हुआ कि कश्मीरी पंडित घर छोड़ कर चले जाए। एक घंटे में पूरे कश्मीर में पंडितों के खिलाफ आग फैल गई। लोग डरे-सहमे जरूर थे लेकिन  फिर भी 90 फीसदी कश्मीरी पंडितों ने पलायन नहीं किया। कश्मीर में कर्फ्यू लगा हुआ था। उसके बावजूद लोग सड़कों पर थे। मेरा मानना है कि उस वक्त मौजूद केंद्र, राज्य सरकारों ने कुछ नहीं किया। लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। फिर  21 जनवरी 1990 को एक और हत्याकांड हुआ । इसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 52 लोगों की हत्या हुई। इसके बद 20-21 फरवरी को शिवरात्रि के दिन सतीश टिक्कू की हत्या कर दी गई। इसके बाद 15 मार्च से बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया। जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार साल 1990 के दौरान 15 मार्च  से 30 मई के बीच सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ है। एक अन्य आंकड़ों के अनुसार 14 मार्च 1989 से 30 मई 1990 तक 187 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई थी। जबकि एक जून से 31 अक्टूबर 1990 तक 387 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई। साफ है पलायन के बाद भी कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का सिलसिला जारी रहा था।

मस्जिदों से निकाली जाती थी पर्ची

टिक्कू के अनुसार उस दौर में  मस्जिदों में कश्मीरी पंडितों के नाम तय किए जाते थे। जिसके बाद हत्याएं होती थी। उस दौरान मेरे परिवार को भी हिट लिस्ट में डाला गया। लेकिन कई स्थानीय लोगे ऐसे भी थे, जिन्होंने हिट लिस्ट में नाम आने वाले पंडितों के परिवारों को जानकारी देकर, उनकी जान बचाई। उन्हें सतर्क कर सुबह तक घर छोड़ने के लिए कहा गया । इस तरह  50-60 फीसदी कश्मीरी पंडित, कश्मीर छोड़ कर चले गए। इसके अलावा हाथ से लिखे पोस्टर भी दीवारों पर चिपकाए जाते थे। और उसमें लिखा होता था कि आप लोग कश्मीर छोड़कर चले जाइए नहीं तो मार दिए जाएंगे। इसके बाद 1997 से 2003 के बीच संग्रामपुर हत्याकांड, गूल हत्याकांड, वंधामा हत्याकांड, नादीमार्ग हत्याकांड जैसी घटनाओं ने कश्मीरी पंडितों के खिलाफ पूरा माहौल बना दिया।

आरटीआई के जरिए हमने पता लगाया कि दिसंबर 1989 में लगभग 77 हजार कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। जिनकी करीब 3.35 लाख आबादी थी। इसमें अब केवल 808 परिवार यानी 3000 लोग बचे हुए हैं।'

Disclaimer: उस दौर की सारी जानकारी डॉ रमेश तामिरी और कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू से बातचीत के आधार पर दी गई है।

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