कारगिल युद्ध को 23 साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक के सबसे विषम इस युद्ध में भारत के पराक्रम की गाथाएं अमर हो गई हैं। जिन ऊंची चोटियों पर यह कठिन लड़ाई लड़ी गई उनमें से एक थी द्रास की पहाड़ी पॉइंट 5140। तोलोलिंग से पंद्रह सौ मीटर उत्तर में स्थित प्वाइंट 5140 पर पाकिस्तान के घुसपैठिए कब्जा जमा चुके थे, लेकिन भारत की आर्टिलरी के जोरदार प्रहार ने पाकिस्तान के घुसपैठियों को प्वाइंट 5140 से खदेड़ दिया और भारत को इस युद्ध में विजय दिलाई।
प्वाइंट 5140 वही पहाड़ी है जहां बैठकर परमवीर चक्र कैप्टन विक्रम बत्रा ने 'यह दिल मांगे मोर' कहा था। भारतीय सेना की आर्टिलरी के सम्मान में अब पॉइंट 5140 को गन हिल के नाम से जाना जाएगा। भारतीय आर्टिलरी के गनर्स के शौर्य को युद्ध के 23 साल बाद प्वाइंट 5140 का नाम बदलकर श्रद्धांजलि दी जा रही है। 1999 में ऑपरेशन विजय के दौरान भारतीय सेना के आर्टिलरी ने बेहद अहम भूमिका निभाई थी भारतीय फौज के गनर्स ने पैदल सेना को अपनी फौलादी ताकत से जीत के करीब पहुंचाया था।पाकिस्तान भारत की तोपों के सामने ठहर नहीं सका।
प्वाइंट 5140 बेहद प्रसिद्ध तोलोलिंग टॉप के उत्तर में लगभग 1500 मीटर की दूरी पर एक प्रमुख विशेषता थी, जो लगातार भारतीय जवानों को रिइंफोर्समेंट प्रदान कर रहा था और तोलोलिंग टॉप के लिए एक प्रमुख गहराई वाला इलाका भी था। तोलोलिंग टॉप पर बंकरों के सफाये के अंतिम चरण के दौरान 2 राजपूताना राइफल्स के मेजर विवेक गुप्ता जख्मी हो गए, तभी कंपनी के आर्टिलरी फॉरवर्ड ऑब्जर्वेशन ऑफिसर, कैप्टन मृदुल कुमार सिंह ने तिरंगा फहराने के लिए अपनी कंपनी के जवानों की रैली की और कई काउंटर अटैक्स के जरिए पाकिस्तान को धूल चटाई।
आर्टिलरी के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल के रवि प्रसाद जो युद्ध के वक्त 41 फील्ड रेजिमेंट मैं तैनात थे ने बताया कि "गोलाबारी की गति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुल 26,000 गोले जिसमें 95 टन टीएनटी और 527 टन स्टील शामिल थे, की डिलीवरी की गई थी।" तोलोलिंग टॉप पर कब्जा करने के बाद, प्वाइंट 5140 पर कब्जा करना सबसे जरूरी था, क्योंकि यह श्रीनगर के साथ लद्दाख घाटी तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 यातायात को फिर से शुरू करने के लिए जरूरी था। तोलोलिंग की लड़ाई में 9 भारतीय जवान शहीद हो चुके थे और 23 को गंभीर चोटें लगी थी। पाकिस्तान इन पहाड़ियों के स्लोप्स पर कुछ इस तरह से संघ ( पत्थरनुमा बन्कर) बना कर बैठा था जिन पर हेलीकॉप्टर से भी मार कर पाना मुश्किल था। ऐसे में भारत की आर्टिलरी ने जोरदार गोले बरसा कर इन पहाड़ियों को खाली करवाया। तोपखाने ने गोला-बारूद का उपयोग करते हुए कई दिशाओं से उच्च कोण में प्वाइंट 5140 पर गोलाबारी की।120 मिलीमीटर मोर्टार से लेकर शक्तिशाली 155 मिलीमीटर BOFORS तक की बंदूकों वाली यूनिट मट्यान से थसगाम तक NH1 के 50 किलोमीटर के चारों ओर फैल गईं और दुश्मन पर कहर बनकर बरसी।
19/20 जून 99 को, 'एनरेजेड बुल' ब्रिगेडियर (बाद में मेजर जनरल) लखविंदर सिंह, युद्ध सेवा मेडल (सेवानिवृत्त) कमांडर 8 माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड ने 197 फील्ड रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल (बाद में मेजर जनरल) आलोक देब, सेना पदक विशिष्ट सेवा पदक (सेवानिवृत्त) द्वारा समन्वित 100 धधकती तोपों के साथ SHATRUNASH कोडनेम की गोलाबारी का आयोजन किया। गनर्स के सटीक और जोरदार प्रहार के सामने पाकिस्तान के घुसपैठिए ज्यादा देर नहीं टिक पाए और पॉइंट 5140 पर विजय पा ली गई।
बहादुर गनर्स के सम्मान में 30 जुलाई 2022 को प्वाइंट 5140 का नाम बदलकर गन हिल रखकर इन गनर्स को श्रद्धांजलि दी गई है। आर्टिलरी रेजिमेंट की ओर से, द्रास के कारगिल युद्ध स्मारक में आर्टिलरी के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल टीके चावला, ने ऑपरेशन में भाग लेने वाले वयोवृद्ध गनर्स के साथ पुष्पांजलि अर्पित की। फायर एंड फ्यूरी कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने भी इस अवसर पर माल्यार्पण किया। यह समारोह सभी आर्टिलरी रेजिमेंट के वेटरन्स की उपस्थिति में आयोजित किया गया था, जिन्हें ऑपरेशन विजय में "कारगिल" की उपाधि मिली थी।
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