Ghulam Nabi Azad Resigned From Congress: गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफे का वक्त ऐसे समय चुना है, जब उनकी कांग्रेस नेतृत्व से सार्वजनिक नाराजगी के ठीक 2 साल पूरे हुए हैं। अगस्त 2020 में पहली बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी आजाद ने G-23 नेताओं के गुट में शामिल होकर, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ सार्वजनिक रूप से चिट्ठी लिखकर नाराजगी जाहिर की थी। उस चिट्ठी में आजाद ने दूसरे नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस की कार्यशैली में बदलाव की मांग की थी। लेकिन इन दो वर्षों में कुछ ठोस बदलाव न होने और नेतृत्व को लेकर जारी कंफ्यूजन के कारण अब आजाद के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने गांधी परिवार खास तौर से राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस से करीब पांच दशकों का नाता तोड़ लिया।
इंदिरा से सोनिया गांधी तक के साथ किया काम, लेकिन राहुल निशाने पर
गुलाम नबी आजाद साल 1973 में कांग्रेस से जुड़े थे। और 1980 में वह महाराष्ट्र के वाशिम से चुनाव लड़कर पहली बार सांसद बने थे। इस बीच उन्होंने गांधी परिवार की तीन पीढ़ी के साथ काम किया है। वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया और राहुल गांधी की टीम का हिस्सा रह चुके हैं। लेकिन 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और फिर राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद बनी परिस्थितियों में, गुलाम नबी आजाद की नाराजगी बढ़ती गईं।
इसी की नतीजा था G-23 की चिट्ठी के बाद, दिसंबर 2021 में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इशारों-इशारों में राहुल गांधी की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि नई पीढ़ी मौजूदा पीढ़ी के सुझावों पर ध्यान नहीं देती। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही ये सुझाव कांग्रेस के दिग्गज नेता क्यों ने दें, लेकिन इसे अपराध और विद्रोह के तौर पर ही देखा जाता है।
इसी तरह उन्होंने नवंबर 2021 की पुंछ की रैली में उन्होंने कहा कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें मिलती नहीं दिखाई पड़ रही हैं। कुछ लोग ऐसा दावा कर रहे हैं, लेकिन मुझे होता नहीं दिख रहा है। उन्होंने कहा कि धारा 370 को बहाल करने के लिए कांग्रेस को 300 से अधिक सीट मिलनी चाहिए।
Ghulam Nabi Azad : गुलाम नबी आजाद का अगला कदम क्या? टाइम्स नाउ नवभारत को बताया
अपनी इसी नाराजगी को उन्होंने अब खुल कर अपने 5 पन्ने के इस्तीफे में जाहिर किया है। उन्होंने लिखा है कि पार्टी के शीर्ष पर एक ऐसा आदमी थोपा गया जो गंभीर नहीं है।पार्टी के सभी अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। चाटुकार मंडली सक्रिय है। उन्होंने यहां तक लिख दिया कि पार्टी के अहम फ़ैसले राहुल गांधी के सिक्योरिटी गार्ड और पीए ले रहे हैं। जाहिर है गुलाम नबी आजाद कांग्रेस पार्टी के हश्र के लिए राहुल गांधी को पूरी तरह से जिम्मेदार मान रहे हैं।
पद्य पुरस्कार मिलने पर पार्टी के अंदर दिखे थे दो गुट
इस साल जब भारत सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्य पुरस्कार देने का ऐलान किया, तो कांग्रेस में राहुल गांधी के करीबी गुट ने इस पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और कम्युनिस्ट नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के बहाने निशाना साधा था। असल में भट्टाचार्य ने पद्म पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। इसके बाद जयराम रमेश ने ट्वीट में लिखा कि सही कदम यही है, वह आजाद रहना चाहते थे न कि गुलाम। जाहिर है उनका ट्वीट गुलाम नबी आजाद पर तंज था। इसके अलावा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के तरफ से भी आजाद को पद्य पुरस्कार मिलने की कोई सार्वजनिक बधाई नहीं आई । फरवरी 202 में उनका राज्य सभा का कार्यकाल खत्म हो गया था।
सोनिया गांधी की कोशिश नहीं आई काम
ऐसा नहीं है इन 2 साल में आजाद को साधने की कोशिश नहीं हुई। खुद सोनिया गांधी गुलाम नबी आजाद की नाराजगी दूर करती नजर आई। सितंबर 2021 में आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश भर में पार्टी द्वारा किए जाने वाले समारोह और दूसरी अहम गतिविधियों के लिए बनाई कमेटी की अध्यक्षता पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। और इस कमेटी में गुलाम नबी आजाद को भी शामिल किया गया था। इसके अलावा इसी महीने गुलाम नबी आजाद को जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस पार्टी की प्रचार समिति के प्रमुख की जिम्मेदारी पार्टी ने सौंपी थी। लेकिन आजाद ने इसके ऐलान के कुछ ही घंटे बाद प्रचार समिति के पद से इस्तीफा दे दिया था। उसी के बाद से यह कयास लगाए जा रहे थे कि गुलाम नबी आजाद कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।
आनंद शर्मा और मनीष तिवारी क्या उठाएंगे कदम
आजाद कांग्रेस के उन 23 नेताओं के समूह में शामिल थे जिन्होंने अगस्त 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखकर कांग्रेस में बड़े बदलाव की मांग की थी। और उसके बाद से कपिल सिब्बल के नेतृत्व में ये धड़ा कई बार खुलकर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाता रहा। इन नेताओं के खुलकर सामने आने के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से इनकी दूरी और बढ़ गई। इस बीच कपिल सिब्बल भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। और अब गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। ऐसे में G-23 के प्रमुख नेताओं में आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के अगले कदम पर सबकी नजर रहेगी। अभी हाल ही में आनंद शर्मा ने हिमाचल चुनाव के लिए बनी कांग्रेस की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है।
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