नई दिल्ली: देश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल, भाजपा और कांग्रेस में इस समय राज्यों के स्तर पर कई अहम चुनौतियां उभर कर सामने आ रही है। इसकी वजह से दोनों दलों ने आगामी चुनावों को देखते हुए कई अहम बदलाव करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। इसी कड़ी में भाजपा ने पिछले 6 महीने में 4 मुख्यमंत्री बदल दिए हैं। वहीं कांग्रेस भी पंजाब में राज्य के शीर्ष नेतृत्व के विवाद को सुलझाने की कोशिशों में लगी हुई है। जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कुर्सी को लेकर गुटबाजी बढ़ती चली जा रही है। इस कवायद में दोनों पार्टियों में एक अंतर भी उभर कर सामने आने लगा है। जहां भाजपा में राज्यों के अंदर नेतृत्व परिवर्तन बेहद आसानी से हो गया है। वहीं कांग्रेस में खींचतान खुल कर सामने आ गई है।
भाजपा में क्या हुए बदलाव
भाजपा ने मार्च 2021 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। और उसके 4 महीने बाद ही तीरथ सिंह रावत को हटा दिया । और उनकी जगह युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया। इसी तरह जुलाई में कर्नाटक में पार्टी ने अपनी वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। और अब गुजरात में विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया है। कुछ ऐसा ही बदलाव मई 2021 में असम में हुआ था। जब चुनाव के बाद तत्कालानीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनेवाल की जगह हेमंत बिस्वा शर्मा को मुख्य मंत्री बना दिया गया था। जबकि पिछले 5 साल असम की कमान सर्बानंद सोनेवाल के पास थी।
कांग्रेस में आमने-सामने नेता
वहीं अगस्त 2020 कांग्रेस में राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच संघर्ष इस स्तर पर पहुंच गया था कि पायलट की पार्टी छोड़ने तक की स्थिति बन गई थी। एक साल बीत जाने के बाद भी दोनों नेताओं के बीच मतभेद अभी भी सुलझा नहीं है। पायलट गुट के 19 विधायकों में से एक हेमाराम चौधरी ने मई 2021 में इस्तीफा दे दिया है। लेकिन अभी तक उनके इस्तीफे को विधान सभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी ने तीन महीने बाद भी स्वीकार नहीं किया है। यह इस बात का संकेत है कि पार्टी उनका इस्तीफा नहीं स्वीकार कर, मामले को संभालने की कोशिश कर रही है। असल में 2018 में जब राजस्थान विधान सभा के चुनाव हुए थे तो प्रदेश में पार्टी की अध्यक्षता सचिन पायलट के हाथ में थी। इसे देखते हुए जब कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो पायलट को उम्मीद थी कि उन्हें मुख्यमंत्री का ताज मिलेगा। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने अशोक गहलोत पर भरोसा जताया था। उसी समय से दोनों नेताओं के बीच अनबन शुरू हो गई थी।
राजस्थान की तरह पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की खींचतान जगजाहिर है। सिद्धू को आलाकमान द्वारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भी, वह अमरिंदर के साथ-साथ नेतृत्व को चेतावनी देते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने कह दिया था कि अगर काम करने की आजादी नहीं मिलेगी तो ईंट से ईंट बजा दूंगा। राजस्थान की तरह पंजाब में सिद्धू साल 2022 अपने नेतृत्व में चुनाव कराने के लिए आलाकमान पर दबाव बनाते रहे हैं। वह चाहते हैं कि पार्टी कैप्टन की जगह उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करें।
इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.सिंहदेव की बीच सीएम की कुर्सी के लिए लड़ाई जारी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार 2018 में जब सरकार बनी थी, तो दोनों नेताओं के बीच ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले के आधार पर सीएम बनाने का फैसला आलाकमान ने किया था। और अब ढाई साल पूरा होने के बाद सिंहदेव उसी वादे को पूरा करने के लिए आलकमान पर दबाव डाल रहे हैं। जबकि भूपेश बघेल विधायकों की ताकत दिखाकर आलाकमान को चेता रहे हैं कि उनके खिलाफ फैसला गया तो पार्टी में कुछ भी हो सकता है। जिसकी वजह से पिछले दो महीने से राज्य में गतिरोध जारी है।
भाजपा में विरोध खुलकर क्यों नहीं
ऐसा नहीं है कि भाजपा में पार्टी में विरोध के स्वर नहीं उठते हैं। राजस्थान में 2023 के चुनाव को लेकर पार्टी का चेहरा कौन होगा, इस पर वसुंधरा राजे सिंधिया और केंद्र के बीच खींचतान बीच-बीच में सामने आती रहती है। इसी तरह गुजरात में नितिन पटेल की सीएम बनने की इच्छा रही है लेकिन उनकी जगह भूपेंद्र पटेल को कमान मिल गई। इसके बाद नितिन पटेल ने मेहसाणा के कार्यक्रम में मजाकिया अंदाज में कहा कि अकेले मेरी बस नहीं छूटी है। मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान को हटाने की अटकलें आती रही हैं।
फिर भी सब शांति कैसे रहती है, इस पर सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कु्मार का कहना है "भाजपा और कांग्रेस में इस समय सबसे बड़ा अंतर शीर्ष नेतृत्व का है। राज्यों के स्तर पर नेताओं को पता है कि उनके चुनाव जीतने और सरकार बनाने में नरेंद्र मोदी फैक्टर का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसे में एक स्तर से ज्यादा विरोध करने का कोई फायदा नहीं है। साथ ही एक बात समझनी चाहिए कि भाजपा इस समय उगता सूरज है। अगर कोई नेता बगावत करना भी चाहे तो उसके पास क्या विकल्प है।
वहीं दूसरी तरह कांग्रेस में साफ दिख रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व मसलों को हल करने में नाकाम हो रहा है। उसकी कई कोशिशों के बावजूद नेताओं की गुटबाजी खत्म नहीं हो पाती है। एक समय कांग्रेस में भाजपा के तरह शीर्ष नेतृत्व मजबूत होता था। लेकिन अभी वैसी स्थिति नहीं है। पार्टी के नेताओं को शीर्ष नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है। जिसका असर दिख रहा है। " वहीं भाजपा के एक नेता का कहना है देखिए पार्टी 1980 के गठन के बाद से कभी नहीं टूटी है। जबकि कांग्रेस कितनी बार टूटी है, हम सबको पता है। इसी एक अंतर से भाजपा की मजबूती को समझा जा सकती है।"
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