नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी मुश्किल में हैं। सीबीआई की विशेष अदालत ने उनके खिलाफ विनिवेश के एक केस में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। मामला 2002 का है जब वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्री हुआ करते थे। उस समय सरकार का मानना था कि ऐसे सरकारी निकायों में विनिवेश किया जा सकता है जो बहुत अधिक लाभप्रद नहीं है और उसी क्रम में उदयपुर का लक्ष्मी विलास पैलेस होटल का नंबर आया।
2002 में लक्ष्मी विलास होटल का हुआ था विनिवेश
लक्ष्मी विलास होटल के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू हुई और सात करोड़ में ललित ग्रुप को होटल दे दिया गया जबकि होटल की वास्तविक कीमत 252 करोड़ थी। लेकिन राजनीतिक विरोध शुरू हुआ और उसका असर यूपीए सरकार में दिखाई दिया। यूपीए सरकार ने इस केस को सीबीआई के हवाले किया और जांच शुरू हुई।
जांच में दम नहीं लेकिन अदालत ने माना नहीं
सीबीआई ने जांच शुरू की और इस नतीजे पर पहुंची कि केस में दम नहीं है और क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी। लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया और आदेश दिया कि अरुण शौरी समेत पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया जाए। इसके साथ ही अदालत ने उदयपुर जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि तीन दिनों में होटल का अध्ययन कर पूरी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करे। जब तक यह प्रक्रिया चलेगी होटल संचालन की जिम्मेदारी आईटीडीसी के हाथों में होगी।
सीबीआई अदालत ने एफआईआर के दिए निर्देश
2002 में विनिवेश प्रक्रिया के तहत जब लक्ष्मी विलास होटल का निजीकरण किया जा रहा था उस वक्त उदयपुर के लोगों ने जबरदस्त विरोध किया था। उस वजह से तत्कालीन वाजपेयी सरकार को आलोचना झेलनी पड़ी थी। लेकिन अब सीबीआई की विशेष अदालत ने विनिवेश प्रक्रिया को गलत ठहराया और अरुण शौरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
1999 में विनिवेश विभाग और 2001 में विनिवेश मंत्रालय
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान अलग से विनिवेश मंत्रालय का गठन हुआ था। उस मंत्रालय को जिम्मेदारी दी गई कि ऐसी सरकारी कंपनियां या उपक्रम जो हाथी के दांत साबित हो रहे हैं उनमें सरकार को अपनी हिस्सेदारी घटा देनी चाहिए। इस पूरी कवायद के सूत्रधार अरुण शौरी रहे। विनिवेश के फैसले को वाजपेयी सरकार के दौरान बोल्ड फैसले के लिए जाना जाता रहा है। 1999 में विनिवेश विभाग का गठन किया गया और 2001 में विनिवेश मंत्रालय अस्तित्व में आया। मंत्रालय गठन के तुरंत बाद सरकार ने मारुति उद्योग लिमिटेड में विनिवेश को मंजूरी दी। उस वक्त बीपीसीएल और एचपीसीएल के भी विनिवेश की बात चली। लेकिन वो मामला ठंडे बस्ते में रहा।
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