IAC Vikrant : आजादी के बाद ही देश की समुद्री सरहद की सुरक्षा महसूस की गई। आजादी के छह महीने बाद ही नौसेना के विस्तार के लिए एक 10 वर्षीय योजना तैयार की गई। शुरुआत में समुद्री सीमा की सुरक्षा एवं खतरों से निपटने के लिए नौसेना की दो फ्लीट तैयार की योजना बनी। एक बंगाल की खाड़ी के लिए दूसरी अरब सागर के लिए। इस योजना को सरकार की तरफ से सैद्धांतिक मंजूरी तो मिल गई लेकिन कई ज्ञात एवं अज्ञात कारणों की वजह से यह खाका जमीन पर उतर नहीं सका। आजादी के बाद पहला युद्ध भारत ने 1947 में ही पाकिस्तान के साथ लड़ा। यह लड़ाई जमीनी थी। समुद्र इस लड़ाई से अछूता रहा। जमीनी मोर्चे की लड़ाई को देखत हुए भारत ने शुरू से ही अपनी आर्मी (पैदल सेना) को ज्यादा संसाधन एवं सविधाएं देनी शुरू की। सरकार का ध्यान नौसेना को ताकतवर बनाने की दिशा में कम ही रहा। हालांकि, बाद में सीमा की सुरक्षा एवं पड़ोसी देशों के खतरों को देखते हुए उस अपनी रणनीति में बदवाल करना पड़ा।
इन देशों के साथ लगती है देश की समुद्री सीमा
भारत की सीमा की अगर बात करें तो जमीन से इसकी सीमा बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान से लगती है। समुद्री सीमा बांग्लादेश, इंडोनेशिया, म्यांमार, पाकिस्तान, थाईलैंड, श्रीलंका और मालदीव के साथ लगती है। जमीनी सीमा के साथ-साथ समुद्री सीमा की रखवाली एवं सुरक्षा भी देश के लिए एक बड़ी चिंता रही है। इन दोनों मोर्चों पर सेना को मजबूत बनाने का काम लगातार होता रहा है। नौसेना की ताकत क्या होती है, इसे देश ने पहली बार 1971 के युद्ध में महसूस किया।
1971 के युद्ध में समुद्र में समा गया पीएनएस गाजी
आईएनएस विक्रांत ने युद्ध की दिशा बदल दी। इसे डुबोने के लिए पाकिस्तान ने अपनी पनडुब्बी गाजी को भेजा था। 1971 में भारत-पाक युद्ध में इस विमान वाहक पोत के कारण पाकिस्तान के पसीने छूट गए थे। विक्रांत को यदि क्षति पहुंचती तो पाक सेना पर भारतीय सेना ने इस विमान वाहक पोत के जरिए जो मनोवैज्ञानिक खौफ पैदा किया था वह खत्म हो जाता। भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान को चकमा दिया और आईएनएस राजपूत को आईएनएस विक्रांत बनाकर पेश किया। जब गाजी ने आईएनएस राजपूत पर विक्रांत समझकर हमाल किया तो आईएनएस राजपूत ने गाजी को तबाह कर दिया।
भारत का पहला युद्धपोत INS विकांत
भारत की अगर बात करें तो नौसेना का पहला युद्धपोत आईएनएस विक्रांत था। इसे नौसेना में साल 1961 में शामिल किया गया। आईएनएस विराट जिसे नौसेना में 1987 में शामिल किया गया। वह भी विदेशी था। ये दोनों युद्धपोत ब्रिटेन में बने थे जिन्हें भारत सरकार ने नौसेना में शामिल किया। ब्रिटेन की नौसेना में इन दोनों युद्धपोतों को 'एचएमएस हरक्यूलिस' और 'एचएमएस हर्म्स' के नाम से जाना जाता था। भारतीय नौसेना को पहला एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रमादित्य के रूप में 2013 में मिला। यह एयरक्राफ्ट करियर रूस का था, रूसी नौसेना में इसे एडमिरल गोर्शकोव के नाम से जाना जाता था। आईएनएस विक्रांत एवं आईएनएस विराट दोनों नौसेना से रिटायर हो चुके हैं।
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एयरक्राफ्ट करियर की जरूरत क्यों है?
बीते दशकों में दुनिया भर के समुद्र में हलचल बढ़ गई है। मुक्त नौवहन की मांग तेज हुई है। दक्षिण चीन सागर और हिंद एवं प्रशांत महासागर में चीन अपना दबदबा एवं प्रभाव बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहा है। दक्षिण चीन सागर एवं अरब सागर के जरिए भारत का समुद्री व्यापार होता है। इन मार्गों पर चीन की मंशा ठीक नहीं है। वह दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है। हिंद एवं प्रशांत महासागर में वह अपनी गतिविधियां तेज कर रहा है। श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह हो या जिबूती का उसका सैन्य अड्डा वह समुद्र के जरिए भारत को घेरना चाहता है। ऐसे में भारत को बड़े एवं घातक एयरक्राफ्ट करियर की जरूरत है जो समुद्र सीमा की सुरक्षा एवं निगरानी, व्यापार के रास्ते एवं क्षेत्रीय सुरक्षा मुहैया को सुरक्षित रख सकें। युद्ध के समय ये एयरक्राफ्ट करियर वायु सेना को दुश्मन देश के करीब पहुंचा देते हैं।
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