नई दिल्ली। दिल्ली की सड़कों पर किसान नए कृषि कानून के विरोध में पिछले 59 दिन से डटे हुए हैं। केंद्र सरकार के साथ 11 दौर की वार्ता हो चुकी है। लेकिन नतीजा सिफर रहा। 11वें दौर की बातचीत से पहले के दौर के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मीडिया से मुखातिब होते थे और कहते थे कि बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई और आगे की तारीख के बारे में बताते थे। लेकिन 11वें दौर की अनिर्णित बातचीत के बाद जब वो मीडिया से मुखातिब हुए तो कहा कि अब तो किसानों को फैसला करना है कि आगे का रास्ता क्या होगा।
अड़े और डटे हुए हैं किसान
अब इस तरह के परिप्रेक्ष्य में यह समझना जरूरी है कि किसानों के लिए आगे का रास्ता कैसा होगा क्योंकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी तरफ से उत्तम प्रस्ताव दिया गया है। यहां हम आपको जानकारों के नजरिए से बताएंगे कि आगे का रास्ता क्या हो सकता है। दरअसल किसानों को कहना है कि वो कृषि कानूनों के रद्द करने और एमएसपी को कानूनी तौर बाध्यकारी बनाने से कम पर राजी नहीं हैं।
केंद्र सरकार ने अपना रुख किया है साफ
दरअसल केंद्र सरकार का कहना है कि अगर किसी आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो आंदोलन अपने मकसद से भटक जाता है। इसके साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने स्पष्ट तौर पर कहा कि दिल्ली की सीमा पर जो किसान बैठे हुए हैं वो पंजाब के किसान हैं, इसका अर्थ यह है कि केंद्र सरकार का स्पष्ट मानना है कि यह आंदोलन पूरे देश का नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जो लोग आंदोलन में शामिल हैं उनके लिए दूसरे किसानों की भावना को समझना जरूरी है।
क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आगे क्या होगा इसके बारे में किसान ही फैसला करेंगे तो यह किसके लिए सही नहीं है। जानकार कहते हैं कि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने जिस समिति का गठन किया है उसके बारे में किसान संगठनों से जिस तरह से पेश नहीं होने का फैसला किया है उससे संदेश यही जाएगा कि आखिर किसान किसकी बात मानेंगे। इसे एक तरह से किसानों की हठधर्मिता की तरह देखा जाएगा।
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